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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्राइमरी अध्यापकों की तबादला नीति पर हस्तक्षेप से किया इनकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्राइमरी स्कूल के अध्यापकों की तबादला नीति के तहत महिलाओं एवं अध्यापकों या परिवार के सदस्यों की गंभीर बीमारी की दशा में वरीयता देने की नीति को वैध करार दिया है. कोर्ट ने कहा है कि प्राइमरी अध्यापकों की तबादला नीति पर हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता.

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प्राइमरी अध्यापकों की तबादला नीति पर हस्तक्षेप से किया इन्कार.
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Published : Feb 12, 2020, 6:28 AM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्राइमरी स्कूल के अध्यापकों की तबादला नीति के तहत महिला अध्यापकों या परिवार के सदस्यों की गंभीर बीमरी की दिशा में वरीयता देने की नीति को वैध करार दिया. कोर्ट ने कहा है कि प्राइमरी टीचरों के तबादले की 2 दिसंबर 2019 को जारी नीति न तो संविधान के अनुच्छेद 14 के विपरीत है और न ही किसी नियम कानून की विरोधाभाषी. ऐसे में तबादला नीति पर हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता.

कोर्ट ने कहा है कि तबादला नीति में शर्तें लगाना प्रशासन का कार्य है. जब तक कि वह मनमाना पूर्ण न हो या संविधान के खिलाफ न हो ,कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकती. कोर्ट ने प्राइमरी टीचरों के तबादला नीति को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी ने मनोज कुमार और 29 अन्य अध्यापकों की याचिका पर दिया है.

इसे भी पढ़ें-इलाहाबाद हाईकोर्ट से राज्य सरकार को बड़ा झटका, सरकार के फैसले पर लगाई रोक

कोर्ट ने कहा है कि किसी भी अध्यापक को तबादला कराने का कोई अधिकार नहीं है. तबादला नीति के तहत किसी को भी शहर से ग्रामीण या ग्रामीण से शहरी एरिया में तबादला कराने का अधिकार नहीं है. किंतु महिलाओं एवं अध्यापकों या परिवार के सदस्य की गंभीर बीमारी की दशा में तबादले में बरीयता देने की व्यवस्था कानून के विपरीत नहीं है.

याचिका में 2 दिसंबर 2019 को जारी तबादला नीति के कालम 8(4) की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी. जिसके तहत पांच अतिरिक्त क्वालिटी पॉइंट देकर महिला अध्यापकों को वरीयता देने की व्यवस्था की गई है. जिसे कोर्ट ने गलत नहीं माना और कहा कि महिलाओं को वरीयता देने से किसी कानून या संवैधानिक उपबंध का उल्लंघन नहीं होता.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्राइमरी स्कूल के अध्यापकों की तबादला नीति के तहत महिला अध्यापकों या परिवार के सदस्यों की गंभीर बीमरी की दिशा में वरीयता देने की नीति को वैध करार दिया. कोर्ट ने कहा है कि प्राइमरी टीचरों के तबादले की 2 दिसंबर 2019 को जारी नीति न तो संविधान के अनुच्छेद 14 के विपरीत है और न ही किसी नियम कानून की विरोधाभाषी. ऐसे में तबादला नीति पर हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता.

कोर्ट ने कहा है कि तबादला नीति में शर्तें लगाना प्रशासन का कार्य है. जब तक कि वह मनमाना पूर्ण न हो या संविधान के खिलाफ न हो ,कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकती. कोर्ट ने प्राइमरी टीचरों के तबादला नीति को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी ने मनोज कुमार और 29 अन्य अध्यापकों की याचिका पर दिया है.

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कोर्ट ने कहा है कि किसी भी अध्यापक को तबादला कराने का कोई अधिकार नहीं है. तबादला नीति के तहत किसी को भी शहर से ग्रामीण या ग्रामीण से शहरी एरिया में तबादला कराने का अधिकार नहीं है. किंतु महिलाओं एवं अध्यापकों या परिवार के सदस्य की गंभीर बीमारी की दशा में तबादले में बरीयता देने की व्यवस्था कानून के विपरीत नहीं है.

याचिका में 2 दिसंबर 2019 को जारी तबादला नीति के कालम 8(4) की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी. जिसके तहत पांच अतिरिक्त क्वालिटी पॉइंट देकर महिला अध्यापकों को वरीयता देने की व्यवस्था की गई है. जिसे कोर्ट ने गलत नहीं माना और कहा कि महिलाओं को वरीयता देने से किसी कानून या संवैधानिक उपबंध का उल्लंघन नहीं होता.

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