प्रयागराज : रंगों को ग्रहों का प्रतीक माना जाता है. प्रत्येक रंग किसी न किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करते हैं. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक रंगों के त्यौहार में अपने राशि के अनुसार रंगों का इस्तेमाल करने से ग्रह-दोष से मुक्ति मिलती है. हर राशि के एक स्वामी होते हैं, जिन्हें भाने वाले रंग से होली खेलकर आप अपनी राशि पर होली के त्यौहार का शुभदायक प्रभाव डाल सकते हैं. इसके साथ ही उन रंगों से बच सकते हैं, जो अपके लिए हानिकारक होंगे. इसके बारे में विस्तार से जानकारी दे रही हैं प्रयागराज की ज्योतिषी गुंजन वार्ष्णेय. तो चलिए जानते हैं कि किस राशि के लोगों को किस रंग से होली खेलना उचित रहेगा और कौन सा रंग आपके पर्व को बना सकता है बदरंग.
मेष राशि
जिन भी लोगों की मेष राशि है उनके लिए लाल रंग से होली खेलना लाभकारी साबित हो सकता है. मेष राशि के स्वामी मंगल हैं और मंगल के शत्रु शनि देव माने जाते हैं. इसलिए मेष राशि वालों को होली खेलते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह काले और नीले रंग से दूर रहें.
वृष राशि
वृष राशि के स्वामी शुक्र हैं और शुक्र एक चमकीला ग्रह होता है. इसलिए वृष राशि वालों के लिए होली पर सफेद रंग का इस्तेमाल करना लाभदायक साबित होगा. इसलिए वृष राशि वालों को सफेदा लगाने के बाद होली खेलनी चाहिए, जिससे उनके ऊपर कोई दूसरा रंग नहीं चढ़ सके और दूसरे रंगों के नकारात्मक प्रभाव से वह बच सकें.
मिथुन राशि
मिथुन राशि के स्वामी बुध माने जाते हैं. इसलिए बुध ग्रह वालों को हरे रंग से होली खेलना चाहिए. या होली के दिन ज्यादा से ज्यादा हरे रंग का प्रयोग करना चाहिए. इससे होली का पर्व उनके लिये शुभकारी साबित होगा.
कर्क राशि
कर्क राशि के जातकों को होली खेलते समय पानी का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए. क्योंकि कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा हैं, जो जल के प्रतीक भी माने जाते हैं. इसलिए कर्क राशि वालों को पानी से होली खेलने पर लाभ मिलेगा.
सिंह राशि
इसी तरह से सिंह राशि के स्वामी सूर्य हैं और सूर्य की ऊर्जा प्राप्त करने के लिए सिंह राशि वालों को लाल, गुलाबी, नारंगी जैसे रंगों से होली खेलनी चाहिए. इसके साथ ही काले और नीले रंग से सिंह राशि वालों को दूरी बनानी चाहिए. क्योंकि सूर्य के शत्रु शनि माने जाते हैं और काला, नीला रंग शनी का रंग है. इसलिए इन दोनों रंगों से सिंह राशि वालों को दूर रहना चाहिए.
कन्या राशि
कन्या राशि के स्वामी भी बुध हैं. अतः कन्या राशि वालों को भी हरे रंग से होली खेलनी चाहिए. कन्या राशि वाले हरे रंग से होली खेलकर अपने समय को सुख देने वाला बना सकते हैं.
तुला राशि
तुला राशि के स्वामी शुक्र हैं. इसलिए तुला राशि वालों को चाहिए कि वह भी सफेदा का इस्तेमाल करने के बाद होली खेलें. इससे उनके ऊपर कोई दूसरा रंग नहीं चढ़ सकेगा और उनके लिए भी होली का त्यौहार खुशियां लाने वाला साबित होगा. तुला राशि वाले टेशू के फूल से रंग बनाकर भी होली खेलें, तो लाभ मिलेगा.
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वृश्चिक राशि
वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल हैं. इसलिए मंगल राशि वालों को भी लाल रंग से होली खेलनी चाहिए. लाल रंग से होली खेलने से वृश्चिक राशि वाले ऊर्जावान होंगे. इसके साथ ही इस राशि वालों को नीले रंग से दूरी बनानी चाहिए. इस राशि वाले नीले रंग से परहेज करेंगे, तो उन्हें ग्रह पीड़ा नहीं होगी.
धनु राशि
धनु राशि के स्वामी गुरु बृहस्पति हैं. इसलिए धनु राशि वालों को पीले रंग से होली खेलनी चाहिए. साथ ही धनु राशि वाले प्राकृतिक रंगों जैसे कि हल्दी या केसर के रंग से होली खेलें, तो उन्हें विशेष लाभ प्राप्त हो सकता है.
मकर राशि
मकर राशि के स्वामी शनि हैं. इसलिए शनिदेव को खुश करने के लिए मकर राशि वालों को चाहिए कि वह काले और नीले रंग से होली खेलें. काले और नीले रंग से होली खेलने से मकर राशि वालों पर शनि देव प्रसन्न होंगे.
कुम्भ राशि
कुंभ राशि के स्वामी शनिदेव हैं. अतः कुंभ राशि वालों को भी नीले और काले रंग से होली खेलनी चाहिए. काले, नीले रंग से होली खेलने से उनका जीवन सुखमय व्यतीत होगा. कुंभ राशि वालों के लिए काले, नीले रंग का इस्तेमाल लाभ देने वाला साबित होगा.
मीन राशि
मीन राशि के स्वामी बृहस्पति देव हैं. इसलिए मीन राशि वालों को भी चाहिए कि वह प्राकृतिक रंगों के साथ पीले रंग से होली खेलें, तो उनका जीवन सुखमय होगा. इसके साथ ही उनके ऊपर गुरु बृहस्पति की कृपा बनी रहेगी.
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होलिका दहन का शुभ मुहूर्त कब है ?
28 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा. इस बार होलिका दहन के समय भद्रा नहीं रहेगी. इस बार होलिका दहन भद्रा रहित होगी. 28 मार्च को दोपहर में 1 बजकर 24 मिनट पर भद्रा समाप्त हो जाएगी. इसके बाद रात्रि 8 बजकर 32 मिनट तक कन्या लग्न में होलिका दहन किया जा सकता है. यही वजह है कि 28 मार्च को रात्रि 8 बजकर 32 मिनट तक होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रहेगा. होलिका दहन के दिन शनि स्वराशि में रहेंगे तो वहीं सूर्य और चंद्रमा उच्च राशि के होंगे. इसलिए 28 मार्च को भद्रा रहित मुहूर्त में कन्या लग्न में रात्रि 8 बजकर 32 मिनट तक होलिका दहन करना विशेष लाभकारी साबित होगा.
जानिए, कब से शुरू हुई होलिका दहन की परंपरा
ज्योतिषी गुंजन वार्ष्णेय के अनुसार, जिस वक्त हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रह्लाद की भगवान विष्णु की भक्ति से परेशान हो गया था. उसने अपने बेटे को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार असफल हुआ. इसके बाद हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने भाई के पास जाकर फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन प्रह्लाद को लेकर अग्नि के बीच बैठने का फैसला किया. उसने भाई हिरण्यकश्यप को बताया कि उसके पास देवताओं के आशीर्वाद वाला दुपट्टा है, जिसकी वजह से वो अग्नि में जल नहीं सकती है और आग की लपटों के बीच भी सुरक्षित रहती है. इसी वजह से आग की लपटों के बीच वो बच जाएगी और प्रह्लाद अग्नि में जलकर भष्म हो जाएगा. तय दिवस पर होलिका अपने भतीजे को लेकर लकड़ी के ढेर पर बैठकर उसमें आग लगवा देती हैं. इसके बाद आग की लपटों से प्रह्लाद को बचाने के लिए भगवान विष्णु की कृपा से तेज हवा चलती है और होलिका का दुपट्टा उड़ जाता है. होलिका जलने लगती है और विष्णु भगवान प्रह्लाद को आग की लपटों के बीच से सुरक्षित बाहर निकाल लेते हैं. इस दौरान विष्णु भगवान द्वारा छू जाने से होलिका के अंदर की बुराइयां नष्ट हो जाती हैं और वो भी पवित्र हो जाती है. भगवान विष्णु की कृपा से आग में जलने के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसी वजह से होलिका में अपने अंदर की बुराईयों को लोग अलग-अलग प्रतीक के रूप में जलाने जाते हैं. तभी से होलिका के राख का तिलक लगाने की भी परम्परा बनी है.