प्रयागराज: महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का शहादत दिवस गुरुवार को पूरे देश ने बड़े ही जोश और जज्बे के साथ मनाया. हर कोई चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा के पास पहुंचकर उनकी वीरता को याद किया. इस मौके पर ईटीवी भारत ने चंद्रशेखर आजाद के बारे में कुलभास्कर डिग्री कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर श्री बल्लभ से खास बातचीत की.
'अंग्रेजी हुकूमत के सामने नहीं टेके घुटने'
श्री बल्लभ ने बताया कि आजाद ऐसे क्रांतिकारी थे, जो कभी भी अंग्रेजी हुकूमत के सामने घुटने नहीं टेके. बल्कि अंग्रेजी शासन के खिलाफ लगातार संघर्ष करते रहे. 13 साल की उम्र से ही देशवासियों की सुरक्षा के लिए वह क्रांतिकारी बन गए. भारत से अंग्रेजी हुकूमत को हटाने के लिए उन्होंने कई बड़े आंदोलनों में हिस्सा लिया और अपनी आवाज बुलंद की.
'आजाद को गिरफ्तार करने में असफल रही थी ब्रिटिश सरकार'
पूर्व प्रोफेसर श्री बल्लभ ने बताया कि चंद्रशेखर आजाद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के साथ ही 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' गीत गाकर आंदोलन में जोश भरा करते थे. काकोरी कांड हो, ट्रेन लूटने की बात हो यह फिर मुंबई थाने में बम विस्फोट हो. ऐसी तमाम घटनाओं में आजाद नेतृत्व किया करते थे. आजाद अपने क्रांतिकारी जीवन में 12 से अधिक आंदोलनों में हिस्सा लिया, लेकिन ब्रिटिश हुकूमत उन्हें गिरफ्तार करने में असफल रही.
'13 साल की उम्र में मिली थी आजाद नाम की पदवी'
पूर्व प्रोफेसर श्री बल्लभ ने बताया कि हमेशा से यह कहा जाता है कि जब कोई आंदोलन होता है तो उसका नेतृत्व पढ़े-लिखे तबके के लोग करते आये हैं. लेकिन आजाद कम पढ़े-लिखे थे, इसके बावजूद ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ने में उन्होंने सबसे अधिक नेतृत्व किया. 13 साल की उम्र में ही अमर शहीद चंद्रशेखर अपने नाम के साथ आजाद की पदवी प्राप्त कर ली थी.
उन्होंने बताया कि गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन शुरू हुआ था, उसमें आजाद ने भी भागीदारी की थी. उस समय शहीद आजाद को 15 बेंते मारने की सजा मिली थी. हर बेंत पर उनके मुख से आवाज निकलती-भारत माता की जय, वन्दे मातरम.
आजाद पार्क में आज भी जीवित हैं चंद्रशेखर आजाद
पूर्व प्रोफेसर ने बताया कि चंद्रशेखर आजाद पार्क में आज भी वह जीवित हैं. इसी पार्क में आजाद ने अपनी आखिरी सांस ली थी. जब पहली गोली उनके टांग पर लगी तो वह घायल होने के बावजूद लगातार 30 मिनट से अधिक दुश्मनों से लड़ते रहे. आजाद के पास जब अंतिम गोली बची तो उन्होंने खुद को गोली मार ली. उनका यह मानना था कि वह आजाद थे और आजाद रहेंगे.
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