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लॉकडाउन में नौकरी छूटते ही संसार से हुआ मोहभंग, अपना लिया सन्यास का रास्ता

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के रहने वाले आशुतोष श्रीवास्तव ने बेरोजगारी के चलते अपना केवल नाम ही नहीं बल्कि अपना जीवन भी बदल दिया. आशुतोष से आशुतोष महाराज बनने की उनकी कहानी बड़ी दिलचस्प है. आईये जानते हैं..

लॉकडाउन में नौकरी छूटते ही संसार से हुआ मोहभंग
लॉकडाउन में नौकरी छूटते ही संसार से हुआ मोहभंग
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Published : Sep 6, 2021, 12:34 PM IST

प्रयागराज: कोरोना महामारी ने देश-विदेश में भयंकर तबाही मचाई. लॉकडाउन के दौरान कई लोगों का कारोबार तो कई की नौकरी तक चली गई. आर्थिक तंगी से परेशान लोग शहर छोड़ गांव चले गए तो कुछ लोगों ने अपनी जीवनलीला ही समाप्त कर ली.

लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताएंगे जिन्होंने बेरोजगारी से तंग आकर इस सांसारिक जीवन से ही मुंह मोड़ लिया. जी हां, सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लग रहा होगा लेकिन यह बात सच है.

प्रयागराज के रहने वाले आशुतोष श्रीवास्तव अब आशुतोष महाराज बन गए हैं. आशुतोष श्रीवास्तव लॉकडाउन के चलते बेरोजगार हो गए थे. घर खर्च चलाना मुश्किल हुआ और जिंदगी दुरूह हुई तो उनका एकाएक संसार को मोहपाश से मोहभंग हो गया.

जिले के सुलेम सराय के रहने वाले आशुतोष इलाहाबाद डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएशन क्वालिफाइड हैं. ट्रैवल एजेंसी का काम करते थे. लॉकडाउन में बिजनेस ठप हो गया. आर्थिक हालत ठीक न होने के चलते पत्नी मायके चली गई.

ट्रैवल एजेंसी चलाते थे आशुतोष
ट्रैवल एजेंसी चलाते थे आशुतोष

इसे भी पढ़ें-एलईडी बल्ब की यूनिट लगाकर राकेश हुए 'रोशन', 20 युवाओं की जिंदगी में भी ला रहे उजाला

उन्होंने कई जगह नौकरी के लिए आवेदन किया लेकिन बात नहीं बनी. थक हारकर आशुतोष ने गृहस्थ जीवन त्यागकर साधु का वेशधारण कर लिया और संगम तट की ओर निकल पड़े.

भगवा वस्त्र धारण कर साधु बने आशुतोष महाराज ने बताया कि अब वह पूरी तरह शिव की भक्ति में रम चुके हैं. शिव की ही कृपा से उन्हें भोजन और वस्त्र भी नसीब हो गया है.

संगम तट पर रहकर पूजा पाठ करते हैं. लोगों से भिक्षा मांगकर अपना पेट पालते हैं. अब वह भोले बाबा के शरण में हैं. भोले बाबा का पूजन-अर्चन, हवन, तपस्या वहीं बैठकर करते हैं. दो वक्त का भोजन भी वहीं पर मिल जाता है.

पारिवारिक पृष्ठभूमि की बात करें तो आशुतोष महाराज बेहद संपन्न परिवार से ताल्लुक रखते हैं. इनकी माता सरकारी टीचर रह चुकी हैं. खुद कुछ करने की चाहत के चलते उन्होंने अपने परिवार के सामने हाथ नहीं फैलाया. वे स्वाभिमानी बने रहे. हालांकि बाद में एकाएक इस सांसारिक जीवन से उनका मोहभंग हो गया.

स्पेशल रिपोर्ट

आशुतोष महाराज बताते हैं कि संत बनने के बाद अब उन्होंने पूरी तरह परिवारिक जीवन त्याग दिया है. अब आगे की जिंदगी मां गंगा के चरणों में ही बिताना चाहते हैं.

उनका कहना है कि कोरोना काल में जब हर शख्स परेशान था, तब राजनीतिक दल अपनी राजनीति चमकाने का काम कर रहे थे. उस दौरान अस्पतालों में मरीजों की भरमार थी जबकि गरीबों का ख्याल न रखकर राजनीतिक दल केवल भड़काऊ भाषण दे रहे थे.

प्रयागराज: कोरोना महामारी ने देश-विदेश में भयंकर तबाही मचाई. लॉकडाउन के दौरान कई लोगों का कारोबार तो कई की नौकरी तक चली गई. आर्थिक तंगी से परेशान लोग शहर छोड़ गांव चले गए तो कुछ लोगों ने अपनी जीवनलीला ही समाप्त कर ली.

लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताएंगे जिन्होंने बेरोजगारी से तंग आकर इस सांसारिक जीवन से ही मुंह मोड़ लिया. जी हां, सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लग रहा होगा लेकिन यह बात सच है.

प्रयागराज के रहने वाले आशुतोष श्रीवास्तव अब आशुतोष महाराज बन गए हैं. आशुतोष श्रीवास्तव लॉकडाउन के चलते बेरोजगार हो गए थे. घर खर्च चलाना मुश्किल हुआ और जिंदगी दुरूह हुई तो उनका एकाएक संसार को मोहपाश से मोहभंग हो गया.

जिले के सुलेम सराय के रहने वाले आशुतोष इलाहाबाद डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएशन क्वालिफाइड हैं. ट्रैवल एजेंसी का काम करते थे. लॉकडाउन में बिजनेस ठप हो गया. आर्थिक हालत ठीक न होने के चलते पत्नी मायके चली गई.

ट्रैवल एजेंसी चलाते थे आशुतोष
ट्रैवल एजेंसी चलाते थे आशुतोष

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उन्होंने कई जगह नौकरी के लिए आवेदन किया लेकिन बात नहीं बनी. थक हारकर आशुतोष ने गृहस्थ जीवन त्यागकर साधु का वेशधारण कर लिया और संगम तट की ओर निकल पड़े.

भगवा वस्त्र धारण कर साधु बने आशुतोष महाराज ने बताया कि अब वह पूरी तरह शिव की भक्ति में रम चुके हैं. शिव की ही कृपा से उन्हें भोजन और वस्त्र भी नसीब हो गया है.

संगम तट पर रहकर पूजा पाठ करते हैं. लोगों से भिक्षा मांगकर अपना पेट पालते हैं. अब वह भोले बाबा के शरण में हैं. भोले बाबा का पूजन-अर्चन, हवन, तपस्या वहीं बैठकर करते हैं. दो वक्त का भोजन भी वहीं पर मिल जाता है.

पारिवारिक पृष्ठभूमि की बात करें तो आशुतोष महाराज बेहद संपन्न परिवार से ताल्लुक रखते हैं. इनकी माता सरकारी टीचर रह चुकी हैं. खुद कुछ करने की चाहत के चलते उन्होंने अपने परिवार के सामने हाथ नहीं फैलाया. वे स्वाभिमानी बने रहे. हालांकि बाद में एकाएक इस सांसारिक जीवन से उनका मोहभंग हो गया.

स्पेशल रिपोर्ट

आशुतोष महाराज बताते हैं कि संत बनने के बाद अब उन्होंने पूरी तरह परिवारिक जीवन त्याग दिया है. अब आगे की जिंदगी मां गंगा के चरणों में ही बिताना चाहते हैं.

उनका कहना है कि कोरोना काल में जब हर शख्स परेशान था, तब राजनीतिक दल अपनी राजनीति चमकाने का काम कर रहे थे. उस दौरान अस्पतालों में मरीजों की भरमार थी जबकि गरीबों का ख्याल न रखकर राजनीतिक दल केवल भड़काऊ भाषण दे रहे थे.

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