प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि शिक्षण संस्थानों में गैर शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति जिला विद्यालय निरीक्षक के पूर्व अनुमोदन के बाद ही की जा सकती है. ऐसा करना यूपी इंटरमीडिएट एजूकेशन एक्ट, 1921 व इसके तहत बने रेगुलेशन के अन्तर्गत बाध्यकारी है.
कोर्ट ने कहा कि जिला विद्यालय निरीक्षक के पूर्व अनुमोदन के बाद ही गैर शैक्षणिक पदों पर विद्यालय के प्रबंधन समिति अथवा प्रधानाचार्य द्वारा नियुक्ति करना वैधानिक है.
यह निर्णय हाईकोर्ट के जस्टिस विश्वनाथ सोमद्दर और जस्टिस डॉ. वाई.के. श्रीवास्तव की खंडपीठ ने याची ( अपीलार्थी ) ध्रुव कुमार पाण्डेय की एकल जज के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अपील को खारिज करते हुए दिया है.
कोर्ट ने कहा कि शिक्षा अधिकारियों का यह दायित्व है कि वह सुनिश्चित करें कि कोई भी नियुक्ति यूपी इंटरमीडिएट एक्ट 1921 व इसके तहत बने विनियमों के अनुकूल हो.
याची ने याचिका दायर कर जिला विद्यालय निरीक्षक बस्ती के 15 जुलाई 2015 के उस आदेश को चुनौती दी थीं, जिसके द्वारा जनता इंटर कालेज, नगर बाजार, बस्ती में चतुर्थ श्रेणी के पद पर हुई, उसकी नियुक्ति को अनुमोदन देने से इन्कार कर दिया था. इन्कार करते हुए कहा गया था कि नियुक्ति से पूर्व शिक्षा विभाग से अनुमति नहीं ली गई थी. पत्रजातों पर प्रधानाचार्य के हस्ताक्षर नहीं थे. कहा गया था कि 5 वर्ष पूर्व की गई चयन की प्रक्रिया का अनुमोदन नहीं किया जा सकता.
याची के अधिवक्ता राधाकान्त ओझा की दलील थी कि नियुक्ति से पूर्व अनुमति की कोई जरूरत नहीं है, जबकि सरकारी अधिवक्ता का कहना था कि नियुक्ति से पूर्व प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. इस कारण जिला विद्यालय निरीक्षक बस्ती का आदेश सही है. एकल जज ने याचिका खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ याची ने विशेष अपील दाखिल की थी.
विशेष अपील को खारिज करते हुए खंडपीठ ने कहा कि पूर्वानुमोदन की आवश्यकता विनियम 101 के तहत निर्देशात्मक ( मैन्डेटरी ) है. यह नियुक्ति पूर्व शर्त है. ऐसे में इस नियुक्ति से पूर्व पूर्वानुमोदन न लेने से नियुक्ति गलत है. कोर्ट ने जिला विद्यालय निरीक्षक के आदेश को सही करार देते हुए याची की विशेष अपील खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि रिकार्ड में ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जिससे यह कहा जा सके कि पद रिक्त होने की सूचना शिक्षा अधिकारी को दी गयी थी.