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आंवला नवमीः क्या है इस तिथि का महत्त्व और पूजा विधि, पढ़ें सब कुछ

शास्त्रों के अनुसार, आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा की जाती है. कहते हैं कि ऐसा करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.

आंवला नवमी कब है
आंवला नवमी कब है
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Published : Nov 11, 2021, 11:27 AM IST

Updated : Nov 12, 2021, 4:35 PM IST

प्रयागराज : हिंदू धर्म में आंवला नवमी का विशेष महत्व होता है. इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के नौवें दिन अक्षय नवमी को मनाया जाता है।. इस दिन दान-धर्म का अधिक महत्व होता है. मान्यता है कि इस दिन दान करने से उसका पुण्य वर्तमान के साथ अगले जन्म में भी मिलता है. शास्त्रों के अनुसार, आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा की जाती है. कहते हैं कि ऐसा करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.

आंवला नवमी दीपावली के बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है. इसे अक्षय नवमी के नाम से भी पुकारा जाता हैं। हिंदू शास्त्र के अनुसार इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करने से जीवन के सभी पाप धुल जाते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान श्री विष्णु आंवला के पेड़ पर निवास करते हैं। इन दिनोंआंवला के वृक्ष की पूजा करने से भगवान श्री हरि का आशीर्वाद सदा भक्तों पर बना रहता है.

ज्योतिषाचार्य शिप्रा सचदेव ने दी जानकारी
आंवला नवमी का महत्वआंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष के नीचे भोजन बनाने और भोजन करने का विशेष महत्व है. आंवला नवमी को ही भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था. इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा की थी. आज भी लोग अक्षय नवमी पर मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा करते हैं. संतान प्राप्ति के लिए इस नवमी पर पूजा अर्चना का विशेष महत्व है. मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके वृंदावन को छोड़कर मथुरा चले गए थे.पूजा विधि आंवला नवमी महिलाएं आंवला नवमी के दिन स्नान आदि करके किसी आंवला वृक्ष के समीप जाएं. उसके आसपास साफ-सफाई करके आंवला वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें. फिर उसकी जड़ में कच्चा दूध डालें. पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करें और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली 8 परिक्रमा करते हुए लपेटें. कुछ जगह 108 परिक्रमा भी की जाती है. इसके बाद परिवार और संतान के सुख-समृद्धि की कामना करके वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवार, मित्रों सहित भोजन किया जाता है. 12 नवंबर 2021 दिन शुक्रवार को सुबह 06 बजकर 50 से दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक पूजन का शुभ मुहूर्त है.
प्रयागराज में आंवला नवमी पर हुआ पूजन.

प्रयागराज में हुआ पूजन-अर्चन

शुक्रवार को आंवला नवमी के मौके पर प्रयागराज के मिंटो पार्क में महिलाओं द्वारा आस्था के साथ आंवले के वृक्ष की पूजा अर्चना की गई. कच्चे सूत के साथ वृक्ष की परिक्रमा की गई. ज्योतिषाचार्य विनोद चौबे ने बताया कि इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से अक्षय की प्राप्ति होती है, इसलिए इसको अक्षय नवमी भी कहा जाता है. ज्योतिषाचार्य ने बताया कि आंवला नवमी के दिन आंवला वृक्ष की जड़ में विष्णुजी की पूजा की जाती है, साथ ही इस दिन कुंडली में मंगल दोष वाले लोगों द्वारा अगर पूजा की जाती है तो उन्हें अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. उधर, पूजन करने पहुंचीं श्रद्धालु कुमकुम कहतीं हैं कि कार्तिक मास में आंवला नवमी का विशेष महत्व है. आंवला के वृक्ष के पूजन की है.

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प्रयागराज : हिंदू धर्म में आंवला नवमी का विशेष महत्व होता है. इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के नौवें दिन अक्षय नवमी को मनाया जाता है।. इस दिन दान-धर्म का अधिक महत्व होता है. मान्यता है कि इस दिन दान करने से उसका पुण्य वर्तमान के साथ अगले जन्म में भी मिलता है. शास्त्रों के अनुसार, आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा की जाती है. कहते हैं कि ऐसा करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.

आंवला नवमी दीपावली के बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है. इसे अक्षय नवमी के नाम से भी पुकारा जाता हैं। हिंदू शास्त्र के अनुसार इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करने से जीवन के सभी पाप धुल जाते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान श्री विष्णु आंवला के पेड़ पर निवास करते हैं। इन दिनोंआंवला के वृक्ष की पूजा करने से भगवान श्री हरि का आशीर्वाद सदा भक्तों पर बना रहता है.

ज्योतिषाचार्य शिप्रा सचदेव ने दी जानकारी
आंवला नवमी का महत्वआंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष के नीचे भोजन बनाने और भोजन करने का विशेष महत्व है. आंवला नवमी को ही भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था. इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा की थी. आज भी लोग अक्षय नवमी पर मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा करते हैं. संतान प्राप्ति के लिए इस नवमी पर पूजा अर्चना का विशेष महत्व है. मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके वृंदावन को छोड़कर मथुरा चले गए थे.पूजा विधि आंवला नवमी महिलाएं आंवला नवमी के दिन स्नान आदि करके किसी आंवला वृक्ष के समीप जाएं. उसके आसपास साफ-सफाई करके आंवला वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें. फिर उसकी जड़ में कच्चा दूध डालें. पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करें और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली 8 परिक्रमा करते हुए लपेटें. कुछ जगह 108 परिक्रमा भी की जाती है. इसके बाद परिवार और संतान के सुख-समृद्धि की कामना करके वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवार, मित्रों सहित भोजन किया जाता है. 12 नवंबर 2021 दिन शुक्रवार को सुबह 06 बजकर 50 से दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक पूजन का शुभ मुहूर्त है.
प्रयागराज में आंवला नवमी पर हुआ पूजन.

प्रयागराज में हुआ पूजन-अर्चन

शुक्रवार को आंवला नवमी के मौके पर प्रयागराज के मिंटो पार्क में महिलाओं द्वारा आस्था के साथ आंवले के वृक्ष की पूजा अर्चना की गई. कच्चे सूत के साथ वृक्ष की परिक्रमा की गई. ज्योतिषाचार्य विनोद चौबे ने बताया कि इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से अक्षय की प्राप्ति होती है, इसलिए इसको अक्षय नवमी भी कहा जाता है. ज्योतिषाचार्य ने बताया कि आंवला नवमी के दिन आंवला वृक्ष की जड़ में विष्णुजी की पूजा की जाती है, साथ ही इस दिन कुंडली में मंगल दोष वाले लोगों द्वारा अगर पूजा की जाती है तो उन्हें अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. उधर, पूजन करने पहुंचीं श्रद्धालु कुमकुम कहतीं हैं कि कार्तिक मास में आंवला नवमी का विशेष महत्व है. आंवला के वृक्ष के पूजन की है.

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Last Updated : Nov 12, 2021, 4:35 PM IST
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