प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को सीएए के विरोध में हो रहे प्रदर्शन में पुलिसिया उत्पीड़न की शिकायतों पर कार्रवाई का ब्योरा पेश करने का निर्देश दिया है. हाईकोर्ट ने पूछा है कि पुलिस के खिलाफ कितनी शिकायतें दर्ज की गईं, कितने लोग मरे और कितने घायल हुए, घायलों को चिकित्सा सुविधा मिली या नहीं. इसके साथ ही मीडिया रिपोर्ट की सत्यता की जांच की गई या नहीं. मृत लोगों के घर वालों को शव विच्छेदन रिपोर्ट दी गई या नहीं इसकी जानकारी भी कोर्ट ने मांगी है. कोर्ट ने राज्य सरकार को 17 फरवरी तक ब्योरे के साथ हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है.
यह निर्देश मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने पीयूसीएल,पीएफआई, अजय कुमार सहित छह जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए दिया है. राज्य सरकार का पक्ष अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल और केंद्र सरकार के अधिवक्ता सभाजीत सिंह ने रखा. याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी, महमूद प्राचा सहित कई अन्य वकीलों ने बहस की.
उत्पीड़न करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ हो एफआईआर
याचिका में कहा गया कि पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत की एफआईआर दर्ज कराई जाए और हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश या एसआईटी से जांच कराई जाए. याचियों का कहना है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों का उत्पीड़न किया है, जिसकी रिपोर्ट विदेशी मीडिया में छपने से भारत की छवि को नुकसान हुआ है. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, मेरठ और अन्य नगरों में पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ शिकायतों की विवेचना कर कार्रवाई की जाए.
राज्य सरकार के बुलावे पर भेजा गया केन्द्रीय सुरक्षा बल
केंद्र सरकार ने पूर्व में दिए अपने हलफनामे में कहा था कि केन्द्रीय सुरक्षा बल राज्य सरकार के बुलावे पर भेजे गए. कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए उचित कार्रवाई की गयी है. वहीं राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि विरोध प्रदर्शन में हुई हिंसा में भारी संख्या में पुलिस भी घायल हुई है. पुलिस पर फायरिंग की गई है. प्रदर्शनकारियों ने तोड़फोड़, आगजनी कर सरकारी और व्यक्तिगत संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिसकी विवेचना की जा रही है. कोर्ट ने हर घटना और शिकायत पर की गई कार्रवाई का ब्योरा पेश करने का निर्देश दिया है.
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