तीन साल से शव गृह में रखे महिला के कंकाल पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान - female skeleton in Etawah mortuary
शुक्रवार को तीन साल से शव गृह में रखे महिला के कंकाल पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया (Allahabad High Court on woman skeleton in mortuary for 3 years). अदालत ने सरकार से पूछा कि अभी तक इटावा के शव गृह में महिला कंकाल का अंतिम संस्कार क्यों नहीं किया गया.
By ETV Bharat Uttar Pradesh Team
Published : Oct 28, 2023, 7:26 AM IST
|Updated : Oct 28, 2023, 7:35 AM IST
प्रयागराज: पिछले 3 वर्षों से इटावा के शव गृह में महिला कंकाल (Female skeleton in Etawah mortuary) लावारिस हालत में पड़े होने की जानकारी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को गंभीरता से लिया. कोर्ट ने इस मामले पर स्वत संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार और स्थानीय पुलिस अधिकारियों से इस मामले में विस्तृत जानकारी देने के लिए कहा है.
एक समाचार पत्र में इस संबंध में प्रकाशित रिपोर्ट पर स्वत संज्ञान लेते हुए मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति अजय भनोट की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार और स्थानीय पुलिस अधिकारियों से पूछा है की आमतौर पर शव ग्रहों में रखें शवों का अंतिम संस्कार करने की क्या प्रथा है. इस मामले में इतना विलंब होने की क्या वजह है.
कोर्ट ने पूछा है कि क्या ऐसा कोई नियम है, जिसके तहत राज्य सरकार को एक निश्चित समय में शवों का अंतिम संस्कार करना होता है. कोर्ट ने इस मामले में विवेचना की स्थिति और शव संरक्षित करने की पूरी टाइमलाइन बताने का निर्देश दिया है. साथ ही इस मामले से संबंधित केस डायरी और डीएनए जांच के लिए भेजे गए सैंपल और उसकी रिपोर्ट (Allahabad High Court on woman skeleton in mortuary for 3 years) के बारे में भी जानकारी मांगी है.
एक परिवार ने दावा किया है कि यह कंकाल उनकी गुमशुदा बेटी रीता का है मगर डीएनए जांच से इस मामले में अभी कोई निष्कर्ष नहीं निकला है. समाचार पत्र की रिपोर्ट पर कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को इस मामले में पूरी जानकारी उपल्ब्ध कराने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के महासचिव नितिन शर्मा को इस प्रकरण में न्याय मित्र नियुक्त करते हुए उनसे न्यायालय का सहयोग करने के लिए कहा है.
मृतक को भी जीवित व्यक्ति की तरह सम्मान का हक़: कोर्ट ने कहा कि कानून व्यवस्था का मूल्यांकन न केवल जीवित लोगों के साथ उसके व्यवहार के तरीके से किया जाना चाहिए, बल्कि मृतकों को दिए जाने वाले सम्मान से भी किया जाना चाहिए. प्रतिष्ठा अविभाज्य है. अविभाज्यता प्रतिष्ठा का एक अनिवार्य गुण है. मृत और जीवित की प्रतिष्ठा में कोई अंतर नहीं है. यह प्रतिष्ठा की अवधारणा की सर्वोत्कृष्टता है.
मृतकों की प्रतिष्ठा और जीवितों की प्रतिष्ठा जैसा कोई भी विभाजन प्रतिष्ठा को उसके अर्थ से वंचित कर देगा. कोर्ट ने कहा मृत्यु जीवन की तुच्छता को दर्शाती है. प्रतिष्ठा जीवन की सार्थकता की गवाही देती है. यदि मृतकों की प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं है, तो जीवित लोगों की प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं है. यदि मृतकों की प्रतिष्ठा को महत्व नहीं दिया जाता है, तो जीवित लोगों की प्रतिष्ठा को भी महत्व नहीं दिया जाता है.
मृतकों की अक्षमता उन्हें जीवित लोगों के प्रति असुरक्षित नहीं बनाती. संविधान मृतकों का संरक्षक है, कानून उनका सलाहकार है और अदालतें उनके अधिकारों की प्रहरी हैं. कोर्ट ने कहा कि कई बार जीवित लोगों द्वारा मृतकों को अप्रासंगिक माना जा सकता है. लेकिन मृतकों को कानून द्वारा त्यागा नहीं जाता और वे कभी भी संवैधानिक संरक्षण से वंचित नहीं होते.
मृतकों की चुप्पी उनकी आवाज़ को नहीं दबाती, न ही उनके अधिकारों को ख़त्म करती है. मृतकों के अपने अधिकार हैं, जो जीवितों से कम मूर्त नहीं हैं. कानून उनके अधिकारों पर ज़ोर देता है, अदालतें उनके अधिकारों पर ज़ोर देती हैं. प्रतिष्ठा का अधिकार ऐसा ही एक अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि इस तर्क के आधार पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 से प्राप्त प्रतिष्ठा का अधिकार मृत व्यक्तियों के लिए सुलभ बनाया गया था. इस मामले की सुनवाई 31अक्टूबर को होगी.