प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि संविधान में हिंदी और देवनागरी लिपि को राजभाषा का दर्जा दिया गया है. लेकिन दुखद है कि हिंदी को आज तक राजभाषा का दर्जा प्राप्त नहीं हो सका है. कोर्ट ने कहा कि देश के बड़े न्यायालयों व संस्थाओं तथा बड़े समाज में आज भी अंग्रेजी में काम होता है और वहां बोलचाल की भाषा भी अंग्रेजी है. हिंदी जितनी प्रतिष्ठा पाने की अधिकारी है, उतनी प्रतिष्ठा हमने उसे नहीं दी.
क्रांतिकारियों की भावनाओं की कद्र करे सरकारः कोर्ट ने कहा कि अंग्रेजी भाषा उन लोगों की भाषा है, जिन्होंने हमें सैकड़ों वर्षों तक गुलाम बना कर रखा. स्वतंत्र होने के बाद भी हिंदी राजभाषा नहीं बन पाई. कोर्ट ने भारत सरकार को सुझाव दिया है कि भारत के करोड़ों लोगों और क्रांतिकारियों की भावनाओं की कद्र करते हुए हिंदी भाषा को लेकर कानून लाए और इसे राष्ट्रभाषा घोषित करें. देश की अन्य भाषाओं का भी सम्मान होना चाहिए. हिंदी दिवस के मौके पर एक अग्रिम जमानत अर्जी की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति शेखर यादव ने यह टिप्पणी की.
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हिंदी दिवस पर हिंदी में सुनाया फैसलाः कोर्ट ने कहा कि 14 सितंबर को हिंदी भाषा दिवस मनाया जाता है. इसलिए आज के दिन मैंने सभी निर्णय हिंदी में ही दिए हैं. न्यायमूर्ति शेखर यादव ने कहा कि हिंदी भाषा सिर्फ हिंदी भाषी क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है. यह दक्षिण भारत में भी तमाम विद्वानों द्वारा सराही गई है. क्रांतिकारियों ने भी हिंदी में दिए नारों के जरिए देश में आजादी की अलख जगाई थी. उन्होंने हिंदी के कवियों व उर्दू के कवियों द्वारा हिंदी भाषा में किए गए तमाम कार्यों का उल्लेख किया. आगे कहा कि हिंदी किसी वर्ग विशेष धर्म, पंथ ,संप्रदाय की भाषा ना होकर संपूर्ण भारतवर्ष की भाषा है. हिंदी संपूर्ण भारत के कोने-कोने में सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है.