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हाई कोर्ट की टिप्पणी, फ्लैट खरीदार कब्जे में किसी भी देरी के लिए मुआवजे का दावा करने के हकदार

इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने एक मामले की सुनावई करते हुए कहा कि रेरा अधिनियम (RERA Act) के तहत प्रमोटर अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते. इसके साथ ही फ्लैट खरीदार कब्जे में किसी भी देरी के लिए मुआवजे का दावा करने के हकदार है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 28, 2023, 3:44 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक निर्णय में कहा है कि अनुबंध की शर्तों का रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम 2016 पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. प्रमोटर संविदात्मक अनुबंध में निर्धारित कोई भी शर्तें होने के बावजूद अपनी जिम्मेदारियों और देनदारियों से बच नहीं सकते हैं. साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार खरीदार कब्जे में किसी भी देरी के लिए मुआवजे का दावा करने के हकदार हैं.

मामले के तथ्यों के अनुसार यूपी आवास एवं विकास अधिनियम 1973 के तहत एक सार्वजनिक संस्थान फ्लैट के कब्जे में देरी की शिकायत का सामना कर रहा था. अपीलार्थी ने तर्क दिया कि कानून में बदलाव के कारण उसके नियंत्रण से परे देरी के कारण कब्जे में देरी हुई है. निर्णायक प्राधिकारी ने शिकायतकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया और देरी के लिए मुआवजे के रूप में ब्याज का भुगतान करने का निर्देश दिया. कई अपीलों के बावजूद अपीलीय न्यायाधिकरण ने फैसले को बरकरार रखा. अपीलार्थी ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध सबूतों के अवलोकन बाद ट्रिब्यूनल के फैसले की पुष्टि करते हुए कहा कि अनुबंध की शर्तें रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 के प्रावधानों को खत्म नहीं कर सकती हैं.

कोर्ट ने मेसर्स न्यूटेक प्रमोटर्स एंड डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के मामले में निर्णय के हवाले से कहा कि घर का खरीदार कन्वेंस डीड निष्पादित करने और यूनिट का कब्ज़ा लेने के बाद भी कब्जे में देरी के लिए मुआवजे का दावा करने का अपना अधिकार नहीं खोता है. रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम 2016 के प्रावधानों को किसी भी अनुबंध संबंधी शर्तों पर प्राथमिकता दी जाती है. प्रमोटर इस अधिनियम के तहत अपनी जिम्मेदारियों और देनदारियों को पूरा करने के लिए बाध्य हैं.

इसे भी पढ़ें-सरकारी कर्मचारी के सर्विस रिकॉर्ड में दर्ज जन्मतिथि बदली नहीं जा सकती, हाई कोर्ट की टिप्पणी

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक निर्णय में कहा है कि अनुबंध की शर्तों का रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम 2016 पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. प्रमोटर संविदात्मक अनुबंध में निर्धारित कोई भी शर्तें होने के बावजूद अपनी जिम्मेदारियों और देनदारियों से बच नहीं सकते हैं. साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार खरीदार कब्जे में किसी भी देरी के लिए मुआवजे का दावा करने के हकदार हैं.

मामले के तथ्यों के अनुसार यूपी आवास एवं विकास अधिनियम 1973 के तहत एक सार्वजनिक संस्थान फ्लैट के कब्जे में देरी की शिकायत का सामना कर रहा था. अपीलार्थी ने तर्क दिया कि कानून में बदलाव के कारण उसके नियंत्रण से परे देरी के कारण कब्जे में देरी हुई है. निर्णायक प्राधिकारी ने शिकायतकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया और देरी के लिए मुआवजे के रूप में ब्याज का भुगतान करने का निर्देश दिया. कई अपीलों के बावजूद अपीलीय न्यायाधिकरण ने फैसले को बरकरार रखा. अपीलार्थी ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध सबूतों के अवलोकन बाद ट्रिब्यूनल के फैसले की पुष्टि करते हुए कहा कि अनुबंध की शर्तें रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 के प्रावधानों को खत्म नहीं कर सकती हैं.

कोर्ट ने मेसर्स न्यूटेक प्रमोटर्स एंड डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के मामले में निर्णय के हवाले से कहा कि घर का खरीदार कन्वेंस डीड निष्पादित करने और यूनिट का कब्ज़ा लेने के बाद भी कब्जे में देरी के लिए मुआवजे का दावा करने का अपना अधिकार नहीं खोता है. रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम 2016 के प्रावधानों को किसी भी अनुबंध संबंधी शर्तों पर प्राथमिकता दी जाती है. प्रमोटर इस अधिनियम के तहत अपनी जिम्मेदारियों और देनदारियों को पूरा करने के लिए बाध्य हैं.

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