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सरकारी कर्मचारी के सर्विस रिकॉर्ड में दर्ज जन्मतिथि बदली नहीं जा सकती, हाई कोर्ट की टिप्पणी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने (Allahabad high court) ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारी के सर्विस रिकॉर्ड में दर्ज जन्मतिथि नहीं बदली जा सकती.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 24, 2023, 9:20 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि सरकारी कर्मचारी द्वारा सेवा में आने के समय दर्ज कराई गई जन्म तिथि ही सभी उद्देश्यों के लिए अंतिम रूप से मान्य होगी. इसे बाद में किसी भी वजह से संशोधित नहीं किया जा सकता है. न्याय मूर्ति मंजीव शुक्ला ने सहायक अध्यापिका कविता कुरील की जन्म तिथि में संशोधन किए जाने की मांग को लेकर दाखिल याचिका को खारिज करते हुए यह निर्णय दिया है.

माध्यमिक शिक्षा परिषद की गलती से बदली जन्म तिथिः याची का कहना था कि उसकी वास्तविक जन्म तिथि 3 नवंबर 1967 है, जो कि उसने अपनी हाई स्कूल परीक्षा में पंजीकरण के समय दर्ज कराई थी. लेकिन माध्यमिक शिक्षा परिषद की गलती से उसकी जन्म तिथि 3 नवंबर 1960 दर्ज हो गई. जिसमें संशोधन के लिए उसने माध्यमिक शिक्षा परिषद के समक्ष प्रार्थना पत्र दिया था. उसका प्रार्थना पत्र लंबे समय तक परिषद के पास लंबित रहा और उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया. इस दौरान वर्ष 2006 में याची की नियुक्ति सहायक अध्यापिका के पद पर हो गई. जिसकी सेवा पुस्तिका में उसकी उस समय हाई स्कूल में दर्ज जन्मतिथि 3 नवंबर 1960 ही दर्ज की गई. याची ने जन्मतिथि में संशोधन को लेकर अपनी लड़ाई जारी रखी और अंततः माध्यमिक शिक्षा परिषद ने अपनी गलती को स्वीकार करते हुए वर्ष 2021 में उसकी मार्कशीट और हाईस्कूल के प्रमाण पत्र में जन्मतिथि को संशोधित करते हुए 3 नवंबर 1967 कर दिया.

बेसिक शिक्षा अधिकारी ने अपना आदेश लिया वापसः इसके बाद याची ने बेसिक शिक्षा अधिकारी झांसी के समक्ष प्रार्थना पत्र देकर समस्त प्रकरण से अवगत कराया और अपनी सेवा पुस्तिका में जन्मतिथि संशोधित करने की मांग की. बेसिक शिक्षा अधिकारी ने उसके मार्कशीट का माध्यमिक शिक्षा परिषद से सत्यापन करने के बाद उसकी जन्मतिथि में संशोधन का आदेश दे दिया. लेकिन बीएसए ने स्वयं अपना आदेश वापस ले लिया. बीएसए ने अपना आदेश वापस लेते समय उत्तर प्रदेश सेवायोजन( जन्मतिथि निर्धारण) नियमावली 1974 के नियम दो का हवाला दिया. जिसके अनुसार सेवा में आने के समय दर्ज कराई गई जन्मतिथि ही सभी उद्देश्यों के लिए अंतिम जन्म तिथि मानी जाएगी. इसमें किसी प्रकार का संशोधन नहीं किया जा सकता है.

याची के अधिवक्ता की दलील को कोर्ट ने किया खारिजः याची के अधिवक्ता की दलील थी कि याची को नियम दो का लाभ मिलना चाहिए. क्योंकि यदि कर्मचारी सेवा में आने के समय हाई स्कूल पास है तो उसकी हाई स्कूल के प्रमाण पत्र में दर्ज जन्मतिथि मानी जाएगी. यदि हाई स्कूल नहीं पास है तो जो जन्मतिथि सेवा में आने के समय दर्ज कराई जाएगी, वहीं अंतिम मानी जाएगी. याची सेवा में आने के समय हाई स्कूल पास थी. इसलिए उसके हाई स्कूल प्रमाण पत्र की सही जन्मतिथि को ही स्वीकार किया जाए. याचिका का विरोध करते हुए सरकारी अधिवक्ता ने कहा कि 1974 की नियमावली में 1980 में संशोधन किया गया है. संशोधित नियमावली के अनुसार कर्मचारी द्वारा सेवा में आने के समय दर्ज कराई गई जन्मतिथि को ही अंतिम माना जाएगा. बाद में किसी भी कारण से इसमें संशोधन को लेकर कोई प्रत्यावेदन अथवा प्रार्थना पत्र स्वीकार्य नहीं होगा. कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि याची द्वारा जो जन्मतिथि सेवा में आने के समय दर्ज कराई गई है. वहीं अंतिम रूप से सभी उद्देश्यों के लिए मान्य है. नियम दो के अनुसार इसमें बाद में किसी प्रकार का संशोधन नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.

इसे भी पढ़ें-हाईकोर्ट ने कहा - मनमाने तरीके से निरस्त नहीं कर सकते अंतर्जनपदीय स्थानांतरण

प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि सरकारी कर्मचारी द्वारा सेवा में आने के समय दर्ज कराई गई जन्म तिथि ही सभी उद्देश्यों के लिए अंतिम रूप से मान्य होगी. इसे बाद में किसी भी वजह से संशोधित नहीं किया जा सकता है. न्याय मूर्ति मंजीव शुक्ला ने सहायक अध्यापिका कविता कुरील की जन्म तिथि में संशोधन किए जाने की मांग को लेकर दाखिल याचिका को खारिज करते हुए यह निर्णय दिया है.

माध्यमिक शिक्षा परिषद की गलती से बदली जन्म तिथिः याची का कहना था कि उसकी वास्तविक जन्म तिथि 3 नवंबर 1967 है, जो कि उसने अपनी हाई स्कूल परीक्षा में पंजीकरण के समय दर्ज कराई थी. लेकिन माध्यमिक शिक्षा परिषद की गलती से उसकी जन्म तिथि 3 नवंबर 1960 दर्ज हो गई. जिसमें संशोधन के लिए उसने माध्यमिक शिक्षा परिषद के समक्ष प्रार्थना पत्र दिया था. उसका प्रार्थना पत्र लंबे समय तक परिषद के पास लंबित रहा और उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया. इस दौरान वर्ष 2006 में याची की नियुक्ति सहायक अध्यापिका के पद पर हो गई. जिसकी सेवा पुस्तिका में उसकी उस समय हाई स्कूल में दर्ज जन्मतिथि 3 नवंबर 1960 ही दर्ज की गई. याची ने जन्मतिथि में संशोधन को लेकर अपनी लड़ाई जारी रखी और अंततः माध्यमिक शिक्षा परिषद ने अपनी गलती को स्वीकार करते हुए वर्ष 2021 में उसकी मार्कशीट और हाईस्कूल के प्रमाण पत्र में जन्मतिथि को संशोधित करते हुए 3 नवंबर 1967 कर दिया.

बेसिक शिक्षा अधिकारी ने अपना आदेश लिया वापसः इसके बाद याची ने बेसिक शिक्षा अधिकारी झांसी के समक्ष प्रार्थना पत्र देकर समस्त प्रकरण से अवगत कराया और अपनी सेवा पुस्तिका में जन्मतिथि संशोधित करने की मांग की. बेसिक शिक्षा अधिकारी ने उसके मार्कशीट का माध्यमिक शिक्षा परिषद से सत्यापन करने के बाद उसकी जन्मतिथि में संशोधन का आदेश दे दिया. लेकिन बीएसए ने स्वयं अपना आदेश वापस ले लिया. बीएसए ने अपना आदेश वापस लेते समय उत्तर प्रदेश सेवायोजन( जन्मतिथि निर्धारण) नियमावली 1974 के नियम दो का हवाला दिया. जिसके अनुसार सेवा में आने के समय दर्ज कराई गई जन्मतिथि ही सभी उद्देश्यों के लिए अंतिम जन्म तिथि मानी जाएगी. इसमें किसी प्रकार का संशोधन नहीं किया जा सकता है.

याची के अधिवक्ता की दलील को कोर्ट ने किया खारिजः याची के अधिवक्ता की दलील थी कि याची को नियम दो का लाभ मिलना चाहिए. क्योंकि यदि कर्मचारी सेवा में आने के समय हाई स्कूल पास है तो उसकी हाई स्कूल के प्रमाण पत्र में दर्ज जन्मतिथि मानी जाएगी. यदि हाई स्कूल नहीं पास है तो जो जन्मतिथि सेवा में आने के समय दर्ज कराई जाएगी, वहीं अंतिम मानी जाएगी. याची सेवा में आने के समय हाई स्कूल पास थी. इसलिए उसके हाई स्कूल प्रमाण पत्र की सही जन्मतिथि को ही स्वीकार किया जाए. याचिका का विरोध करते हुए सरकारी अधिवक्ता ने कहा कि 1974 की नियमावली में 1980 में संशोधन किया गया है. संशोधित नियमावली के अनुसार कर्मचारी द्वारा सेवा में आने के समय दर्ज कराई गई जन्मतिथि को ही अंतिम माना जाएगा. बाद में किसी भी कारण से इसमें संशोधन को लेकर कोई प्रत्यावेदन अथवा प्रार्थना पत्र स्वीकार्य नहीं होगा. कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि याची द्वारा जो जन्मतिथि सेवा में आने के समय दर्ज कराई गई है. वहीं अंतिम रूप से सभी उद्देश्यों के लिए मान्य है. नियम दो के अनुसार इसमें बाद में किसी प्रकार का संशोधन नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.

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