प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अंतरिम आदेश से अंतिम राहत नहीं दी जा सकती. कोर्ट ने कहा कि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी में सहायक लाइब्रेरियन को शैक्षिक स्टाफ नहीं माना जा सकता, इसलिए उसे सेवानिवृत्ति तिथि से सत्रांत तक कार्य करने देने का अंतरिम आदेश सही नहीं माना जा सकता. खंडपीठ ने एकलपीठ के अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया. कहा कि याची विपक्षी 62 वर्ष की आयु पूरी करते ही सेवानिवृत्त हो जाएगा. उसे सत्रांत तक कार्य करने की अनुमति नहीं होगी.
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल (Chief Justice Rajesh Bindal) तथा न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल (Justice Piyush Agrawal) की खंडपीठ ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के कुलपति की तरफ से दाखिल विशेष अपील को स्वीकार करते हुए दिया है. याची विपक्षी जितेंद्र कुमार तिवारी 31 जुलाई 21 को सेवानिवृत्त हो गए किंतु हाईकोर्ट की एकलपीठ ने 28 मार्च 22 के आदेश से सहायक लाइब्रेरियन को शैक्षिक स्टॉफ मानते हुए शिक्षा सत्र 30 जून 22 तक कार्य करने देने का अंतरिम आदेश दिया और विश्वविद्यालय से जवाब मांगा. इसे अपील में चुनौती दी गई थी.
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विश्वविद्यालय का कहना था कि नियमावली के तहत सहायक लाइब्रेरियन शैक्षिक स्टॉफ नहीं है. इसलिए उसे सत्रांत तक कार्य करने देने का आदेश सही नहीं है. एकलपीठ ने अंतरिम आदेश से अंतिम राहत दे दी है जिसे रद्द किया जाए. विपक्षी का कहना था कि मुख्य सचिव ने 11 मार्च 15 को विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया है कि लाइब्रेरियन शैक्षिक स्टॉफ माना जाय. खंडपीठ ने कहा कि सहायक लाइब्रेरियन शैक्षिक स्टाफ नहीं है. केवल शैक्षिक स्टॉफ ही शिक्षा सत्र तक कार्य कर सकते हैं. बिना कोर्स या अध्ययन के लाइब्रेरियन को शैक्षिक स्टॉफ नहीं माना जा सकता और एकलपीठ का आदेश रद्द कर दिया.
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