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निजी मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण नहीं तो सामान्य से कम मेरिट वाले आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को कैसे दिया दाखिला: HC

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश की अनियमितता को लेकर राज्य सरकार और नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (National Testing Agency) से जवाब तलब किया है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 28, 2023, 10:02 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) आयोजित करने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी से पूछा है कि जब निजी मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण लागू नहीं है तो एमबीबीएस/बीडीएस कोर्स में सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों से कम अंक पाने वाले आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को प्रवेश कैसे दे दिया गया है. कोर्ट ने इस संदर्भ में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा एवं डायरेक्टर से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है और वैकेंसी की 11 सीटें खाली रखने का निर्देश दिया है. याचिका की अगली सुनवाई 4अक्टूबर को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी एवं न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने तनु कुमारी व 10 अन्य की याचिका पर अधिवक्ता निपुन सिंह, अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी, सीएससी बिपिन बिहारी पांडेय, एएसजीआई शशि प्रकाश सिंह और एडवोकेट अयंक मिश्र को सुनकर दिया है.

याचियों का कहना है कि उन्होंने नीट 2023 की परीक्षा दी लेकिन उन्हें काउंसिलिंग में शामिल नहीं किया गया. ऑनलाइन आवेदन करते समय ही उन्हें अयोग्य करार दे दिया गया. हाईकोर्ट ने जब नीट की गाइडलाइन के संबंध में पूछा तो बताया गया कि राजकीय मेडिकल कॉलेजों में केवल प्रदेश के अभ्यर्थियों को ही आरक्षण नियमों के तहत प्रवेश की अनुमति है. इनमें ऐसे अभ्यर्थी शामिल हैं, जिन्होंने हाईस्कूल व इंटर उत्तर प्रदेश से उत्तीर्ण किया हो. प्रदेश के बाहर के अभ्यर्थी केवल निजी मेडिकल कॉलेजों में ही प्रवेश ले सकते हैं लेकिन वहां आरक्षण लागू नहीं है। याची दूसरे प्रदेशों के अभ्यर्थी हैं. पिछले सत्र में प्रदेश के बाहर के अभ्यर्थियों को प्रवेश दिया गया था। इस वर्ष नहीं दिया जा रहा है.

इसे भी पढ़ें-Court News अमेठी के संजय गांधी अस्पताल को लाइसेंस निलंबन मामले में राहत नहीं, सुनवाई तीन अक्टूबर को होगी

सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि जो तथ्य दिशा निर्देश के माध्यम से पेश किए गए हैं, वे आपस में परस्पर विरोधी हैं. एक तरफ तो वे मान रहे हैं कि यूपी में निजी मेडिकल/डेंटल कॉलेजों में कोई आरक्षण नहीं है और सीटें अनारक्षित हैं. जबकि दूसरी ओर सरकारी आदेश का सहारा ले रहे हैं, जिसमें यह दावा किया गया है कि भारत सरकार ने एनआईआईटी (यूजी) -2023 में ओबीसी/एससी अभ्यर्थियों के लिए अंकों की न्यूनतम कट ऑफ 107 निर्धारित किया है.

कोर्ट ने कहा कि इस आधार पर अपने कदम को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं कि ये अभ्यर्थी यूपी राज्य के मूल निवासी हैं और वे ओबीसी/एससी वर्ग से संबंधित हैं. जब निजी मेडिकल कॉलेजों में कोई आरक्षण नहीं है तो याचियों की तुलना में बहुत कम अंक वाले छात्रों को निजी मेडिकल कॉलेजों में कैसे प्रवेश दिया जा सकता है. रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि कुछ विशेषाधिकार प्राप्त और अत्यधिक संपर्क वाले अभ्यर्थियों को पिछले दरवाजे से प्रवेश दिया गया है. ऐसे में मामले को ध्यान में रखते हुए हम रिक्तियों में यूजी सीटों के लिए चल रही काउंसलिंग में 11 सीटें भरने से रोकते हैं। अगली तारीख पर प्रमुख सचिव, चिकित्सा स्वास्थ्य और शिक्षा, उत्तर प्रदेश को इस बात का व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है कि ओबीसी/एससी अभ्यर्थियों को कैसे अंक प्राप्त होंगे. 120, 114 और 125 में से निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश दिया गया, जिसमें आरक्षण लागू नहीं है. उत्तर प्रदेश राज्य के बाहर के जिन अभ्यर्थियों के पास याचियों की तुलना में अधिक अंक हैं, उन्हें भाग लेने की अनुमति नहीं देने का क्या कारण था.

इसे भी पढ़ें-इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती 2023 में आयुसीमा में छूट पर जवाब मांगा

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) आयोजित करने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी से पूछा है कि जब निजी मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण लागू नहीं है तो एमबीबीएस/बीडीएस कोर्स में सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों से कम अंक पाने वाले आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को प्रवेश कैसे दे दिया गया है. कोर्ट ने इस संदर्भ में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा एवं डायरेक्टर से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है और वैकेंसी की 11 सीटें खाली रखने का निर्देश दिया है. याचिका की अगली सुनवाई 4अक्टूबर को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी एवं न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने तनु कुमारी व 10 अन्य की याचिका पर अधिवक्ता निपुन सिंह, अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी, सीएससी बिपिन बिहारी पांडेय, एएसजीआई शशि प्रकाश सिंह और एडवोकेट अयंक मिश्र को सुनकर दिया है.

याचियों का कहना है कि उन्होंने नीट 2023 की परीक्षा दी लेकिन उन्हें काउंसिलिंग में शामिल नहीं किया गया. ऑनलाइन आवेदन करते समय ही उन्हें अयोग्य करार दे दिया गया. हाईकोर्ट ने जब नीट की गाइडलाइन के संबंध में पूछा तो बताया गया कि राजकीय मेडिकल कॉलेजों में केवल प्रदेश के अभ्यर्थियों को ही आरक्षण नियमों के तहत प्रवेश की अनुमति है. इनमें ऐसे अभ्यर्थी शामिल हैं, जिन्होंने हाईस्कूल व इंटर उत्तर प्रदेश से उत्तीर्ण किया हो. प्रदेश के बाहर के अभ्यर्थी केवल निजी मेडिकल कॉलेजों में ही प्रवेश ले सकते हैं लेकिन वहां आरक्षण लागू नहीं है। याची दूसरे प्रदेशों के अभ्यर्थी हैं. पिछले सत्र में प्रदेश के बाहर के अभ्यर्थियों को प्रवेश दिया गया था। इस वर्ष नहीं दिया जा रहा है.

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सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि जो तथ्य दिशा निर्देश के माध्यम से पेश किए गए हैं, वे आपस में परस्पर विरोधी हैं. एक तरफ तो वे मान रहे हैं कि यूपी में निजी मेडिकल/डेंटल कॉलेजों में कोई आरक्षण नहीं है और सीटें अनारक्षित हैं. जबकि दूसरी ओर सरकारी आदेश का सहारा ले रहे हैं, जिसमें यह दावा किया गया है कि भारत सरकार ने एनआईआईटी (यूजी) -2023 में ओबीसी/एससी अभ्यर्थियों के लिए अंकों की न्यूनतम कट ऑफ 107 निर्धारित किया है.

कोर्ट ने कहा कि इस आधार पर अपने कदम को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं कि ये अभ्यर्थी यूपी राज्य के मूल निवासी हैं और वे ओबीसी/एससी वर्ग से संबंधित हैं. जब निजी मेडिकल कॉलेजों में कोई आरक्षण नहीं है तो याचियों की तुलना में बहुत कम अंक वाले छात्रों को निजी मेडिकल कॉलेजों में कैसे प्रवेश दिया जा सकता है. रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि कुछ विशेषाधिकार प्राप्त और अत्यधिक संपर्क वाले अभ्यर्थियों को पिछले दरवाजे से प्रवेश दिया गया है. ऐसे में मामले को ध्यान में रखते हुए हम रिक्तियों में यूजी सीटों के लिए चल रही काउंसलिंग में 11 सीटें भरने से रोकते हैं। अगली तारीख पर प्रमुख सचिव, चिकित्सा स्वास्थ्य और शिक्षा, उत्तर प्रदेश को इस बात का व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है कि ओबीसी/एससी अभ्यर्थियों को कैसे अंक प्राप्त होंगे. 120, 114 और 125 में से निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश दिया गया, जिसमें आरक्षण लागू नहीं है. उत्तर प्रदेश राज्य के बाहर के जिन अभ्यर्थियों के पास याचियों की तुलना में अधिक अंक हैं, उन्हें भाग लेने की अनुमति नहीं देने का क्या कारण था.

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