प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा के बांके बिहारी मंदिर के नाम दर्ज जमीन को राजस्व अभिलेखों में पहले कब्रिस्तान, फिर पुरानी आबादी दर्ज करने को गंभीरता से लिया है. तहसीलदार छाता को 17 अगस्त को स्पष्टीकरण के साथ तलब किया है. कोर्ट ने तहसीलदार छाता से पूछा है कि शाहपुर गांव के भूखंड संख्या 1081 की स्थिति राजस्व अधिकारी की ओर से समय-समय पर क्यों बदली गई ?.
1994 का है मामला : यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने श्री बिहारी जी सेवा ट्रस्ट की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दी. याचिका के अनुसार प्राचीन काल से ही गाटा संख्या 1081 बांके बिहारी महाराज के नाम से दर्ज था. भोला खान पठान ने राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से 1994 में उक्त भूमि को कब्रिस्तान में दर्ज करा लिया. जानकारी होने पर मंदिर ट्रस्ट ने आपत्ति दाखिल की. प्रकरण वक्फ बोर्ड तक गया और सात सदस्यीय टीम ने जांच में पाया कि कब्रिस्तान गलत दर्ज किया गया है. इसके बावजूद जमीन पर बिहारी जी का नाम नहीं दर्ज किया गया. इस पर यह याचिका दायर की गई.
मंदिर ट्रस्ट ने आपत्ति से खुला था मामला : जमीन को अभिलेखों के गलत तरीके से दर्ज करने का यह मामला मंदिर ट्रस्ट की आपत्ति के बाद खुला था. मामले की जांच न होती तो जमीन कब्रिस्तान के नाम पर ही दर्ज रह जाती, हालांकि वक्फ बोर्ड की जांच में यह स्पष्ट होने के बाद कि जमीन बांके बिहारी मंदिर की है, इसके बाद भी नाम नहीं चढ़ाया गया. यह किन कारणों से हुआ, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है.
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