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इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश, याचिका पर पुनर्विचार तभी होगा जब कुछ नया साक्ष्य सामने आया हो

प्रयागराज महाधिवक्ता कार्यालय में इलेक्ट्रिफिकेशन के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर पुनर्विचार करने से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि याचिका में कुछ नया सामने आने के बाद ही पुनर्विचार किया जा सकता है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 22, 2023, 10:59 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महाधिवक्ता कार्यालय (अंबेडकर भवन) में इलेक्टिफिकेशन कार्य कराए जाने में अनियमितता की शिकायत करने वाली जनहित याचिका को खारिज करने के अपने आदेश पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया. साथ ही याची अरुण मिश्रा के पुनर्विचार अर्जी को भी खारिज कर दिया. याचिका पर न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी और न्यायमूर्ति जेके मुनीर की खंडपीठ ने सुनवाई की. बिजली विभाग के अधिवक्ता नरेंद्र कुमार तिवारी ने याचिका का प्रतिवाद किया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा पारित किसी आदेश पर पुनर्विचार तभी किया जा सकता है, जब उस मामले में कोई नया साक्ष्य सामने आया हो. इसके अलावा जो पूर्व में आदेश पारित करते समय याची की जानकारी में न हो अथवा रिकॉर्ड में कोई गलती पाई गई हो जो कि साधारण रूप से रिकॉर्ड देखने पर नजर आए. मगर इस आधार पर किसी आदेश पर पुनर्विचार नहीं किया जा सकता है कि वह आदेश गलत था, क्योंकि यह अपील क्षेत्राधिकार में आता है.

हाईकोर्ट के अधिवक्ता अरुण मिश्रा ने वर्ष 2022 में एक जनहित याचिका दाखिल कर महाधिवक्ता कार्यालय में कराए गए इलेक्ट्रिफिकेशन कार्य में अनियमितता और घोटाले का आरोप लगाया था. उन्होंने मांग की थी कि इस पूरे मामले की जांच कराई जाए. कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद याचिका को तथ्यहीन पाते हुए खारिज कर दिया था. इसके बाद अरुण मिश्रा की ओर से इसी आदेश में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट से अपने फैसले पर फिर से विचार करने की मांग की गई. कोर्ट का कहना था कि किसी फैसले पर पुनर्विचार सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 47 रूल वन सपठित धारा 141 में दिए गए आधारों पर ही किया जा सकता है. पक्षकार के लिए अदालत को इस बात पर संतुष्ट करना जरूरी है कि कोई नया साक्ष्य जो कि आदेश होने के बाद उजागर हुआ है. हालांकि पूर्व में इसके लिए पूरा प्रयास किया गया था या रिकॉर्ड में ऐसी कोई गलती है जो गंभीर है और रिकॉर्ड को देखने से जाहिर हो रही है या इसी प्रकार का कोई अन्य आधार है. कोर्ट ने कहा कि आदेश में किसी गलती पर रिव्यू कोर्ट अपीलेट कोर्ट की तरह आदेश की मेरिट पर विचार नहीं कर सकती है और रिव्यू के नाम पर प्रकरण की पुनः सुनवाई नहीं की जा सकती है. इसके बाद हाईकोर्ट ने याची की रिव्यू पिटीशन खारिज कर दी है.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महाधिवक्ता कार्यालय (अंबेडकर भवन) में इलेक्टिफिकेशन कार्य कराए जाने में अनियमितता की शिकायत करने वाली जनहित याचिका को खारिज करने के अपने आदेश पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया. साथ ही याची अरुण मिश्रा के पुनर्विचार अर्जी को भी खारिज कर दिया. याचिका पर न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी और न्यायमूर्ति जेके मुनीर की खंडपीठ ने सुनवाई की. बिजली विभाग के अधिवक्ता नरेंद्र कुमार तिवारी ने याचिका का प्रतिवाद किया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा पारित किसी आदेश पर पुनर्विचार तभी किया जा सकता है, जब उस मामले में कोई नया साक्ष्य सामने आया हो. इसके अलावा जो पूर्व में आदेश पारित करते समय याची की जानकारी में न हो अथवा रिकॉर्ड में कोई गलती पाई गई हो जो कि साधारण रूप से रिकॉर्ड देखने पर नजर आए. मगर इस आधार पर किसी आदेश पर पुनर्विचार नहीं किया जा सकता है कि वह आदेश गलत था, क्योंकि यह अपील क्षेत्राधिकार में आता है.

हाईकोर्ट के अधिवक्ता अरुण मिश्रा ने वर्ष 2022 में एक जनहित याचिका दाखिल कर महाधिवक्ता कार्यालय में कराए गए इलेक्ट्रिफिकेशन कार्य में अनियमितता और घोटाले का आरोप लगाया था. उन्होंने मांग की थी कि इस पूरे मामले की जांच कराई जाए. कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद याचिका को तथ्यहीन पाते हुए खारिज कर दिया था. इसके बाद अरुण मिश्रा की ओर से इसी आदेश में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट से अपने फैसले पर फिर से विचार करने की मांग की गई. कोर्ट का कहना था कि किसी फैसले पर पुनर्विचार सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 47 रूल वन सपठित धारा 141 में दिए गए आधारों पर ही किया जा सकता है. पक्षकार के लिए अदालत को इस बात पर संतुष्ट करना जरूरी है कि कोई नया साक्ष्य जो कि आदेश होने के बाद उजागर हुआ है. हालांकि पूर्व में इसके लिए पूरा प्रयास किया गया था या रिकॉर्ड में ऐसी कोई गलती है जो गंभीर है और रिकॉर्ड को देखने से जाहिर हो रही है या इसी प्रकार का कोई अन्य आधार है. कोर्ट ने कहा कि आदेश में किसी गलती पर रिव्यू कोर्ट अपीलेट कोर्ट की तरह आदेश की मेरिट पर विचार नहीं कर सकती है और रिव्यू के नाम पर प्रकरण की पुनः सुनवाई नहीं की जा सकती है. इसके बाद हाईकोर्ट ने याची की रिव्यू पिटीशन खारिज कर दी है.

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