प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी धर्मांतरण अध्यादेश को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है. हाईकोर्ट ने अध्यादेश के कानून बन जाने के आधार पर इन याचिकाओं को खारिज किया है. कोर्ट ने कहा कि अध्यादेश के एक्ट बन जाने के बाद अब इसे चुनौती देने का कोई औचित्य नहीं है. कोर्ट ने धर्मांतरण कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है. दो अगस्त को मामले में अगली सुनवाई होगी.
अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने अदालत में सरकार की ओर से पक्ष रखा. धर्मांतरण अध्यादेश को चार अलग-अलग याचिकाओं में चुनौती दी गई थी. जस्टिस एमएन भंडारी और जस्टिस अजय त्यागी की खंडपीठ ने यह आदेश दिया.
राज्य विधि आयोग ने 2019 में सौंपी थी रिपोर्ट
राज्य विधि आयोग ने नवंबर 2019 में गैर-कानूनी धर्मांतरण के विषय पर अध्ययन करने के बाद मुख्यमंत्री को रिपोर्ट सौंपी थी. रिपोर्ट में प्रस्तावित अधिनियम का प्रारूप भी संलग्न किया गया था. प्रस्तावित अधिनियम में यह व्यवस्था की गई थी कि अगर किसी व्यक्ति के द्वारा लालच देकर, किसी षड्यंत्र के द्वारा, अच्छी शिक्षा का आश्वासन देकर, भय दिखा कर या अन्य किसी भी कारण से किसी व्यक्ति का धर्मांतरण कराया जाता है तो वह विधि के विरुद्ध होगा. वह धर्मांतरण अवैध माना जाएगा. इसमें षड्यंत्र करने वाले के खिलाफ दंड का प्रावधान भी किया गया है.
नवंबर 2020 में पारित हुआ अध्यादेश
इसके बाद उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए नवंबर महीने के चौथे सप्ताह में 'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020' के मसौदे को मंजूरी दी. इसके तहत मिथ्या, झूठ, जबरन, प्रभाव दिखाकर, धमकाकर, लालच देकर, विवाह के नाम पर या धोखे से किया या कराया गया धर्म परिवर्तन अपराध की श्रेणी में आएगा.
24 फरवरी 2021 को विधेयक विधानसभा में पास
इसके बाद उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक 2021 विधानसभा में 24 फरवरी दिन बुधवार को पास हो गया. संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने इस मौके पर कहा था कि धर्म परिवर्तित कर धोखाधड़ी करके शादी करने पर इस कानून के माध्यम से सजा का प्रावधान किया गया है. सदन में उन्होंने बताया कि इस तरह से धोखाधड़ी करने पर कम से कम तीन वर्ष अधिकतम 10 वर्ष जेल की सजा होगी. स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करने वाले को दो माह पहले सूचना देनी होगी.
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विपक्ष ने किया विरोध
हालांकि विपक्ष ने इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजने की सिफारिश की थी. कांग्रेस नेता विधानमंडल दल आराधना मिश्रा ने कहा था कि विवाह करना निजता से जुड़ा मामला है. इसे जबरन रोकना उचित नहीं है. इसलिए इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजा जाए, ताकि इस पर सुझाव आ सके, इसके बाद इसे लागू किया जाए. सपा के संजय गर्ग ने कहा कि यह विधेयक अधिकार छीनने वाला है, संविधान विरोधी है. लिहाजा इस विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजा जाए. वहीं बसपा नेता विधानमंडल दल लालजी वर्मा ने कहा कि इस विधेयक की जरूरत ही नहीं है. सरकर स्वतः ही वापस ले. उन्होंने कहा कि गलत तरीके से विवाह करने के मामले में कार्रवाई के लिए पहले से ही कानून मौजूद है. दो महीना पहले जिलाधिकारी और पुलिस के चक्कर काटने पड़ेंगे. यदि इतनी ही इसकी जरूरत है तो इसे प्रवर समिति को भेजा जाए.
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कानून में हैं कड़े प्रावधान
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक 2021 के तहत धर्मांतरण को रोकने के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं. इस कानून का उल्लंघन करने पर कम से कम एक वर्ष और अधिकतम पांच वर्ष की सजा होगी. कम से कम 15 हजार रुपये जुर्माना होगा. जबकि नाबालिग महिला और अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिला के संबंध में हुए अपराध में कम से कम तीन वर्ष और अधिकतम 10 वर्ष तक की सजा होगी. इसमें जुर्माने की राशि कम से कम 25 हजार रुपये होगी. वहीं सामूहिक धर्म परिवर्तन के संबंध में तीन साल से लेकर 10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है. ऐसी परिस्थिति में 50 हजार रुपये जुर्माना होगा.
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पिछले साल मुख्यमंत्री ने कानून लाने का किया था ऐलान
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले साल विधानसभा के उपचुनाव के दौरान धर्मांतरण विरोधी कानून लाने का ऐलान किया था. इसके बाद 24 नवंबर को योगी कैबिनेट द्वारा इस अध्यादेश को पारित कराया गया था. 28 नवंबर को राज्यपाल के हस्ताक्षर के साथ ही प्रदेश में इस अध्यादेश को कानून के रूप में लागू कर दिया गया. नियमानुसार किसी भी अध्यादेश को छह महीने के भीतर विधान मंडल से पारित कराना होता है. लिहाजा 24 फरवरी को विधानसभा और 25 फरवरी को विधान परिषद में उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक 2021 पारित हुआ, जिसके बाद राज्यपाल के हस्ताक्षर के साथ ही यह कानून बन गया.