प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि महिलाओं और पुरुषों की शारीरिक क्षमताओं में अंतर होता है, इसलिए शारीरिक दक्षता परीक्षा में पुरुषों के लिए कठिन व महिलाओं के लिए थोड़ी आसान शर्तें रखने से संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत समानता के अधिकार का हनन नहीं होता है. कोर्ट ने एक्साइज विभाग में कॉन्स्टेबल भर्ती के परिणाम को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया. इन याचिकाओं में महिलाओं को क्षैतिज आरक्षण के तहत आरक्षित पदों से अधिक पदों पर नियुक्ति देने के साथ ही साथ शारीरिक दक्षता परीक्षा में पुरुषों की तुलना में ढील दिए जाने को भी चुनौती दी गई थी.
प्रमोद कुमार सिंह, सिद्धार्थ पांडे और 226 अन्य की याचिकाओं पर न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने सुनवाई की. याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे, जबकि चयनित अभ्यर्थियों की ओर से अधिवक्ता सीमांत सिंह व अन्य ने बहस की. याचिका में 2016 में विज्ञापित एक्साइज विभाग के कॉन्स्टेबलों के 405 पद पर हुई नियुक्ति को चुनौती दी गई थी. इस विज्ञापन में 203 पद अनारक्षित वर्ग, 109 पद ओबीसी, 85 एससी व आठ सीटें एसटी के लिए आरक्षित थीं. वहीं, क्षैतिज आरक्षण के तहत महिलाओं के लिए 81 पद आरक्षित थे. याचिका में कहा गया कि महिलाओं का चयन आरक्षित 81 पद के सापेक्ष 143 पदों पर हुआ है जोकि गलत है. यह आरक्षण नियम का उल्लंघन है. इसी प्रकार से यह भी तर्क रखा गया कि शारीरिक दक्षता परीक्षा में महिलाओं और पुरुषों के लिए दक्षता के मानक अलग-अलग रखे गए. यह विसंगति पूर्ण व समानता के अधिकार का उल्लंघन है.
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चयनित अभ्यर्थियों की ओर से कहा गया कि महिलाओं का क्षैतिज आरक्षण 81 पदों पर ही किया गया है. शेष चयनित महिलाएं मेरिट के आधार पर पुरुषों के बराबर अंक पाने के कारण चयनित हुई हैं. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि आरक्षण लागू करने में गलती हुई है. यह भी तर्क दिया गया कि भर्ती के लिए जारी विज्ञापन में यह सभी शर्तें दी गई थीं. इसके आधार पर ही अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था. इसलिए इन शर्तों को भर्ती प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद चुनौती नहीं दी जा सकती है. कोर्ट ने मामले के तथ्यों को देखते हुए चयनित अभ्यर्थियों की दलीलों को स्वीकार किया और याचिका खारिज कर दी.