प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थाओं में पढ़ने वाले छात्रों को ऐसी गतिविधियों में शामिल होने से बचना चाहिए, जिससे उनकी संस्था की बदनामी होती है. छात्र शिक्षण संस्थाओं में पढ़ने के लिए जाते हैं, उनको संस्था को बदनाम करने वाले गतिविधि से दूर रहना चाहिए. यह टिप्पणी मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र मोहम्मद अमन खान की याचिका खारिज करते हुए की. याचिका में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सीएएए के विरोध में हुए प्रदर्शन के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई की न्यायिक जांच कराने की मांग की गई थी.
जानकारी के अनुसार 2019 में आए नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों ने प्रदर्शन किया था. प्रदर्शनकारियों पर पुलिस लाठी चार्ज हुआ साथ ही प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पैरामिलिट्री फोर्स की भी मदद लेनी पड़ी थी. इस घटना की न्यायिक जांच कराने की मांग को लेकर के इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. कोर्ट ने मामले की जांच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सौंप दी थी. मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल कर दी. इससे पूर्व के आदेश में हाईकोर्ट ने मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट पर प्रदेश सरकार को अमल करने का निर्देश दिया था.
वहीं, सरकार की ओर से हलफनामा दाखिल कर बताया गया कि मानवाधिकार आयोग की संस्तुतियों पर अमल कर दिया गया है. कुछ संस्तुतियों केंद्र सरकार और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को लागू करनी है. मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में सीआरपीएफ और आरएएफ को ऐसी स्थितियों से निपटने समय अच्छे व्यवहार करने की सिफारिश की गई है. कोर्ट ने कहा कि निसंदेह पैरामिलिट्री फोर्स ऐसी स्थितियों से निपटने में सक्षम है और वह अपडेट भी है. कोर्ट ने विश्वविद्यालय से कहा कि वह छात्रों से बेहतर संवाद बनाए रखें, ताकि बाहरी ताकतें शैक्षणिक संस्था में छात्रों को प्रभावित न कर सके. इसके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्रों के बीच बेहतर संवाद बना रहना चाहिए कोर्ट ने यह छात्रों की भी जिम्मेदारी है कि वह बाहरी तत्वों से प्रभावित ना हो.
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