प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जमानत प्रार्थना पत्रों के साथ दस्तावेजों की टाइपशुदा कॉपी का मिलान कर हलफनामे के साथ दाखिल करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि शपथकर्ता इस बात का भी हलफनामा दाखिल करेगा कि उसने टाइपशुदा कॉपी का अपनी समझ और योग्यता के मुताबिक मिलान कर लिया है. इसमें गलती पाये जाने पर शपथकर्ता के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.
ये आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने मैनपुरी के मुन्नालाल की जमानत अर्जी खारिज करते हुए दिया है. याची के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और हत्या का मुकदमा दर्ज है. इसी मामले में जमानत के लिए उसने प्रार्थना पत्र दाखिल किया. याची के अधिवक्ता ने जमानत प्रार्थना पत्र के साथ पोस्टमार्टम रिपोर्ट की फोटोकॉपी और उसकी टाइपशुदा प्रति भी दाखिल की. अधिवक्ता ने अपनी बहस के दौरान मृतक को आई जिन चोटों का जिक्र किया वे टाइपशुदा कॉपी में तो थी लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट की फोटो स्टेट कॉपी में नहीं थी.
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कोर्ट ने कहा कि ऐसी गलती अनजाने में भी हो सकती है और जानबूझकर न्यायालय को गुमराह करने के लिए भी ऐसा किया जा सकता है. इसके साथ ही निर्देश दिया कि ऐसी गलती रोकने के लिए शपथकर्ता इस बात भी हलफनामा दे कि उसने फोटो स्टेट कॉपी से टाइपशुदा प्रति का मिलान कर लिया है. दोनों के तथ्यों में कोई अंतर नहीं है. शपथ पत्र के मौजूदा प्रारूप में इस तरह का प्रावधान नहीं है, इसलिए हाईकोर्ट ने महानिबंधक को निर्देश दिया है कि शपथ पत्र में आवश्यक संसोधन करने के लिए नियमावली में उचित संसोधन कर कार्रवाई करें. इसके साथ ही अगर आवश्यक हो तो मुख्य न्यायमूर्ति से प्रासनिक स्तर पर इस संबंध में आदेश भी प्राप्त करें. याची मुन्नालाल पर अपनी पत्नी की जहर देकर हत्या करने का आरोप है. पोस्टमार्टम के बाद बिसरा की जांच में इस बात का खुलासा हुआ. कोर्ट ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए जमानत अर्जी खारिज कर दी है.