प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा है कि महिलाओं के खिलाफ हो रहे गंभीर अपराधों का मुकदमा दर्ज करने में यूपी पुलिस इतना देर क्यों लगाती है. कोर्ट ने जानना चाहा कि कई बार मुकदमा दर्ज करने में 6 माह से भी अधिक समय लग जा रहा है, ऐसी स्थिति किस वजह से है.यह टिप्पणी गाजियाबाद के अधिवक्ता मुकेश कुमार कुशवाहा की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए की. याचिका पर मुख्य न्यायमूर्ति जल राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने सुनवाई की.
याची के अधिवक्ता ने गाजियाबाद में 6 माह पूर्व हुए दुष्कर्म के एक मामले का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस ने 6 माह से भी समय अधिक बीत जाने के बाद प्राथमिकी दर्ज की. प्राथमिकी भी उचित धाराओं में दर्ज नहीं की गई. अधिवक्ता का कहना था कि इसमें 3/4 पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए था. महिला अपराधों के मामले में अक्सर या देखने में आ रहा है कि पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने में काफी विलंब कर देती है, जिससे घटना के महत्वपूर्ण साक्ष्य नष्ट हो जाते हैं. उचित धाराएं न लगाने से अभियुक्त के बच निकलने की पूरी गुंजाइश रहती है.
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प्रदेश सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल और अपर शासकीय अधिवक्ता प्रथम एके संड ने कोर्ट को बताया कि उपरोक्त मामले में पॉक्सो एक्ट की धारा 5 /6 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है. जिसमें न्यूनतम 20 वर्ष या आजीवन कारावास की सजा है. वहीं, धारा 3/4 पॉक्सो एक्ट में न्यूनतम 10 वर्ष या उम्र कैद की सजा है. लेकिन कोर्ट सरकारी वकीलों की इस बात से सहमत नहीं थी. पीठ का कहना था कि मुकदमा दर्ज करने में अत्याधिक विलंब किए जाने से तमाम महत्वपूर्ण साक्ष्य नष्ट होने का खतरा रहता है. इस मामले में 180 दिन से अधिक की देरी है. ऐसे में जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई. इस पर विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है.
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