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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मनमानी फीस वसूलने पर सरकार और स्कूलों से मांगा जवाब

कोरोना काल में मनमानी फीस वसूलने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार, बोर्डों और स्कूलों से जवाब मांगा है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि कोरोना काल के दौरान निजी स्कूल अत्यधिक स्कूल फीस वसूल करने के लिए अभिभावकों का शोषण और उत्पीड़न कर रहे हैं.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Jun 30, 2021, 10:54 PM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश भर में निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली के खिलाफ दाखिल अभिभावकों की जनहित याचिका पर राज्य सरकार, यूपी बोर्ड, सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड और विभिन्न निजी स्कूलों से जवाब मांगा है. साथ ही याचिका को आदर्श भूषण वाली जनहित याचिका के साथ संबद्ध करने का निर्देश दिया है.

यह आदेश कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति एमएन भंडारी एवं न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार की खंडपीठ ने मुरादाबाद पैरेंट्स ऑफ़ आल स्कूल एसोसिएशन के सदस्यों (अनुज गुप्ता एवं अन्य) की याचिका पर अधिवक्ता शाश्वत आनंद और अंकुर आजाद और सरकारी वकील को सुनकर दिया है.

अधिवक्ता द्वय ने बताया कि सरकारी वकील ने कहा कि सभी बोर्डों और स्कूलों में शुल्क विनियमन के लिए अदेश जारी किया गया है, जिसमें ट्यूशन फीस के अलावा अन्य शुल्क लेने पर रोक है. इसपर अधिवक्ता शाश्वत आनंद ने कहा कि सरकार के आदेश के बाद भी फीस न जमा कर पाने के कारण बच्चों को स्कूलों से निकाला जा रहा है और ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित किया जा रहा है. अभिभावकों का उत्पीड़न हो रहा है.

माता-पिता और बच्चों को किया जा रहा है प्रताड़ित

याचिका में आरोप लगाया गया है कि 2020-2021 और संपूर्ण कोरोना काल के सत्र के लिए निजी स्कूल मनमानी और अत्यधिक स्कूल फीस वसूल करने के लिए अभिभावकों का शोषण और उत्पीड़न कर रहे हैं. शुल्क के भुगतान के लिए एसएमएस और व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से माता-पिता और बच्चों को लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है. कोई भी ऐसा स्कूल नहीं है जो अनुचित शुल्क के लिए पीड़ित न कर रहा हो. देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान जब स्कूल बंद थे और कोई भी सेवा प्रदान नहीं की गई थी, उस काल के लिए भी शुल्क वसूला जा रहा है.

इसे भी पढ़ें- 69 हजार शिक्षक भर्ती: गलत प्रश्नोत्तर को लेकर खारिज याचिका के खिलाफ अपील दाखिल

याचिका में बताया गया है कि राज्य सरकार द्वारा यूपी स्व-वित्तपोषित स्वतंत्र स्कूल (शुल्क विनियमन) अधिनियम, 2018, निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों के संचालन को विनियमित करने और ऐसे शिक्षण संस्थानों द्वारा फीस की अनुचित मांगों पर लगाम लगाने के लिए बनाया गया है. उक्त अधिनियम की धारा आठ में निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा ली जाने वाली फीस को विनियमित करने और उसके संबंध में छात्रों/अभिभावकों/अभिभावकों की शिकायतों को सुनने के लिए जिलाधिकारी कि अध्यक्षता में 'जिला शुल्क नियामक समिति' के गठन का प्रावधान है, लेकिन प्रदेश में निजी स्कूलों के शुल्क विनियमन और अभिभावकों की समस्याओं के निवारण के लिए ऐसी कोई समिति नहीं बनाई गई है.

अधिनियम की धारा 4(3) में यह प्रदत्त है कि राज्य सरकार को मान्यता प्राप्त स्कूलों द्वारा मौजूदा छात्रों और नए प्रवेशित छात्रों से ली जाने वाली फीस को जनहित में प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष, असाधारण या आकस्मिक परिस्थितियों जैसे दैवीय कृत्य, महामारी आदि में विनियमित करने का सम्पूर्ण अधिकार है.

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश भर में निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली के खिलाफ दाखिल अभिभावकों की जनहित याचिका पर राज्य सरकार, यूपी बोर्ड, सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड और विभिन्न निजी स्कूलों से जवाब मांगा है. साथ ही याचिका को आदर्श भूषण वाली जनहित याचिका के साथ संबद्ध करने का निर्देश दिया है.

यह आदेश कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति एमएन भंडारी एवं न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार की खंडपीठ ने मुरादाबाद पैरेंट्स ऑफ़ आल स्कूल एसोसिएशन के सदस्यों (अनुज गुप्ता एवं अन्य) की याचिका पर अधिवक्ता शाश्वत आनंद और अंकुर आजाद और सरकारी वकील को सुनकर दिया है.

अधिवक्ता द्वय ने बताया कि सरकारी वकील ने कहा कि सभी बोर्डों और स्कूलों में शुल्क विनियमन के लिए अदेश जारी किया गया है, जिसमें ट्यूशन फीस के अलावा अन्य शुल्क लेने पर रोक है. इसपर अधिवक्ता शाश्वत आनंद ने कहा कि सरकार के आदेश के बाद भी फीस न जमा कर पाने के कारण बच्चों को स्कूलों से निकाला जा रहा है और ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित किया जा रहा है. अभिभावकों का उत्पीड़न हो रहा है.

माता-पिता और बच्चों को किया जा रहा है प्रताड़ित

याचिका में आरोप लगाया गया है कि 2020-2021 और संपूर्ण कोरोना काल के सत्र के लिए निजी स्कूल मनमानी और अत्यधिक स्कूल फीस वसूल करने के लिए अभिभावकों का शोषण और उत्पीड़न कर रहे हैं. शुल्क के भुगतान के लिए एसएमएस और व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से माता-पिता और बच्चों को लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है. कोई भी ऐसा स्कूल नहीं है जो अनुचित शुल्क के लिए पीड़ित न कर रहा हो. देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान जब स्कूल बंद थे और कोई भी सेवा प्रदान नहीं की गई थी, उस काल के लिए भी शुल्क वसूला जा रहा है.

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याचिका में बताया गया है कि राज्य सरकार द्वारा यूपी स्व-वित्तपोषित स्वतंत्र स्कूल (शुल्क विनियमन) अधिनियम, 2018, निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों के संचालन को विनियमित करने और ऐसे शिक्षण संस्थानों द्वारा फीस की अनुचित मांगों पर लगाम लगाने के लिए बनाया गया है. उक्त अधिनियम की धारा आठ में निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा ली जाने वाली फीस को विनियमित करने और उसके संबंध में छात्रों/अभिभावकों/अभिभावकों की शिकायतों को सुनने के लिए जिलाधिकारी कि अध्यक्षता में 'जिला शुल्क नियामक समिति' के गठन का प्रावधान है, लेकिन प्रदेश में निजी स्कूलों के शुल्क विनियमन और अभिभावकों की समस्याओं के निवारण के लिए ऐसी कोई समिति नहीं बनाई गई है.

अधिनियम की धारा 4(3) में यह प्रदत्त है कि राज्य सरकार को मान्यता प्राप्त स्कूलों द्वारा मौजूदा छात्रों और नए प्रवेशित छात्रों से ली जाने वाली फीस को जनहित में प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष, असाधारण या आकस्मिक परिस्थितियों जैसे दैवीय कृत्य, महामारी आदि में विनियमित करने का सम्पूर्ण अधिकार है.

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