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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया निर्देश, 2005-06 में भर्ती आरक्षियों को मिलेगा सातवें वेतन आयोग का लाभ

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2005/2006 बैच के आरक्षियों की संयुक्त रूप से दायर याचिका पर 2800 ग्रेड पे प्रदान करने और सातवें वेतन आयोग का लाभ देने को लेकर विभागीय उच्चाधिकारियों डीजीपी मुख्यालय लखनऊ को निर्देश दिया है.

2005-06 में भर्ती आरक्षियों को मिलेगा सातवें वेतन आयोग का लाभ.
2005-06 में भर्ती आरक्षियों को मिलेगा सातवें वेतन आयोग का लाभ.
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Published : Sep 29, 2020, 11:38 AM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सपा के शासनकाल में नियुक्त वर्ष 2005/2006 बैच के आरक्षियों की संयुक्त रूप से दायर याचिका पर उनकी 10 वर्ष की सेवा पूरा हो जाने के बाद 2800 ग्रेड पे प्रदान करने और सातवें वेतन आयोग का लाभ देने को लेकर विभागीय उच्चाधिकारियों डीजीपी मुख्यालय लखनऊ को निर्देश दिया है. हाईकोर्ट ने याचिका को निस्तारित करते हुए इन आरक्षियों की मांग पर विभाग को निर्णय लेने का निर्देश दिया है. प्रदेश के लगभग एक दर्जन जिलों में तैनात इन आरक्षियों ने याचिका दायर की थी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीजीपी पुलिस मुख्यालय को दिया निर्देश

जस्टिस एम के गुप्ता ने यूपी सिविल पुलिस/पीएसी में 2005/2006 में नियुक्त आरक्षियों संजीव कुमार, शिव शंकर और कई अन्य आरक्षियों की याचिका को निस्तारित कर दिया है. उसके बाद सभी सिपाहियों को प्रोन्नत वेतनमान, वरिष्ठता, वेतन वृद्धि आदि पर फैसला लेने का डीजीपी पुलिस मुख्यालय को निर्देश दिया है.

मायावती राज में बर्खास्त हुए थे सिपाही

कोर्ट ने मायावती के शासनकाल में बर्खास्त, बाद में कोर्ट के आदेश से नियुक्ति तिथि से बहाल 22 हजार सिपाहियों को वेतन वृद्धि, प्रोन्नत वेतनमान, प्रशिक्षण अवधि सहित सेवा निरंतरता के साथ वरिष्ठता निर्धारण पर निर्णय लेने का कोर्ट ने निर्देश दिया है. इस याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम ने बहस की.

सरकार अपने शासनादेश का नहीं कर रही है पालन

विजय गौतम का कहना है कि हापुड़, कानपुर नगर, मेरठ, गौतमबुद्धनगर, इलाहाबाद, वाराणसी, मथुरा, गोरखपुर, गाजियाबाद में तैनात आरक्षियों ने हाईकोर्ट की शरण ली है. आरोप है कि 2007 में बर्खास्त सिपाहियों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 26 मई 2009 को नियुक्ति तिथि से बहाल किया गया था. बर्खास्तगी अवधि को काम नहीं तो वेतन नहीं के सिद्धांत पर अवकाश माना गया. सेवा निरंतरता दी गई है, लेकिन वरिष्ठता, वेतन वृद्धि, प्रोन्नत वेतनमान, 7वें आयोग की सिफारिशों का लाभ नहीं दिया जा रहा है. जो सुप्रीम कोर्ट के दीपक कुमार केस में दिए निर्देशों की अवहेलना है. याचियों के प्रशिक्षण अवधि को सेवा निरंतरता में शामिल कर वेतनमान पाने का अधिकार है. अधिवक्ता विजय गौतम का कहना है कि सरकार स्वयं अपने शासनादेश का पालन नहीं कर रही है.

2007 में हुई थी बर्खास्तगी

मालूम हो कि 2005-06 में सपा सरकार में पुलिस/पीएसी भर्ती में चयनित 22 हजार सिपाहियों को भर्ती में धांधली के आधार पर 2007 में बर्खास्त कर दिया गया था. इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. एकलपीठ ने याचिकाएं मंजूर कर ली और सेवा निरंतरता के साथ नियुक्ति तिथि से बहाल करने का निर्देश दिया. जिसके खिलाफ विशेष अपील खारिज हो गई तो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की. कोर्ट के अंतरिम आदेश पर डीजीपी ने सभी सिपाहियों को बहाल कर लिया. बर्खास्त अवधि का वेतन नहीं दिया गया. बाद में सरकार बदलने पर एसएलपी वापस ले ली गई. कोर्ट के स्पष्ट निर्देश के बावजूद सरकार सिपाहियों को उन्हें मिलने वाले सेवा जनित लाभों से वंचित कर रही है, जिस पर ये याचिका दाखिल की गई थी.

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सपा के शासनकाल में नियुक्त वर्ष 2005/2006 बैच के आरक्षियों की संयुक्त रूप से दायर याचिका पर उनकी 10 वर्ष की सेवा पूरा हो जाने के बाद 2800 ग्रेड पे प्रदान करने और सातवें वेतन आयोग का लाभ देने को लेकर विभागीय उच्चाधिकारियों डीजीपी मुख्यालय लखनऊ को निर्देश दिया है. हाईकोर्ट ने याचिका को निस्तारित करते हुए इन आरक्षियों की मांग पर विभाग को निर्णय लेने का निर्देश दिया है. प्रदेश के लगभग एक दर्जन जिलों में तैनात इन आरक्षियों ने याचिका दायर की थी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीजीपी पुलिस मुख्यालय को दिया निर्देश

जस्टिस एम के गुप्ता ने यूपी सिविल पुलिस/पीएसी में 2005/2006 में नियुक्त आरक्षियों संजीव कुमार, शिव शंकर और कई अन्य आरक्षियों की याचिका को निस्तारित कर दिया है. उसके बाद सभी सिपाहियों को प्रोन्नत वेतनमान, वरिष्ठता, वेतन वृद्धि आदि पर फैसला लेने का डीजीपी पुलिस मुख्यालय को निर्देश दिया है.

मायावती राज में बर्खास्त हुए थे सिपाही

कोर्ट ने मायावती के शासनकाल में बर्खास्त, बाद में कोर्ट के आदेश से नियुक्ति तिथि से बहाल 22 हजार सिपाहियों को वेतन वृद्धि, प्रोन्नत वेतनमान, प्रशिक्षण अवधि सहित सेवा निरंतरता के साथ वरिष्ठता निर्धारण पर निर्णय लेने का कोर्ट ने निर्देश दिया है. इस याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम ने बहस की.

सरकार अपने शासनादेश का नहीं कर रही है पालन

विजय गौतम का कहना है कि हापुड़, कानपुर नगर, मेरठ, गौतमबुद्धनगर, इलाहाबाद, वाराणसी, मथुरा, गोरखपुर, गाजियाबाद में तैनात आरक्षियों ने हाईकोर्ट की शरण ली है. आरोप है कि 2007 में बर्खास्त सिपाहियों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 26 मई 2009 को नियुक्ति तिथि से बहाल किया गया था. बर्खास्तगी अवधि को काम नहीं तो वेतन नहीं के सिद्धांत पर अवकाश माना गया. सेवा निरंतरता दी गई है, लेकिन वरिष्ठता, वेतन वृद्धि, प्रोन्नत वेतनमान, 7वें आयोग की सिफारिशों का लाभ नहीं दिया जा रहा है. जो सुप्रीम कोर्ट के दीपक कुमार केस में दिए निर्देशों की अवहेलना है. याचियों के प्रशिक्षण अवधि को सेवा निरंतरता में शामिल कर वेतनमान पाने का अधिकार है. अधिवक्ता विजय गौतम का कहना है कि सरकार स्वयं अपने शासनादेश का पालन नहीं कर रही है.

2007 में हुई थी बर्खास्तगी

मालूम हो कि 2005-06 में सपा सरकार में पुलिस/पीएसी भर्ती में चयनित 22 हजार सिपाहियों को भर्ती में धांधली के आधार पर 2007 में बर्खास्त कर दिया गया था. इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. एकलपीठ ने याचिकाएं मंजूर कर ली और सेवा निरंतरता के साथ नियुक्ति तिथि से बहाल करने का निर्देश दिया. जिसके खिलाफ विशेष अपील खारिज हो गई तो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की. कोर्ट के अंतरिम आदेश पर डीजीपी ने सभी सिपाहियों को बहाल कर लिया. बर्खास्त अवधि का वेतन नहीं दिया गया. बाद में सरकार बदलने पर एसएलपी वापस ले ली गई. कोर्ट के स्पष्ट निर्देश के बावजूद सरकार सिपाहियों को उन्हें मिलने वाले सेवा जनित लाभों से वंचित कर रही है, जिस पर ये याचिका दाखिल की गई थी.

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