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मैनपुरी रेप केसः कोर्ट की डीजीपी को नसीहत, स्वर्ग कहीं और नहीं, अपने कर्मों का फल सभी को यहीं भोगना पड़ता है

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Published : Sep 16, 2021, 10:23 PM IST

16 सितंबर 2019 को 16 वर्षीय एक छात्रा अपने जवाहर नवोदय स्कूल में फांसी पर लटकती मिली थी. मामले में हाईकोर्ट ने एसआईटी को 6 सप्ताह में जांच पूरी करने का निर्देश दिया है. कोर्ट को बताया गया कि जांच में लापरवाही पर एएसपी, डिप्टी एसपी व आईओ को सस्पेंड कर दिया गया है. हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि इस मामले में जांच से हाईकोर्ट बार एसोसिएशन व कोर्ट को भी अवगत कराया जाय.

कोर्ट की डीजीपी को नसीहत
कोर्ट की डीजीपी को नसीहत

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट में डीजीपी ने बताया कि मैनपुरी के 16 वर्षीय स्कूली छात्रा की कॉलेज परिसर में फांसी लगाने से मौत मामले में एसआईटी की नयी जांच टीम गठित कर दी गई है और इसमें अनुभवी अधिकारियों को शामिल किया गया है. इसके पहले मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट नेडीजीपी से नसीहत के लहजे में कहा कि पैसे से कुछ नहीं होता. स्वर्ग कहीं और नहीं है, सब यहीं है. अपने कर्मों का फल सभी को भोगना पड़ता है.

हाईकोर्ट ने एसआईटी को 6 सप्ताह में जांच पूरी करने का निर्देश दिया है. कोर्ट को बताया गया कि जांच में लापरवाही पर एएसपी, डिप्टी एसपी व आईओ को सस्पेंड कर दिया गया है. हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि इस मामले में जांच से हाईकोर्ट बार एसोसिएशन व कोर्ट को भी अवगत कराया जाय.

लड़की के माता-पिता को सुरक्षा मुहैया कराने का भी कोर्ट ने निर्देश दिया है. कोर्ट को सरकार की तरफ से बताया गया कि एडीजी कानून व्यवस्था की निगरानी में जांच पूरी की जाएगी. कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश की प्रति जिला जज मैनपुरी को भी भेजी जाय, जिसे वहां के सभी न्यायिक अधिकारियों को सर्कुलेट किया जाय.

हाईकोर्ट ने डीजीपी को निर्देश दिया है कि बलात्कार के मामले में दो माह में जांच पूरी करने को लेकर सर्कुलर जारी किया जाय और विवेचना पुलिस का प्रशिक्षण कराया जाय. डीजीपी ने कोर्ट को बताया कि मैनपुरी के तत्कालीन रिटायर एसपी को सेवानिवृत्ति लाभ का भुगतान रोक दिया गया है. उन्हें केवल प्राविजनल पेंशन का भुगतान किया जा रहा है.

हाईकोर्ट ने डीजीपी समेत सभी उपस्थित पुलिस अधिकारियों की हाजिरी माफ कर दी, लेकिन कोर्ट ने अधिकारियों के कोर्ट रूम से बाहर निकलने से पूर्व मार्मिक टिप्पणी भी की और कहा कि स्वर्ग कही और नहीं है. सबको अपने कर्मों का फल यही भुगतान पड़ता है. कोर्ट ने डीजीपी से यह भी कहा कि पुलिस को जांच के लिए ट्रेनिंग की जरूरत है. अधिकांश जांच कान्सटेबिल करता है. दरोगा कभी-कभी जाता है.

जानें क्या है पूरा मामला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मैनपुरी में दो साल पहले जवाहर नवोदय विद्यालय में एक नाबालिग छात्रा की फांसी लगाकर आत्महत्या के मामले में सवालों का जवाब न दे पाने पर नाराजगी जताते हुए डीजीपी मुकुल गोयल को रोक लिया था. कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति एमएन भंडारी एवं न्यायमूर्ति एके ओझा की खंडपीठ ने डीजीपी के अलावा आईजी मोहित अग्रवाल व इस मामले में गठित एसआईटी के सदस्य पुलिस अधिकारियों को भी गुरुवार को फिर हाजिर होने का निर्देश दिया था.

कोर्ट ने कहा था कि मामले में न्यायालय द्वारा दिखाई गई गंभीरता और जांच के तरीके के साथ दोषी पुलिस अधिकारी के खिलाफ निर्देश के बावजूद कोई अनुवर्ती कार्रवाई नहीं की गई है. बल्कि मामले की जानकारी डीजीपी को नहीं दी जा रही है. मामले की गंभीरता को देखते हुए डीजीपी और एसआईटी के सदस्य जांच करने में पुलिस अधिकारियों की कार्रवाई के बारे में स्पष्ट करने के लिए अदालत में उपस्थित रहेंगे और आगे यह भी बताएंगे कि तत्कालीन पुलिस अधीक्षक मैनपुरी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई लगभग छह महीने पहले उनकी सेवानिवृत्ति से पहले क्यों नहीं पूरी की जा सकी.

डीजीपी मुकुल गोयल से कोर्ट ने इस मामले से जुड़े कई सवाल किए थे. कोर्ट ने अभियुक्तों का बयान लेकर छोड़ देने और उनकी गिरफ्तारी नहीं करने को कोर्ट ने गंभीरता से लिया था. सुनवाई की शुरुआत में छात्रा की फांसी के बाद हुए शव के पंचनामे की वीडियो रिकार्डिंग देखने के बाद कोर्ट ने डीजीपी से पूछा था कि किसी के भी खिलाफ गंभीर धाराओं में रिपोर्ट दर्ज होने पर पहला काम क्या करते हैं? डीजीपी ने जवाब दिया कि गिरफ्तारी.

कोर्ट ने कहा था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नाबालिग के कपड़ों पर सीमेन पाया गया है. उसके सिर पर चोट के निशान थे. इसके बाद भी तीन महीने बाद अभियुक्तों का केवल बयान ही लिया गया, ऐसा क्यों? इस पर डीजीपी मुकुल गोयल ने कहा कि फिर से एसआईटी गठित कर देते हैं.

16 सितंबर 2019 को 16 वर्षीय एक छात्रा अपने जवाहर नवोदय स्कूल में फांसी पर लटकती मिली थी. पुलिस ने शुरू में दावा किया था कि आत्महत्या का मामला है. दूसरी ओर उसकी मां ने आरोप लगाया था कि उसे परेशान किया गया, पीटा गया और जब वह मर गई तो उसे फांसी के फंदे पर लटका दिया गया. घटना को लेकर छात्रों ने प्रोटेस्ट किया था. परिवार ने भी कई दिनों तक धरना दिया था. मृतका के पिता ने मुख्यमंत्री से जांच की गुहार लगाई तो एसआईटी ने जांच की गई. 24 अगस्त 2021 को एसआईटी ने केस डायरी हाईकोर्ट में पेश की थी.

पुलिस विवेचना के तरीके पर हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी

कोर्ट ने कहा छात्रा के पिता का बयान दर्ज नहीं किया गया और 5.30 से6बजे सुबह हुई घटना की सूचना परिजनों को न देने से संदेह पैदा होता है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश भंडारी ने मैनपुरी छात्रा के फांसी लगाने के मामले में तलब प्रदेश के डीजीपी मुकुल गोयल से कहा विवेचना सही न होने के कारण भारत में अपराध की सजा की दर मात्र 6.5 फीसदी है. जब कि कई देशों में 85 फीसदी केस में सजा मिल रही है.

कोर्ट ने कहा कि पुलिस आरोपी से असलहे बरामद नहीं करती, प्लांट करती है और बैलेस्टिक जांच रिपोर्ट में असलहे से फायर के साक्ष्य नहीं मिलने से आरोपी बरी हो जाते हैं. विवेचना फेयर होनी चाहिए. खून की फोरेंसिक जांच में देरी होती है, जिससे वांछित परिणाम नहीं मिलते. इसीलिए अपराधियों में भय नहीं है. अपराधी अपराध कर जमानत पर रिहा होकर स्वतंत्र घूमते हैं. सोचते हैं अपराध करो, कुछ नहीं होगा. कोर्ट ने नसीहत के लहजे में कहा कि पैसे से कुछ नहीं होता. स्वर्ग कहीं और नहीं है, सब यहीं है. अपने कर्मों का फल सभी को भोगना पड़ता है. नामित आरोपियों को अभिरक्षा में नहीं लिया गया, जब कि कार्रवाई होनी चाहिए थी. कोर्ट ने कहा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 में स्पष्ट है कि अपराध की विवेचना दो माह में पूरी कर ली जाय. किन्तु इसका पालन नहीं किया जा रहा.

पढ़ें- हाईकोर्ट ने वाराणसी के पुलिस कमिश्नर से पूछा लापता व्यक्ति को क्यों नहीं कर पा रहे तलाश

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट में डीजीपी ने बताया कि मैनपुरी के 16 वर्षीय स्कूली छात्रा की कॉलेज परिसर में फांसी लगाने से मौत मामले में एसआईटी की नयी जांच टीम गठित कर दी गई है और इसमें अनुभवी अधिकारियों को शामिल किया गया है. इसके पहले मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट नेडीजीपी से नसीहत के लहजे में कहा कि पैसे से कुछ नहीं होता. स्वर्ग कहीं और नहीं है, सब यहीं है. अपने कर्मों का फल सभी को भोगना पड़ता है.

हाईकोर्ट ने एसआईटी को 6 सप्ताह में जांच पूरी करने का निर्देश दिया है. कोर्ट को बताया गया कि जांच में लापरवाही पर एएसपी, डिप्टी एसपी व आईओ को सस्पेंड कर दिया गया है. हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि इस मामले में जांच से हाईकोर्ट बार एसोसिएशन व कोर्ट को भी अवगत कराया जाय.

लड़की के माता-पिता को सुरक्षा मुहैया कराने का भी कोर्ट ने निर्देश दिया है. कोर्ट को सरकार की तरफ से बताया गया कि एडीजी कानून व्यवस्था की निगरानी में जांच पूरी की जाएगी. कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश की प्रति जिला जज मैनपुरी को भी भेजी जाय, जिसे वहां के सभी न्यायिक अधिकारियों को सर्कुलेट किया जाय.

हाईकोर्ट ने डीजीपी को निर्देश दिया है कि बलात्कार के मामले में दो माह में जांच पूरी करने को लेकर सर्कुलर जारी किया जाय और विवेचना पुलिस का प्रशिक्षण कराया जाय. डीजीपी ने कोर्ट को बताया कि मैनपुरी के तत्कालीन रिटायर एसपी को सेवानिवृत्ति लाभ का भुगतान रोक दिया गया है. उन्हें केवल प्राविजनल पेंशन का भुगतान किया जा रहा है.

हाईकोर्ट ने डीजीपी समेत सभी उपस्थित पुलिस अधिकारियों की हाजिरी माफ कर दी, लेकिन कोर्ट ने अधिकारियों के कोर्ट रूम से बाहर निकलने से पूर्व मार्मिक टिप्पणी भी की और कहा कि स्वर्ग कही और नहीं है. सबको अपने कर्मों का फल यही भुगतान पड़ता है. कोर्ट ने डीजीपी से यह भी कहा कि पुलिस को जांच के लिए ट्रेनिंग की जरूरत है. अधिकांश जांच कान्सटेबिल करता है. दरोगा कभी-कभी जाता है.

जानें क्या है पूरा मामला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मैनपुरी में दो साल पहले जवाहर नवोदय विद्यालय में एक नाबालिग छात्रा की फांसी लगाकर आत्महत्या के मामले में सवालों का जवाब न दे पाने पर नाराजगी जताते हुए डीजीपी मुकुल गोयल को रोक लिया था. कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति एमएन भंडारी एवं न्यायमूर्ति एके ओझा की खंडपीठ ने डीजीपी के अलावा आईजी मोहित अग्रवाल व इस मामले में गठित एसआईटी के सदस्य पुलिस अधिकारियों को भी गुरुवार को फिर हाजिर होने का निर्देश दिया था.

कोर्ट ने कहा था कि मामले में न्यायालय द्वारा दिखाई गई गंभीरता और जांच के तरीके के साथ दोषी पुलिस अधिकारी के खिलाफ निर्देश के बावजूद कोई अनुवर्ती कार्रवाई नहीं की गई है. बल्कि मामले की जानकारी डीजीपी को नहीं दी जा रही है. मामले की गंभीरता को देखते हुए डीजीपी और एसआईटी के सदस्य जांच करने में पुलिस अधिकारियों की कार्रवाई के बारे में स्पष्ट करने के लिए अदालत में उपस्थित रहेंगे और आगे यह भी बताएंगे कि तत्कालीन पुलिस अधीक्षक मैनपुरी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई लगभग छह महीने पहले उनकी सेवानिवृत्ति से पहले क्यों नहीं पूरी की जा सकी.

डीजीपी मुकुल गोयल से कोर्ट ने इस मामले से जुड़े कई सवाल किए थे. कोर्ट ने अभियुक्तों का बयान लेकर छोड़ देने और उनकी गिरफ्तारी नहीं करने को कोर्ट ने गंभीरता से लिया था. सुनवाई की शुरुआत में छात्रा की फांसी के बाद हुए शव के पंचनामे की वीडियो रिकार्डिंग देखने के बाद कोर्ट ने डीजीपी से पूछा था कि किसी के भी खिलाफ गंभीर धाराओं में रिपोर्ट दर्ज होने पर पहला काम क्या करते हैं? डीजीपी ने जवाब दिया कि गिरफ्तारी.

कोर्ट ने कहा था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नाबालिग के कपड़ों पर सीमेन पाया गया है. उसके सिर पर चोट के निशान थे. इसके बाद भी तीन महीने बाद अभियुक्तों का केवल बयान ही लिया गया, ऐसा क्यों? इस पर डीजीपी मुकुल गोयल ने कहा कि फिर से एसआईटी गठित कर देते हैं.

16 सितंबर 2019 को 16 वर्षीय एक छात्रा अपने जवाहर नवोदय स्कूल में फांसी पर लटकती मिली थी. पुलिस ने शुरू में दावा किया था कि आत्महत्या का मामला है. दूसरी ओर उसकी मां ने आरोप लगाया था कि उसे परेशान किया गया, पीटा गया और जब वह मर गई तो उसे फांसी के फंदे पर लटका दिया गया. घटना को लेकर छात्रों ने प्रोटेस्ट किया था. परिवार ने भी कई दिनों तक धरना दिया था. मृतका के पिता ने मुख्यमंत्री से जांच की गुहार लगाई तो एसआईटी ने जांच की गई. 24 अगस्त 2021 को एसआईटी ने केस डायरी हाईकोर्ट में पेश की थी.

पुलिस विवेचना के तरीके पर हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी

कोर्ट ने कहा छात्रा के पिता का बयान दर्ज नहीं किया गया और 5.30 से6बजे सुबह हुई घटना की सूचना परिजनों को न देने से संदेह पैदा होता है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश भंडारी ने मैनपुरी छात्रा के फांसी लगाने के मामले में तलब प्रदेश के डीजीपी मुकुल गोयल से कहा विवेचना सही न होने के कारण भारत में अपराध की सजा की दर मात्र 6.5 फीसदी है. जब कि कई देशों में 85 फीसदी केस में सजा मिल रही है.

कोर्ट ने कहा कि पुलिस आरोपी से असलहे बरामद नहीं करती, प्लांट करती है और बैलेस्टिक जांच रिपोर्ट में असलहे से फायर के साक्ष्य नहीं मिलने से आरोपी बरी हो जाते हैं. विवेचना फेयर होनी चाहिए. खून की फोरेंसिक जांच में देरी होती है, जिससे वांछित परिणाम नहीं मिलते. इसीलिए अपराधियों में भय नहीं है. अपराधी अपराध कर जमानत पर रिहा होकर स्वतंत्र घूमते हैं. सोचते हैं अपराध करो, कुछ नहीं होगा. कोर्ट ने नसीहत के लहजे में कहा कि पैसे से कुछ नहीं होता. स्वर्ग कहीं और नहीं है, सब यहीं है. अपने कर्मों का फल सभी को भोगना पड़ता है. नामित आरोपियों को अभिरक्षा में नहीं लिया गया, जब कि कार्रवाई होनी चाहिए थी. कोर्ट ने कहा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 में स्पष्ट है कि अपराध की विवेचना दो माह में पूरी कर ली जाय. किन्तु इसका पालन नहीं किया जा रहा.

पढ़ें- हाईकोर्ट ने वाराणसी के पुलिस कमिश्नर से पूछा लापता व्यक्ति को क्यों नहीं कर पा रहे तलाश

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