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आलोक ने कूड़ा बीनने वाले हाथों में थमाई किताब, बदल गई मैले कपड़ों में लिपटी कई जिंदगी

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Published : Sep 5, 2020, 8:17 PM IST

देश में शिक्षा और रोजगार एक बड़ी समस्या है. सरकार के तमाम कोशिशों के बावजूद भी देश में करोड़ों गरीब बच्चे प्राथमिक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं. ऐसे में प्रतापगढ़ के शिक्षक आलोक सिंह अपनी मेहनत से उन गरीब बच्चों को शिक्षा देते हुए मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं. देखिए यह खास रिपोर्ट.

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गरीब बच्चों को शिक्षा देते आलोक.

प्रतापगढ़: तब जंग-ए-आजादी का दौर था, जब देश के कोने-कोने से स्वतंत्रता आंदोलन के सारथी घरों से निकल पड़े थे. अब हम स्वतंत्र हैं, तो हमारे लिए मौलिक अधिकार एक बड़ा सवाल है. इन सबमें शिक्षा एक मात्र रास्ता है, जिसके जरिए हम अपने अधिकारों के लिए लड़ भी सकते हैं और देश को आगे ले जा सकते हैं. लेकिन अगर 2011 के जनगणना डेटा को देखें तो हम पाते हैं कि देश के 78 लाख बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ कमाई भी करनी पड़ती है, तो वहीं 8.4 करोड़ बच्चे आज भी स्कूलों से वंचित हैं. यह आंकड़े अब और भी हो सकते हैं. ऐसे में प्रतापगढ़ के शिक्षक आलोक सिंह गरीब बच्चों के लिए शिक्षा की अलख जगा रहे हैं. आलोक सिंह सैकड़ों बच्चों को शिक्षा की रोशनी से प्रकाशित करने का अभियान चला रहे हैं.

गरीब बच्चों को शिक्षा देते आलोक.

आलोक हर रोज जिंदगी की जंग लड़ने वाले और कूड़ा इकट्ठा कर अपना पेट भरने वाले बच्चों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं. शाम होते ही मैले कुचैले कपड़ों में लिपटी मासूम जिंदगियां, हाथों में कॉपी किताब लेकर बैठ जाती हैं. ब्लैक बोर्ड पर मास्टर जी उन्हें क से कमल ख से खरगोश पढ़ाने में जुट जाते हैं.

शहर के दहिलामऊ के रहने वाले आलोक कुमार सिंह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडलिस्ट हैं. हर सामाजिक कार्य में वह बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते रहते हैं. करीब आठ साल पहले वह शहर के रामलीला मैदान में बाइक से टहल रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि कुछ बच्चे मैले कपड़ों में कूड़े के ढेर में कुछ ढूंढ रहे थे. पास ही कुछ दूर पर करीब तीन दर्जन झोपड़ियां थी, जिनमें लोग रहते थे. इन लोगों के बच्चे गंदी और बदबूदार जिंदगी जीने को मजबूर थे. इनके लिए न तो सरकार की योजनाएं थीं और न ही इनकी किसी को सुध थी. ये बच्चे एक अलग जिंदगी जी रहे थे. ये लोग सामने शहर की रोशनी, गाड़ियों की आवाज और चहल पहल में कही खो से गए थे, शिक्षा से इनका कोई लेना देना नहीं था, लेकिन आलोक सिंह ने उन्हें शिक्षा देते हुए मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास किया. आलोक 2012 से यह काम कर रहे हैं.

आलोक सिंह बताते हैं कि इन लोगों को देखकर मन में एक विचार कौंधा कि क्यों न इन्हें शिक्षा की रोशनी से चित-परिचित कराया जाय. दूसरे दिन से ही हम इस काम मे जुट गए. पहले तो लैपटॉप में बच्चों को तस्वीरें, वीडियो दिखाकर दोस्ती की फिर उन्हें कॉपी, किताब पेंसिल दिया. धीरे-धीरे उनके मन में पढ़ाई की ललक पैदा की और फिर यह सिलसिला निकल पड़ा. शाम होते ही मैं और मेरा साथी श्लोक कुमार उस मलीन बस्ती में ब्लैक बोर्ड लेकर पहुंच जाते. अंधेरा होने तक पढ़ाते, चाहे आंधी-तूफान आए बिना रुके ये सिलसिला चलता रहा.

आलोक का कहना है कि यही नहीं आज पास के इलाकों में जहां भी इस तरह की बस्तियां हैं, हम लोग वहां भी जाकर बच्चों को शिक्षा देने का काम करते हैं. अभी तक 500 से अधिक बच्चों को हम लोग शिक्षा दे चुके हैं.

आलोक सिंह 2012 से यह काम कर रहे हैं. उनके इस प्रयास को काफी लोगों से प्रोत्साहन मिला और कुछ लोग भी जुड़े. उन्हीं में एक हैं- श्लोक सिंह. आलोक के साथी श्लोक सिंह हमेशा उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते रहे. उनका कहना है कि आलोक जी के साथ हम लोग रामलीला मैदान, चिलबिला, रेलवे क्रॉसिंग रोड समेत कई स्थानों पर रह रहे अशिक्षित और गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं.

श्लोक का कहना है कि इस काम में बहुत ही आनंद मिलता है. शिक्षा पर सबका अधिकार है, सरकार को भी इस मामले में गंभीरता से सोचना चाहिए. अब तक 60 से अधिक बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ा भी गया है. कई बच्चों को स्कूलों में दाखिला मिला है.

बीएसए ने दी जानकारी
मामले में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी अशोक कुमार सिंह से बात हुई उन्होंने कहा कि शिक्षा का सभी को अधिकार है. सरकार की मंशा है कि ऐसे बच्चे जो अभी शिक्षा की मुख्य धारा से नहीं जुड़े हैं. ऐसे लोगों की लिस्ट तैयार की जा रही है. उन्होंने बताया कि इसमें ऐसे भी लोग अधिक हैं, जो घुमंतू कहे जाते हैं, जिनके पास छत नहीं है, वे टेंट में रहते हैं. इनके लिए भी सरकार प्रयासरत है. करीब 1500 बच्चों को जिले भर में चिन्हित किया गया है.

बड़ा दुर्भाग्य है कि हजारों लाखों की संख्या में लोग आज भी शिक्षा से महरूम हैं. न ही उनके पास छत है. न बिजली है और न पानी. कूड़ा बटोरकर पेट पालने वाले यह लोग आज भी सरकार की तमाम व्यवस्थाओं को मुंह चिढ़ा रहे हैं. लेकिन आलोक जैसे लोग आज इन बच्चों के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं. आलोक की मेहनत और लगन से तमाम मासूम चेहरों पर मुस्कान तो आ ही रही है, साथ ही उन्हें जिंदगी की दुश्वारियों से लड़ने की ताकत भी मिली है.

प्रतापगढ़: तब जंग-ए-आजादी का दौर था, जब देश के कोने-कोने से स्वतंत्रता आंदोलन के सारथी घरों से निकल पड़े थे. अब हम स्वतंत्र हैं, तो हमारे लिए मौलिक अधिकार एक बड़ा सवाल है. इन सबमें शिक्षा एक मात्र रास्ता है, जिसके जरिए हम अपने अधिकारों के लिए लड़ भी सकते हैं और देश को आगे ले जा सकते हैं. लेकिन अगर 2011 के जनगणना डेटा को देखें तो हम पाते हैं कि देश के 78 लाख बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ कमाई भी करनी पड़ती है, तो वहीं 8.4 करोड़ बच्चे आज भी स्कूलों से वंचित हैं. यह आंकड़े अब और भी हो सकते हैं. ऐसे में प्रतापगढ़ के शिक्षक आलोक सिंह गरीब बच्चों के लिए शिक्षा की अलख जगा रहे हैं. आलोक सिंह सैकड़ों बच्चों को शिक्षा की रोशनी से प्रकाशित करने का अभियान चला रहे हैं.

गरीब बच्चों को शिक्षा देते आलोक.

आलोक हर रोज जिंदगी की जंग लड़ने वाले और कूड़ा इकट्ठा कर अपना पेट भरने वाले बच्चों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं. शाम होते ही मैले कुचैले कपड़ों में लिपटी मासूम जिंदगियां, हाथों में कॉपी किताब लेकर बैठ जाती हैं. ब्लैक बोर्ड पर मास्टर जी उन्हें क से कमल ख से खरगोश पढ़ाने में जुट जाते हैं.

शहर के दहिलामऊ के रहने वाले आलोक कुमार सिंह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडलिस्ट हैं. हर सामाजिक कार्य में वह बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते रहते हैं. करीब आठ साल पहले वह शहर के रामलीला मैदान में बाइक से टहल रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि कुछ बच्चे मैले कपड़ों में कूड़े के ढेर में कुछ ढूंढ रहे थे. पास ही कुछ दूर पर करीब तीन दर्जन झोपड़ियां थी, जिनमें लोग रहते थे. इन लोगों के बच्चे गंदी और बदबूदार जिंदगी जीने को मजबूर थे. इनके लिए न तो सरकार की योजनाएं थीं और न ही इनकी किसी को सुध थी. ये बच्चे एक अलग जिंदगी जी रहे थे. ये लोग सामने शहर की रोशनी, गाड़ियों की आवाज और चहल पहल में कही खो से गए थे, शिक्षा से इनका कोई लेना देना नहीं था, लेकिन आलोक सिंह ने उन्हें शिक्षा देते हुए मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास किया. आलोक 2012 से यह काम कर रहे हैं.

आलोक सिंह बताते हैं कि इन लोगों को देखकर मन में एक विचार कौंधा कि क्यों न इन्हें शिक्षा की रोशनी से चित-परिचित कराया जाय. दूसरे दिन से ही हम इस काम मे जुट गए. पहले तो लैपटॉप में बच्चों को तस्वीरें, वीडियो दिखाकर दोस्ती की फिर उन्हें कॉपी, किताब पेंसिल दिया. धीरे-धीरे उनके मन में पढ़ाई की ललक पैदा की और फिर यह सिलसिला निकल पड़ा. शाम होते ही मैं और मेरा साथी श्लोक कुमार उस मलीन बस्ती में ब्लैक बोर्ड लेकर पहुंच जाते. अंधेरा होने तक पढ़ाते, चाहे आंधी-तूफान आए बिना रुके ये सिलसिला चलता रहा.

आलोक का कहना है कि यही नहीं आज पास के इलाकों में जहां भी इस तरह की बस्तियां हैं, हम लोग वहां भी जाकर बच्चों को शिक्षा देने का काम करते हैं. अभी तक 500 से अधिक बच्चों को हम लोग शिक्षा दे चुके हैं.

आलोक सिंह 2012 से यह काम कर रहे हैं. उनके इस प्रयास को काफी लोगों से प्रोत्साहन मिला और कुछ लोग भी जुड़े. उन्हीं में एक हैं- श्लोक सिंह. आलोक के साथी श्लोक सिंह हमेशा उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते रहे. उनका कहना है कि आलोक जी के साथ हम लोग रामलीला मैदान, चिलबिला, रेलवे क्रॉसिंग रोड समेत कई स्थानों पर रह रहे अशिक्षित और गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं.

श्लोक का कहना है कि इस काम में बहुत ही आनंद मिलता है. शिक्षा पर सबका अधिकार है, सरकार को भी इस मामले में गंभीरता से सोचना चाहिए. अब तक 60 से अधिक बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ा भी गया है. कई बच्चों को स्कूलों में दाखिला मिला है.

बीएसए ने दी जानकारी
मामले में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी अशोक कुमार सिंह से बात हुई उन्होंने कहा कि शिक्षा का सभी को अधिकार है. सरकार की मंशा है कि ऐसे बच्चे जो अभी शिक्षा की मुख्य धारा से नहीं जुड़े हैं. ऐसे लोगों की लिस्ट तैयार की जा रही है. उन्होंने बताया कि इसमें ऐसे भी लोग अधिक हैं, जो घुमंतू कहे जाते हैं, जिनके पास छत नहीं है, वे टेंट में रहते हैं. इनके लिए भी सरकार प्रयासरत है. करीब 1500 बच्चों को जिले भर में चिन्हित किया गया है.

बड़ा दुर्भाग्य है कि हजारों लाखों की संख्या में लोग आज भी शिक्षा से महरूम हैं. न ही उनके पास छत है. न बिजली है और न पानी. कूड़ा बटोरकर पेट पालने वाले यह लोग आज भी सरकार की तमाम व्यवस्थाओं को मुंह चिढ़ा रहे हैं. लेकिन आलोक जैसे लोग आज इन बच्चों के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं. आलोक की मेहनत और लगन से तमाम मासूम चेहरों पर मुस्कान तो आ ही रही है, साथ ही उन्हें जिंदगी की दुश्वारियों से लड़ने की ताकत भी मिली है.

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