पीलीभीत: एक तरफ सरकार किसानों की आय दोगनी करने का वायदा करती है तो वहीं दूसरी तरफ सरकार का यह वायदा जिले में धराशाई होता नजर आ रहा है. यहां लौकी का उत्पादन करने वाले किसान बेहद परेशान हैं. यही नहीं, आढ़ती भी तमाम समस्याओं से जूझ रहे हैं. जिसका नतीजा है कि लौकी के खरीददार न मिलने से परेशान किसान और आढ़ती लौकी को या तो गोशाला पहुंचा दे रहे हैं या फिर लौकी को बहुतायत में सड़कों किनारे फेंक दिया जा रहा है.
तराई का इलाका होने के कारण उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में लौकी, तरोई, खीरा और कद्दू जैसी हरी सब्जी बहुतायत में पैदा की जाती हैं, जो पूरे देश में पीलीभीत से सप्लाई की जाती हैं. लेकिन इन दिनों यहां लौकी की हालत कुछ ऐसी है कि लौकी मंडियों में कम मगर सड़कों के किनारे ज्यादा नजर आ रही हैं. क्योंकि न तो इस फसल का कोई खरीददार है और न ही इसकी कहीं मांग.
सड़क किनारे फेकी जा रही टनों लौकी जिले में 20 दिन से लौकी मंडी में तो आ रही है लेकिन मंडी से बाहर लौकी की मांग नहीं मिल रही है. जिले के प्रमुख आढ़ती विजयपाल विक्की का कहना है कि लौकी पहले से खरीद कर रखी थी और इसका भुगतान किसानों को खड़ी फसल के दौरान ही कर दिया जाता है, लेकिन वर्तमान हालात में जिन आढ़तियों के पास लौकी पड़ी है वह खराब हो जाने के डर से या तो सड़कों पर फेंक देते हैं या फिर आसपास स्थित गौशाला में गायों का पेट भरने के लिए पहुंचा देते हैं.जिले के किसानों और आढ़तियों की माने तो लौकी का भाव एक रुपये किलो भी नहीं मिल रहा है. ऐसे में लौकी के ट्रक को बाहर भेजने के लिए तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और महंगाई के चलते कोई खरीदार भी लौकी खरीदने को तैयार नहीं है. ऐसे में जिले के अधिकतर किसान और आढ़ती या तो लौकी को गौशाला भिजवा दे रहे हैं या फिर सड़कों किनारे लगा दे रहे हैं.