मुजफ्फरनगर: मूक-बधिर (गूंगे-बहरे) बच्चे सामान्य व्यक्ति की भांति बोल और सुन सकेंगे. यह सब स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से सच होने जा रहा है. शल्य चिकित्सा के माध्यम से शून्य से पांच साल तक के मूक-बधिर बच्चों के कॉक्लियर (ध्वनियंत्र) इंप्लांट सर्जरी लिए मूक बधिरता निवारण कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है.
19 मार्च को जिला अस्पताल (पुरुष) में लगने वाले इस शिविर में मूक बाधिर बच्चों की जांच एवं उपचार किया जाएगा. इस संबंध में मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने पत्र जारी कर समस्त चिकित्सा अधीक्षक, प्रभारी चिकित्सा अधिकारी, राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम के टीम लीडर, सामुदायिक/ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को आदेश जारी किए हैं. शून्य से पांच साल तक के गंगू-बहरे बच्चों की सूची तैयार की जाएगी, ताकि 19 मार्च को लगने वाले शिविर में इन बच्चों की जांच और उपचार किया जा सके.
मूक-बधिर बच्चों की जांच एवं उपचार किया जाएगा
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. एसके अग्रवाल ने बताया कि एडीपीआई योजना के अंतर्गत निशुल्क कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी के लिए 19 मार्च को जिला अस्पताल(पुरुष) में मूक बाधिर निवारण स्क्रीनिंग शिविर का आयोजन किया जाएगा, जिसमें शून्य से पांच साल तक के मूक-बधिर बच्चों की जांच एवं उपचार किया जाएगा। ऐसे बच्चों की सूची समस्त चिकित्सा अधीक्षक, प्रभारी चिकित्सा अधिकारी, राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम के टीम लीडर, सामुदायिक/ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को आदेश जारी किए हैं। जिला कार्यक्रम अधिकारी गांव वार सूची जिला नोडल अधिकारी को सौंपेगी। ताकि वह चिह्नित बच्चों के संबंध में उनके परिवार की सालाना आमदनी एवं अन्य औपचारिकताओं को पूरा कराते हुए कॉक्लियर इंप्लांट के लिए सूची उपलब्ध करा सकें.
आडियोलॉजिस्ट से स्पीच थैरेपी से बच्चा बोलने एवं सुनने लगता है
शासन से सर्जरी के लिए चयनित कानपुर के डा. एसएन मेहरोत्रा मेमोरियल ईएनटी (कान, नाक एवं गला) फाउंडेशन के मैनेजर ऋषभ मेहरोत्रा का कहना है कि मूक-बधिर बच्चे में कॉक्लियर (ध्वनियंत्र) काम नहीं करता है, जिससे बच्चा सुन नहीं पाता है। कॉक्लियर इंप्लांट में टाइटेनियम धातु के कॉक्लियर से निष्क्रिय कॉक्लियर को बदल कर दिया जाता है, जिससे इलेक्ट्रॉस के माध्यम से बच्चे में सुनने की क्षमता विकसित हो जाती है। इसी के साथ करीब एक वर्ष की आडियोलॉजिस्ट से स्पीच थैरेपी कराई जाती है, जिससे बच्चा बोलने एवं सुनने लगता है. उन्होंने बताया कि कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी बच्चे में जितनी कम उम्र में होगी वह उतनी सफल रहेगी.