मुजफ्फरनगर: किसान आंदोलन में पंजाब और हरियाणा के किसानों के साथ राकेश टिकैत का नाम वैश्विक पटल पर उभर कर आया है. दिल्ली-गाजीपुर बॉर्डर पर पिछले 77 दिन से केंद्र सरकार के विरोध में कृषि बिल की वापसी को लेकर चल रहे आंदोलन में लाखों किसान भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के नेतृत्व में आंदोलन कर रहे हैं. राकेश टिकैत आज देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं. क्योंकि वह किसानों के मसीहा कहलाए जाने वाले किसानों के संत, बाबा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के दूसरे बेटे हैं.
जानिए कौन हैं राकेश टिकैत अपने स्वर्गीय पिता से मिली विरासत को जीवंत रखते हुए राकेश टिकैत किसान हितों के लिए संघर्षरत हैं. भारतीय किसान यूनियन एक ऐसा किसान संगठन है, जिसकी पहचान पूरे देश में है. राकेश टिकैत फिलहाल किसानों के उस कोर ग्रुप में शामिल हैं, जो कृषि संशोधन बिल पर लगातार सरकार से बात कर रही है और सभी पिछले पांच दौर की वार्ताओं में भारतीय किसान यूनियन का प्रतिनिधित्व राकेश टिकैत ने किया है.
सिसोली के धरती पुत्र हैं राकेश टिकैत
राकेश टिकैत का जन्म मुजफ्फरनगर जनपद के सिसौली गांव में 4 जून 1969 को एक साधारण किसान परिवार में हुआ था. राकेश टिकैत व्यावहारिक और अहिंसा के पुजारी के साथ-साथ सात्विक और धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति हैं. राकेश टिकैत 1992 में दिल्ली पुलिस में कॉन्स्टेबल के पद पर नौकरी करते थे. राकेश टिकैत ने सिसोली के जनता इंटर कॉलेज से इंटर मीडिएट परीक्षा पास की. उसके बाद मेरठ यूनिवर्सिटी से एमए की पढ़ाई पूरी की, लेकिन 1993-1994 में दिल्ली के लाल किले पर स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में चल रहे किसानों के आंदोलन के चलते सरकार का आंदोलन खत्म कराने का जैसे ही दबाव पड़ने लगा, उसी समय राकेश टिकैत ने दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ दी थी. नौकरी छोड़ने के बाद राकेश टिकैत ने किसान आंदोलनों में अपने पिता की उंगली थाम ली और उनके सहयोगी बन गए.
राकेश टिकैत ने संभाली भाकियू की कमान नौकरी छोड़ राकेश टिकैत ने पूरी तरह से भारतीय किसान यूनियन के साथ किसानों की लड़ाई में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. पिता महेंद्र सिंह टिकैत की कैंसर से मृत्यु के बाद राकेश टिकैत ने पूरी तरह भारतीय किसान यूनियन की कमान संभाल ली. दरअसल महेंद्र सिंह टिकैत बालियान खाप से आते थे. जब महेंद्र सिंह टिकैत की मृत्यु हुई तब अपने बड़े बेटे नरेश टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष बनाया. क्योंकि खाप के नियमों के मुताबिक बड़ा बेटा ही मुखिया हो सकता है, लेकिन व्यवहारिक तौर पर भारतीय भारतीय किसान यूनियन की कमान राकेश टिकैत के हाथ में है और सभी अहम फैसले राकेश टिकैत ही लेते हैं. राकेश टिकैत की संगठन क्षमता को देखते हुए उन्हें भारतीय किसान यूनियन का राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया गया था, जिसे वो आज तक बखूभी निभा रहे हैं.
किसानो के संत, बाबा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत राकेश टिकैत का वैवाहिक जीवन
राकेश टिकैत की शादी 22 मई सन 1985 में बागपत जनपद के दादरी गांव की सुनीता देवी से हुई थी. इनके एक पुत्र चरण सिंह की दो पुत्री सीमा और ज्योति हैं. इनके सभी बच्चों की शादी हो चुकी है.
1987 में स्थापना हुई थी भारतीय किसान यूनियन की
भारतीय किसान यूनियन की नींव 1987 में उस समय रखी गई थी. जब बिजली के दामों को लेकर किसानों ने शामली जनपद के करमुखेड़ी में महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन किया था. इसमें दो किसान जयपाल ओर अकबर पुलिस की गोली लगने से मारे गए थे. उसके बाद भारतीय किसान यूनियन बनाया गया था, जिसका अध्यक्ष स्वर्गीय चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को बनाया गया था. 15 मई 2011 को लंबी बीमारी के चलते महेंद्र सिंह टिकैत के निधन के बाद इनके बड़े बेटे चौधरी नरेश टिकैत को पगड़ी पहनाकर भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष की कमान सौंप दी गई थी.
राकेश टिकैत का राजनीति सफर
किसान हितों की लड़ाई लड़ने के लिए राकेश टिकैत ने दो बार राजनीति में भी आने की कोशिश की. पहली बार 2007 में उन्होंने मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था. इसमें राकेश टिकैत को मात्र 9,500 वोट मिलने से हार का सामना करना पड़ा था. उसके बाद राकेश टिकैत ने 2014 में अमरोहा जनपद से राष्ट्रीय लोकदल पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा. इसमें राकेश टिकैत को 10,500 मत मिले थे, लेकिन दोनों ही चुनाव में इनको हार का सामना करना पड़ा था.
लाल किले पर डंकल प्रस्ताव आंदोलन में पुलिस नौकरी से दिया इस्तीफा
पिता महेंद्र टिकैत द्वारा दिल्ली के लाल किले पर डंकल प्रस्ताव के लिए आंदोलन चलाया गया था. इसमें कांग्रेस सरकार की ओर से राकेश टिकैत के ऊपर दबाव बनाया जा रहा था कि वह अपने पिता को समझाएं और आंदोलन को खत्म कराएं. सरकार द्वारा राकेश के ऊपर दबाव बनाने के कारण 1993 में राकेश टिकैत ने पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और उसके बाद से इन्होंने किसानों के लिए सक्रिय काम करते हुए अपने पिता के साथ काम करना शुरू किया और 1997 में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाए गए. 2018 में राकेश टिकैत के नेतृत्व में हरिद्वार से दिल्ली किसान घाट के लिए पैदल किसान क्रांति यात्रा निकली गई, जिसमें लाखों किसानों ने हिस्सा लिया.
किसान हित की लड़ाई लड़ने के दौरान जेल यात्रा भी कर चुके हैं टिकैत
किसानों के हित की लड़ाई लड़ते रहने के कारण राकेश टिकैत 44 बार जेल की यात्रा भी कर चुके हैं. मध्यप्रदेश में एक समय किसान के भूमि अधिकरण कानून के खिलाफ उनको 39 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था. उसके उपरांत दिल्ली में लोकसभा के बाहर किसानों के गन्ना मूल्य बढ़ाने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया और गन्ना को जला दिया था. इसके लिए उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया था. राकेश टिकैत पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान राज्यों में लगभग 50 मुकदमे दर्ज हैं. मौजूदा समय में किसानों के मसीहा बने राकेश टिकैत का नाम पंजाब और हरियाणा के किसानों के साथ-साथ वैश्विक पटल पर उभर कर सामने आया है. यही वजह है कि राकेश टिकैत आज देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं.