ETV Bharat / state

चंदौली: कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवान को सरकार से नहीं मिला कोई सम्मान

कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के सम्मान हेतु कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है, लेकिन सरकारें कारगिल युद्ध में शहीद लाल कलीम अंसारी को कोई भी सम्मान नहीं दे सकी है. कारगिल युद्ध में चन्दौली के लाल कलीम अंसारी भी पाकिस्तान से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे.

कारगिल युद्ध में शहीद जवान को नहीं मिला सम्मान.
author img

By

Published : Jul 26, 2019, 2:32 PM IST

चंदौली: करगिल युद्ध में चन्दौली के लाल कलीम अंसारी भी लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. उनका परिवार उस वक्त को याद करते ही सिहर जाता है. घटना को पूछने पर आज भी शहीद के परिवार में दुखों का सैलाब आखों में उमड़ पड़ता है, लेकिन सरकार की तरफ से शहीद जवान के लिए एक स्मृति गेट तक नहीं बन सका है.

सरकार के 20 साल पहले किए वादे, नहीं हुए पूरे-
जब शहीद का पार्थिव शरीर उनके गांव पहुंचा तो परिजन और गांव के लोग घुटने भर पानी में चलकर उनके पार्थिव शरीर को घर लेकर आये थे. उस दिन को आज बीस साल बीत गए, लेकिन शहीद के घर तक आज भी रोड़ और नालियां नहीं बन सकी हैं. यहीं नहीं उस दौरान उनके स्मृति में गेट, स्कूल या खेल ग्राउंड का नाम उनके नाम पर रखे जाने की बात प्रशासन ने कही थी, लेकिन 20 साल बाद भी इसे पूरा नहीं किया गया है.

कारगिल युद्ध में शहीद जवान को नहीं मिला सम्मान.
शहीद परिवार आर्थिक खराब स्थिति-शहीद परिवार आर्थिक कुछ खास नहीं है. ऐसे में घर गरीबी से जीवन जीने को मजबूर है. आज पुणे में शहीद के पिता नौकरी करके अपना जीविकोपार्जन कर रहे है.तीसरी पीढ़ी भी करना चाहती है भारत मां की सेवा-उन दिनों को याद करते ही लोग सिहर जाते है. पूरे परिवार में कोहराम मचा हुआ था, लेकिन विषम परिस्थितियों के बावजूद शहीद के परिवारिजनों के जुनून की कोई कमी नहीं आई है. तीसरी पीढ़ी भी सेना में भर्ती की तैयारी में जुटी है. जिससे वे भारत मां की रक्षा कर सकें.

शहादत पर गर्व है लेकिन देश की सरकारों से शिकायतें भी है. विजय दिवस मनाने वाली सरकारआज के दिन शहीद के सम्मान में मनाती जरूर है, लेकिन सम्मान दे नहीं पाती.
कलीमुद्दीन अंसारी, शहीद का भाई, रिटायर्ड सेना का जवान

चंदौली: करगिल युद्ध में चन्दौली के लाल कलीम अंसारी भी लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. उनका परिवार उस वक्त को याद करते ही सिहर जाता है. घटना को पूछने पर आज भी शहीद के परिवार में दुखों का सैलाब आखों में उमड़ पड़ता है, लेकिन सरकार की तरफ से शहीद जवान के लिए एक स्मृति गेट तक नहीं बन सका है.

सरकार के 20 साल पहले किए वादे, नहीं हुए पूरे-
जब शहीद का पार्थिव शरीर उनके गांव पहुंचा तो परिजन और गांव के लोग घुटने भर पानी में चलकर उनके पार्थिव शरीर को घर लेकर आये थे. उस दिन को आज बीस साल बीत गए, लेकिन शहीद के घर तक आज भी रोड़ और नालियां नहीं बन सकी हैं. यहीं नहीं उस दौरान उनके स्मृति में गेट, स्कूल या खेल ग्राउंड का नाम उनके नाम पर रखे जाने की बात प्रशासन ने कही थी, लेकिन 20 साल बाद भी इसे पूरा नहीं किया गया है.

कारगिल युद्ध में शहीद जवान को नहीं मिला सम्मान.
शहीद परिवार आर्थिक खराब स्थिति-शहीद परिवार आर्थिक कुछ खास नहीं है. ऐसे में घर गरीबी से जीवन जीने को मजबूर है. आज पुणे में शहीद के पिता नौकरी करके अपना जीविकोपार्जन कर रहे है.तीसरी पीढ़ी भी करना चाहती है भारत मां की सेवा-उन दिनों को याद करते ही लोग सिहर जाते है. पूरे परिवार में कोहराम मचा हुआ था, लेकिन विषम परिस्थितियों के बावजूद शहीद के परिवारिजनों के जुनून की कोई कमी नहीं आई है. तीसरी पीढ़ी भी सेना में भर्ती की तैयारी में जुटी है. जिससे वे भारत मां की रक्षा कर सकें.

शहादत पर गर्व है लेकिन देश की सरकारों से शिकायतें भी है. विजय दिवस मनाने वाली सरकारआज के दिन शहीद के सम्मान में मनाती जरूर है, लेकिन सम्मान दे नहीं पाती.
कलीमुद्दीन अंसारी, शहीद का भाई, रिटायर्ड सेना का जवान

Intro:चन्दौली - कारगिल विजय दिवस स्वतंत्र भारत के लिये एक महत्वपूर्ण दिवस है। इसे हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है. कारगिल युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को उसका अंत हुआ. इसमें भारत की विजय हुई. इस दिन कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के सम्मान हेतु मनाया जाता है. लेकिन बिडम्बना ये है संवेदनहीन सरकारें वे सम्मान भी नहीं दे सकी. करगिल युद्ध में चन्दौली के लाल कलीम अंसारी भी पाकिस्तान से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. लेकिन सरकार की तरफ से एक स्मृति गेट तक नहीं बन सका. परिवार की माली हालत भी बेहद खराब है. शहीद के पिता पुणे में नौकरी कर किसी तरह जीवनयापन कर रहे है.

Body:करगिल युद्ध में चन्दौली के लाल कलीम अंसारी भी पाकिस्तान से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. उनकी चाची उस वक्त को याद करते ही सिहर जाती है और दुखों का सैलाब आखों में उमड़ पड़ता है. लेकिन सरकार की तरफ से एक स्मृति गेट तक नहीं बन सका. परिवार की माली हालत भी बेहद खराब है.ये तश्वीर है शाहीद कलीम की चाची की. जिनके दिल मे कलीम का नाम सुनते ही ज्वार सा उठता है और आसुओं की शक्ल में बाहर आ जाता है. वहीं शहीद कलीम अंसारी के भाई सेना में नौकरी के बाद वापस घर आ गए. जो कि उनकी शहादत के बाद सेना में गए. इस उद्देश्य से ताकि वे पाकिस्तान से अपनी भाई की शहादत का बदला ले सके. लेकिन उनका वो ख्वाब पूरा नहीं हो सका. जिनका उन्हें बेहद इल्म है.

शहीद के भाई को शहादत पर गर्व है लेकिन देश की सरकारों से शिकायतें भी है उन्होंने विजय दिवस मनाने वाली सरकारों पर नाराजगी जताई. और कहा कि आज का दिन सरकार शहीद के सम्मान में मनाती जरूर है.लेकिन सम्मान दे नहीं पाती.जब शहीद का पार्थिव शरीर उनके गांव पहुँचा तो परिजनों और गांव के लोगों ने घुटने भर पानी मे जाकर चलकर उनके पार्थिव शरीर को घर लेकर आये. उस दिन को आज बीस साल बीत गए. लेकिन शहीद के घर आजतक रोड और नाली नहीं बन सकी. यहीं नहीं उस दौरान उनके स्मृति में गेट, स्कूल या खेल ग्राउंड का नाम उनके नाम पर रखे जाने की बात कही गई. लेकिन 20 साल में भी इसे पूरा नहीं किया गया.

उन दिनों को याद करते ही सिहर जाते है. पूरे परिवार में कोहराम स्थिति थी. सरकार ने शहीद के परिवार के आंसू पोछने का प्रयास किया और आर्थिक मदद दी. लेकिन उनकी नीतियों के चलते शहीद के मां बाप और भाई गुजारा चलाने के लिए पुणे में नौकरी कर रहे है. शहादत के बाद मिलने वाली सभी तरह की आर्थिक सहायता पत्नी को दे दी गई. जो मायके गई तो दोबारा वापस नहीं लौटी और अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू कर ली. ऐसे में एकमात्र कमाऊ पूत होने के चलते बेटे के चलते घर तंगहाल जीवन जीने को मजबूर हो गए. और आज पुणे में शहीद के नौकरी करके अपना जीविकोपार्जन कर रहे है.

विषम परिस्थितियों के बावजूद शहीद के परिवारिजनों के जुनून की कोई कमी नहीं आई है. और तीसरी पीढ़ी भी सेना में भर्ती की तैयारी में जुटा है ताकि वे भारत मां आन बान और शान की रक्षा के साथ ही अपने चाचा की शहादत का बदला पाकिस्तान से ले सके...

बाइट - कलीमुद्दीन अंसारी (शहीद का भाई/ रिटायर्ड सेना का जवान)
बाइट - मैनुद्दीन अंसारी (शहीद का भतीजा)

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा’ । देश के शहीदों के सम्मान में लिखी गई यें पंक्तियां आज कहने-सुनने में भले ही अच्छी लगती हों लेकिन वास्तविकता कुछ और है। देश के सम्मान के लिए सीमा पर अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों को सम्मान देने की बात तो दूर उनकी स्मृतियों को सहेज कर भी नहीं रखा जा रहा है.Conclusion:शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा’. देश के शहीदों के सम्मान में लिखी गई यें पंक्तियां आज कहने-सुनने में भले ही अच्छी लगती हों लेकिन वास्तविकता कुछ और है। चंदौली के शहीद कलीम अंसारी का सम्मान तो दूर उनकी स्मृति भी नहीं सहेज सके.

कमलेश गिरी
चन्दौली
9452845730
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.