चंदौली: मत्स्य विभाग और पुलिस दल ने प्रतिबंधित थाई मांगूर प्रजाति की मछली को भारी मात्रा में बिछियां स्थित विकास भवन के पास से जब्त कर लिया. प्रतिबंधित मछली की प्रजाति को दो ट्रकों पर लादकर कोलकाता से अंबाला ले जाया जा रहा था. मछलियों की प्रजाति की पहचान होने के बाद पुलिस ने दोनों ट्रकों में लदी थाई मांगुर मछली को कब्जे में ले लिया. जिलाधिकारी संजीव सिंह ने गड्ढा खोदकर मछलियों को तुरंत नष्ट करने के निर्देश दिए.
मत्स्य विभाग को मुखबिर से सूचना मिली कि प्रतिबंधित मछली की प्रजाति थाई मांगुर की तस्करी की जा रही है. इसके बाद जिलाधिकारी संजीव सिंह द्वारा गठित मत्स्य, राजस्व व पुलिस की संयुक्त टीम ने बिछियां कला स्थित विकास भवन के पास से दो ट्रकों को रोककर चेक किया. चेकिंग में इनमें थाई मांगुर प्रजाति की 35 टन मछलियां पाई गईं जिनकी अनुमानित कीमत करीब 70 लाख बतायी जा रही है.
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पुलिस व जिलाधिकारी द्वारा गठित समिति के नेतृत्वकर्ता नायाब तहसीलदार अवनीश कुमार सिंह, मत्स्य निरीक्षक रामलाल सोनकर और संजय कुमार सिंह, की मौजूदगी में मछलियों को बिछियां कला गांव के समीप गड्ढ़ा खोदकर प्रतिबंधित मछली को नष्ट करने में जुटी हुई है. वहीं, पुलिस तस्करी में लिप्त दोनों ट्रकों के चालकों को हिरासत में लेकर कार्रवाई में जुटी है.
गौरतलब है कि थाईलैंड में विकसित थाई मांगुर पूरी तरह से मांसाहारी मछली है. इसकी विशेषता यह है कि यह किसी भी पानी (दूषित पानी) में तेजी से बढ़ती है, जहां अन्य मछलियां पानी में ऑक्सीजन की कमी से मर जाती है लेकिन यह जीवित रहती है.
भारत सरकार ने साल 2000 में ही थाई मांगुर मछली के पालन और बिक्री पर रोक लगा दी थी लेकिन इसकी बेखौफ बिक्री जारी है. इस मछली के सेवन से घातक बीमारी हो सकती है. इसे कैंसर का वाहक भी कहा जाता है. ये मछली मांस को बड़े चाव से खाती है. सड़ा हुआ मांस खाने के कारण इन मछलियों के शरीर की वृद्धि एवं विकास बहुत तेजी से होता है.
यही कारण है कि यह मछलियां तीन माह में दो से 10 किलोग्राम वजन की हो जाती हैं. इन मछलियों के अंदर घातक हेवी मेटल्स जिसमें आरसेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी, लेड अधिक पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक हानिकारक है.
थाई मांगुर के द्वारा प्रमुख रूप से गंभीर बीमारियां जिसमें हृदय संबंधी बीमारी के साथ न्यूरोलॉजिकल, यूरोलॉजिकल, लीवर की समस्या, पेट एवं प्रजनन संबंधी बीमारियां और कैंसर जैसी घातक बीमारी अधिक हो रही है. इसका पालन करने से स्थानीय मछलियों को भी क्षति पहुंचती है. साथ ही जलीय पर्यावरण और जन स्वास्थ्य को खतरे की संभावना भी रहती है.
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