चन्दौली: डाला छठ में अस्ताचलगामी और अगले दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा-अर्चना की जाती है. वहीं एक ऐसी जगह है, जहां छठ पूजा के दौरान भगवान भास्कर की सवारी घोड़े की भी पूजा की जाती है. हम बात कर रहे हैं प्रदेश के चंदौली जिले की, जहां दीनदयाल नगर स्थित सूर्य मंदिर में घोड़ों की आरती कर पूरे नगर में घुमाया जाता है. इस दौरान व्रती महिलाएं घोड़ों को चना और गुड़ खिलाकर सुख-समृद्धि की कामना करती हैं.
घोड़े की पूजा-अर्चना से आती है सुख-समृद्धि
दीनदयाल नगर में डाला छठ के मौके पर व्रती महिलाएं भगवान भास्कर की सवारी घोड़े की पूजा-अर्चना कर मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करती हैं. दिवाली के ठीक छह दिन बाद मनाए जाने वाले छठ पर्व का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है. कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की सृष्टि को सूर्य षष्टि का व्रत करने का विधान है. साथ ही अथर्ववेद में भी इस पर्व का उल्लेख किया गया है.
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यह ऐसा पूजा विधान है, जिसे वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाभकारी माना गया है. ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से की गई इस पूजा से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इसे करने वाली स्त्रियां पति, पुत्र और सुख समृद्धि से परिपूर्ण रहती हैं. साथ ही लोगों का यह भी मानना है कि भगवान सूर्य की सवारी घोड़े की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है.
घोड़े को लगाया जाता गुड़-चने का भोग
सूर्य उपासना के इस पर्व के दौरान भगवान भास्कर की सवारी को पूरे शहर में घुमाया जाता है. व्रती महिलाएं भगवान भास्कर के सवारी का दर्शन-पूजन पारंपरिक छठ गीत गाकर करती हैं. साथ ही दर्शन के दौरान व्रती महिलाएं और उनके परिजनों द्वारा घोड़े को गुड़-चने का भोग कराया जाता है. महिलाएं अपने परिवार की सुख समृद्धि की मंगल कामना करती हैं.
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महाभारत काल से शुरू हुई थी छठ पूजा की परंपरा
ऐसी मान्यता है कि इस पूजा की शुरुआत महाभारत काल में कुंती द्वारा सूर्य की आराधना और पुत्र कर्ण के जन्म के समय से हुई थी. छठ पूजा में भगवान सूर्य के साथ ही उनकी सवारी घोड़े की पूजा का भी अपना अलग ही महत्व है. यह परंपरा दशकों पुरानी है. ऐसी मान्यता है कि डाला छठ के दौरान घोड़े के पांव जहां भी पड़ते हैं, वह स्थान पवित्र हो जाता है.