मुरादाबाद: पूरे देश में दीपावली का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. घरों में रोशनी के साथ एक दूसरे को बधाइयां देने का सिलसिला लगातार जारी है. भगवान राम के लंका से अयोध्या वापस लौटने के इस उत्सव में जहां हर कोई अपने तरीके से त्योहार मना रहा है. वहीं अपनों से दूर कई लोग ऐसे भी हैं, जो पल-पल अपने ही दर्द में घुट रहे हैं. जिंदगी के आखिरी पड़ाव में अपनों के ठुकराए यह बुजुर्ग आज भी उन दिनों को याद कर रोने लगते हैं, जब इनका परिवार एक साथ त्योहार मनाता था. दिल में दर्द समेटे इन बुजुर्गों को अब सिर्फ एक-दूसरे का ही साथ है.
बेटे के दुनिया छोड़ने के बाद बहु ने घर से निकाला
जिले के मझोला क्षेत्र स्थित एक वृद्धाश्रम में रह रहीं पश्चिम बंगाल की रेखा राय के लिए जिंदगी का यह आखिरी पड़ाव किसी सजा से कम नहीं है. मुरादाबाद की एक निजी फर्म में काम करने वाले रेखा के बेटे की पिछले साल अचानक मौत हो गई. इसके बाद इस बुजुर्ग की जिंदगी सड़क पर आ गई. बेटे की मौत के बाद बहु ने सास से संबंध खत्म कर दिए और घर से निकाल दिया. बेटे की मौत का सदमा झेल रही रेखा को किसी परिचित ने वृद्धाश्रम में पहुंचाया और अब यही उनका घर है.
परिवार के खत्म होने के बाद खुद को खत्म करने की कोशिश
इस वृद्धाश्रम में रेखा ही अकेली नहीं हैं, बल्कि 100 से ज्यादा बुजुर्ग यहां रह रहे हैं. संभल के रहने वाले ज्ञान प्रकाश पिछले साल ही यहां आए हैं. अपनी पत्नी और तीन बेटों की मौत के बाद खुदकुशी करने जा रहे ज्ञानप्रकाश को किसी परिचित ने यहां पहुंचाया और आज वह अपने जैसे दुखी बुजुर्गों को जीवन का महत्त्व बता रहे हैं. दीपावली पर जहां लोग घरों में खुशियां मना रहे हैं. वहीं इन बुजुर्गों से मिलने इनका कोई अपना तो नहीं आया, लेकिन परायों ने जरूर इनकी खैर खबर पूछी.
एक-दूसरे के कामों में बटाते हैं हाथ
वृद्धाश्रम में अपने दुखों को सीने से लगाये जीवन का सफर तय कर रहे बुजुर्ग एक-दूसरे को ही परिवार मानते हैं. दिन भर एक-दूसरे से बातचीत और एक-दूसरे का हाथ बटाना इनके लिए किसी त्योहार से कम नहीं है. दीपावली की यादें इनको परेशान जरूर कर जाती हैं, लेकिन हौसला नहीं तोड़ती. समाज सेवा से जुड़े लोग त्योहार होने का अहसास इन्हें दिला आ जाते हैं और इसके सहारे ही एक और साल बीतने का आभास इन्हें सकून दे जाता है.
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इंतजार अपनों के लौटने का
दीपों की रोशनी के साथ दिल के दर्द को लेकर आगे बढ़ रहे इन बुजुर्गों को अब खुद से भले ही ज्यादा उम्मीद न हो, लेकिन इनकी आंखों में आज भी अपनों के आने और वापस घर जाने के सपने जिंदा हैं. नम आंखों से वृद्धाश्रम के गेट पर टकटकी लगाए बैठे बुजुर्गों को आज भी अपनों से उम्मीदे हैं, लेकिन यह उम्मीद पूरी होगी भी या नहीं इसका जबाब किसी के पास नहीं है.