मुरादाबाद: लॉकडाउन को एक महीने से ज्यादा का समय हो गया, लेकिन दूसरे राज्यों में रह रहे दैनिक मजदूरों के घर वापस जाने का सिलसिला थम नहीं रहा है. सरकार भले ही इन दैनिक मजदूरों को घर वापस लाने के लाख वादे कर रही हो, लेकिन सड़कों पर पैदल चलते इन मजदूरों के कदम अब अपनी मंजिल पर ही जाकर रुकने का नाम ले रहे हैं. ये मजदूर पंजाब-हरियाणा में रहते हैं और वापस अपने घर बिहार और गोरखपुर जा रहे हैं. कोई चार दिन में तो कोई 10 दिन में घर पहुंचने की बात कह रहा है.
दरअसल, बुधवार देर रात सिविल लाइन इलाके के पीली कोठी चौराहे का नजारा कुछ अलग नजर आ रहा था, जहा पंजाब से पैदल चलकर बिहार और गोरखपुर जाने वाले लगभग एक दर्जन मजदूर युवक खड़े दिखाई दिए. हालांकि इस मुख्य चौराहे पर पुलिसकर्मी भी पीछे खड़े दिखाई दे रहे थे, लेकिन जब इन युवकों से पूछा गया कि कब तक अपनी मंजिल तक पहुंचोगे तो इनमें से एक युवक श्याम ने कहा कि 9 या 10 तक पहुंच जाएंगे.
ठेले पर सवार होकर घर को निकला परिवार
श्याम ने बताया कि हमें कई जगह रोका गया था, लेकिन पता करने के बाद कह दिया गया कि 'ऐसे ही चलते रहो, सीधे-सीधे चलते चले जाओ'. वहीं महिला मजदूर बबीता ने बताया कि उसका पूरा परिवार एक ठेले में सवार होकर चंडीगढ़ से गोरखपुर अपने घर जा रहा है. बबीता ने बताया कि हमें रास्ते में कभी खाने को मिला तो कभी नहीं मिला. रास्ते में पड़ने वाले गांव में लोगों ने खाने को दे दिया तो हम लोगों ने उसी से काम चला लिया.
नहीं मिल रही थी मजदूरी, रुपया-पैसा हो गया था खत्म
बबीता ने बताया कि लॉकडाउन के बाद हमें मजदूरी मिलना बंद हो गई थी, जो रुपया-पैसा पास में था, वह भी खत्म हो गया. हम लोगों को कहीं से कोई मदद नहीं मिल रही थी, इसलिए परिवार के साथ ठेले से घर जा रहे हैं. बबीता ने बताया कि हम लोगों को चार दिन हो गए चलते-चलते. अभी चार-पांच दिन और लग जाएंगे गोरखपुर पहुंचने में. वहीं बबीता के पति परिवार को ठेले में बैठाकर मंजिल तक पहुंचाने में जी-जान में लगे हुए हैं.
गांव के किसान करते हैं रास्ते में मदद
पंजाब के अंबाला से पैदल चलते हुए अपने घर जा रहे मजदूर रवि का कहना है कि छह दिन हो गये पैदल चलते हुए. रास्ते में खाने को मिल तो रहा है, लेकिन गांव किसान लोग ही मदद कर रहे हैं. रवि ने बताया कि हम 8 से 9 लोग हैं, जो घर जा रहे हैं.
हमारा परिवार कोरोना से तो बाद में मरता भूख से पहले मर जाता. वहां न खाना खाने को था और न पानी पीने को था. हमारे छोटे-छोटे कई दिनों से भूखे रह रहे थे. हम लोग अब अपने घर जा रहे हैं.
-बबीता, महिला मजदूर