मुरादाबाद: अमेरिका और ईरान के बीच बढ़े तनाव का असर पूरी दुनिया में दिखाई दे रहा है. अमेरिकी सेना द्वारा ईरान के जनरल कासिम सुलेमानी को ड्रोन हमले में मार दिया गया, जिसके बाद ईरान ने अमेरिका से बदला लेने का एलान किया है. दोनों देशों के बीच तनाव का असर भारत में भी दिखने लगा है. दरअसल ईरान भारतीय हस्तशिल्प के उत्पादों का सबसे बड़ा बाजार माना जाता है. मुरादाबाद से हर साल 500 करोड़ से ज्यादा के उत्पाद ईरान के लिए भेजे जाते हैं. निर्यातकों के मुताबिक युद्ध की आशंका के चलते खाड़ी देश भी प्रभावित होंगे, जहां हर साल 2500 करोड़ रुपये का कारोबार किया जाता है.
ईरान और अमेरिका के बीच युद्ध के हालात दुनिया के कारोबारी रिश्तों के लिए नई मुश्किलें पैदा कर रहे हैं. अमेरिकी सेना द्वारा जनरल कासिम सुलेमानी को मारे जाने के बाद दक्षिण एशिया में भी हर रोज नए समीकरणों के बनने-बिगड़ने का क्रम लगातार जारी है. ईरान और भारत के बीच हमेशा से कारोबारी रिश्ते रहे हैं और आज भी भारत से चाय, चावल और दूसरे सामान ईरान को बड़े पैमाने पर निर्यात किए जाते हैं. ईरान भारतीय हस्तशिल्प कारोबार का भी सबसे बड़ा बाजार है. हर साल मुरादाबाद से 500 करोड़ से ज्यादा के उत्पाद ईरान के बाजारों में पहुंचते हैं. पिछले साल ईरान ने भारतीय हस्तशिल्प उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके लिए सरकार लगातार वार्ता कर कारोबार शुरू करने की पहल कर रही थी, लेकिन हालिया तनाव के बाद निर्यातक खाड़ी देशों से कारोबार को लेकर भी चिंतित हैं.
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अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के बाद कारोबारी भुगतान को लेकर चिंता जाहिर कर रहे हैं. निर्यातकों के मुताबिक वर्तमान हालात में खाड़ी के देशों से कारोबार को लेकर मुश्किल खड़ी हो गई है. खाड़ी देशों में हर साल 2500 करोड़ रुपये के उत्पाद भेजे जाते हैं. ऐसे में अगर युद्ध हुआ तो पीतल कारोबार से जुड़े निर्यातक बेहद मुश्किल में फंस सकते हैं. निर्यातकों की दूसरी चिंता हवाई क्षेत्र को लेकर भी है. युद्ध के हालात होने पर ईरान अपनी वायु सीमा को प्रतिबंधित कर यूरोप और अमेरिका के ग्राहकों के रास्ते रोक देगा, जिसके चलते निर्यात किराए में विदेशी ग्राहक पहुंच ही नहीं पाएंगे.
पहले से ही मुश्किल दौर से गुजर रहा पीतल उद्योग अमेरिका-ईरान तनाव से नाजुक हालत में पहुंच गया है. युद्ध की सूरत में पीतल उद्योग को कई सौ करोड़ रुपये का नुकसान होना तय है. वहीं लगभग पांच लाख पीतल कारीगरों के सामने रोजी-रोटी का संकट भी है.