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...और स्टील ने खत्म कर दिया शमशाबाद का पीतल कारोबार - brass business is about to end in shamshabad

दम तोड़ रही पीतल नगरी की जान आज लोटे में अटक कर रह गई है. पीतल के बर्तनों की जगह ले रहे स्टील ने पीतल उद्योग को दीमक की तरह खा के खोखला कर दिया है. अब देखना यह होगा कि देशभर में प्रचलिल पीतल की नगरी का जाम सरकार वापस ला पाएगी या नहीं.

दम तोड़ती नजर आ रही है पीतल नगरी.
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Published : Sep 22, 2019, 10:30 AM IST

कौशाम्बी: मिनी मुरादाबाद के नाम से मशहूर शमशाबाद के पीतल कारोबार की चमक अब नहीं रही. स्टील के दौर ने पीतल की चमक को पूरी तरह खत्म कर दिया. पीतल के बर्तनों का कारोबार खत्म होते-होते लोटे-गिलास तक सिमट गया. 70 के दशक तक यह शहर देश ही नहीं विदेश में भी पीतल नगरी के तौर पर जाना जाता था, लेकिन इसी दौर में इस शहर को डकैतों की नजर लग गई और कई पीतल कारोबारी शहर छोड़ गए. बाद के दशकों में स्टील की अचानक बढ़ी मांग ने इस शहर की कमर ही तोड़ दी.

दम तोड़ती नजर आ रही है पीतल नगरी.

साल 1962 में पीएम इंदिरा गांधी ने पीतल उद्योग को संवारने के लिए बर्तन निर्माण उद्योग सहकारी समिति लिमिटेड की आधारशिला रखी. मुरादाबाद से बर्तन बनाने की मशीन मंगवाई गई. उद्योग ने रफ्तार पकड़ी तो डकैतों ने वसूली शुरू कर दी. सरकार सुरक्षा न दे सकी तो बड़े कारोबारियों में शुमार रहे महाराज जी, केदार महाजन, हनुमान जयसवाल जैसे तमाम बड़े कारोबारी पलायन कर गए. 35 बरस पहले सन 1984-85 के दौर में शमशाबाद में 243 कारखाने चल रहे थे. यहां बनने वाले खास किस्म के बर्तनों में उकेरी जाने वाली कृतियों को बहुत लोकप्रियता मिली. उस समय शमशाबाद के बर्तन की मांग कानपुर, आगरा, इलाहाबाद, वाराणसी समेत कई बड़े शहरों में थी.

महंगे पीतल की जगह सस्ते स्टील ने ले ली. बावजूद इसके पूजा-पाठ और शादी में पीतल के बर्तन शुभ माने जाते हैं. बस इसी के भरोसे आज भी कुछ लोग कारखाने चला रहे हैं. हालांकि इन कारखानों में सिर्फ लोटे ही बनाए जाते हैं. शमशाबाद को अब सिर्फ सरकार की आस है, शायद कुछ हो जाए और दम तोड़ता पीतल कारोबार फिर खड़ा हो जाए.

कौशाम्बी: मिनी मुरादाबाद के नाम से मशहूर शमशाबाद के पीतल कारोबार की चमक अब नहीं रही. स्टील के दौर ने पीतल की चमक को पूरी तरह खत्म कर दिया. पीतल के बर्तनों का कारोबार खत्म होते-होते लोटे-गिलास तक सिमट गया. 70 के दशक तक यह शहर देश ही नहीं विदेश में भी पीतल नगरी के तौर पर जाना जाता था, लेकिन इसी दौर में इस शहर को डकैतों की नजर लग गई और कई पीतल कारोबारी शहर छोड़ गए. बाद के दशकों में स्टील की अचानक बढ़ी मांग ने इस शहर की कमर ही तोड़ दी.

दम तोड़ती नजर आ रही है पीतल नगरी.

साल 1962 में पीएम इंदिरा गांधी ने पीतल उद्योग को संवारने के लिए बर्तन निर्माण उद्योग सहकारी समिति लिमिटेड की आधारशिला रखी. मुरादाबाद से बर्तन बनाने की मशीन मंगवाई गई. उद्योग ने रफ्तार पकड़ी तो डकैतों ने वसूली शुरू कर दी. सरकार सुरक्षा न दे सकी तो बड़े कारोबारियों में शुमार रहे महाराज जी, केदार महाजन, हनुमान जयसवाल जैसे तमाम बड़े कारोबारी पलायन कर गए. 35 बरस पहले सन 1984-85 के दौर में शमशाबाद में 243 कारखाने चल रहे थे. यहां बनने वाले खास किस्म के बर्तनों में उकेरी जाने वाली कृतियों को बहुत लोकप्रियता मिली. उस समय शमशाबाद के बर्तन की मांग कानपुर, आगरा, इलाहाबाद, वाराणसी समेत कई बड़े शहरों में थी.

महंगे पीतल की जगह सस्ते स्टील ने ले ली. बावजूद इसके पूजा-पाठ और शादी में पीतल के बर्तन शुभ माने जाते हैं. बस इसी के भरोसे आज भी कुछ लोग कारखाने चला रहे हैं. हालांकि इन कारखानों में सिर्फ लोटे ही बनाए जाते हैं. शमशाबाद को अब सिर्फ सरकार की आस है, शायद कुछ हो जाए और दम तोड़ता पीतल कारोबार फिर खड़ा हो जाए.

Intro:ANCHOR--- कौशांबी के सिराथू तहसील में है पीतल के बर्तन कारोबार की प्रमुख नगरी शमशाबाद । शमशाबाद तीन दशक पहले तक मिनी मुरादाबाद के नाम से देश भर में मशहूर था। लेकिन बदलते वक्त और सिस्टम की उपेक्षा ने आज यहां के पीतल उद्योग को अंतिम सांसे गिनने को मजबूर कर दिया है। साल 1962 में पीएम इंदिरा गांधी ने इस पीतल उद्योग को संवारने के लिए बर्तन निर्माण उद्योग सहकारी समिति लिमिटेड आधारशिला रखी। मुरादाबाद से बर्तन बनाने की मशीन मंगवाई गई । कल कारखानों ने काम करना शुरू किया । लेकिन सरकारों की अनदेखी से सरकारी सिस्टम ने दीमक की तरह उद्योग को खत्म कर दिया, और इसमें जुड़े कारोबारियों को यहां से पलायन करने को मजबूर कर दिया। नतीजा शमशाबाद से मृत प्राय हो चुके पीतल उद्योग की जान मजहब लोटे के बर्तन में अटकी है। 2014 में बीजेपी के सांसद ने इसे गोद लेकर सवारने की कोशिश की पर लोगों का आरोप है कि सांसद के प्रयास उनके लिए अब तक न काफी है।



Body:यूपी की हाई प्रोफाइल विधानसभा में शामिल सिराथू स्थित शमशाबाद में पीतल उद्योग को बढ़ावा देने के लिए 31 जनवरी 1962 में इंदिरा गांधी आई थी । उन्होंने गांव में बर्तन निर्माण उद्योग समिति लिमिटेड की आधारशिला रखी थी। मुरादाबाद से बर्तन बनाने के लिए मशीनें मंगवाई गई थी। गांव के बाहर कारखाने स्थापित करने के लिए भवन निर्माण कराया गया था। 35 बरस पहले सन 1984-85 के दौर में पीतल नगरी के नाम से मशहूर शमशाबाद की ख्याति दूर दूर तक थी। यहां बनने वाले पीतल के बर्तन की बाजार में काफी मांग थी। इस नगरी में उस वक्त 243 कारखाने स्थापित थे। इस शमशाबाद गांव की ख्याति प्रदेश के विभिन्न जनपदों के साथ गैर प्रांत उड़ीसा से पुरी तक हो चुकी थी। यहां बनने वाले खास किस्म के बर्तनों में उकेरी जाने वाली कृतियों को बहुत लोकप्रियता मिली। उस समय शमशाबाद के बर्तन की मांग कानपुर, आगरा, इलाहाबाद, वाराणसी, मुरादाबाद, मिर्जापुर समेत कई जनपदों में है। गांव के घर घर में बर्तन बनाने का कारखाना लगा था। विभिन्न कारखानों में तकरीबन 6000 मजदूर रात दिन मजदूरी करते थे। रात दिन पीतल के बर्तनों में होने वाली पिटाई से कान में ठक-ठक की आवाज गूंजती रहती थी। इसके पास से गुजरने वाले राहगीर भी आवाज सुनकर समझ जाते थे कि वह पीतल नगरी के सरहद से गुजर रहे हैं। 70 के दशक मैं बर्तन कारोबारियों के यहां आए दिन डकैतों ने धावा बोलना शुरू कर दिया। इससे दहशतदजा होकर गांव के बड़े कारोबारियों में शुमार रहे महाराज जी, केदार महाजन, हनुमान जयसवाल, हनुमान कसेरा जैसे तमाम कारोबारी पलायन कर शहर की ओर चले गए। इसी के साथ शुरू हुआ खराब दौर लगातार बिगड़ता चला गया। निरोगी माने जाने वाले पीतल के बर्तन वजन में भारी होने के साथ महंगे भी पडने लगे। प्रचलन में आया स्टील का बर्तन हल्का होने के साथ सस्ता भी पड़ने लगा । इसलिए स्टील ने देखते ही देखते पीतल के बर्तनों की जगह ले ली। किसी ने सोचा भी नहीं था कि यहां फल फूल रहा पीतल कारोबार चौपट हो जाएगा।




Conclusion:स्थानीय नागरिक राकेश केसरी के मुताबिक पीतल नगरी के नाम से मशहूर शमशाबाद कभी मुरादाबाद की टक्कर लिया करता था। मुरादाबाद के बाद दूसरा नंबर शमशाबाद का आता था। आज बर्तन व्यवसाय प्रशासनिक उपेक्षा के कारण 20 प्रतिशत से कम रह गया है। कभी 100 कारखाने बर्तन के हुआ करते थे। आज 6-7 कारखाने बचे हैं । यहां की कारीगर भुखमरी की कगार पर आ गए हैं। मजदूरी कर रहे हैं। इस हालत के सवाल करने पर बताते हैं कि हालत में मुख्य कारण स्टील के बर्तन कहै। स्टील के कारखानों को जहां करोड़ों का लोन मिलता है। वही पीतल और गिलट के बर्तन बनाने वालों को बैंक लाखों का लोन देने को तैयार नहीं है । इसके पीछे हमारे जनप्रतिनिधि सबसे बड़े जिम्मेदार हैं। लोटे तक कारोबार बचने की सवाल पर बताते हैं कि पीतल और गिलट का जो कारोबार था वह केवल लोटा ही बचा है क्योंकि लौटा मांगलिक कार्यों में प्रयोग होता है। इसलिए वह बचा है।

बाइट -- राकेश केसरी स्थानीय नागरिक


पीतल की जगह स्टील के बर्तनों ने भले ही घरों में कब्जा कर लिया हो पर आज भी पूजा पाठ और शादी ब्याह में पीतल के बर्तन का उपयोग ही शुभ माना जाता है। पीतल उद्योग का खात्मा होने के बावजूद कुछ लोग आज भी कारखाना चला रहे हैं। हालांकि इन के कारखाने में सिर्फ लोटा ही बनाए जाते हैं। इन व्यापारियों का कहना है कि शमशाबाद के पीतल नगरी की जान आज भी लौटे पर अटकी हुई है। लोटा की मांग मांगलिक कार्यक्रम में होने की वजह से । अगर लौटे की मांग मांगलिक कार्यक्रम में ना होती तो इसकी जान कब की निकल चुकी होती।

THANKS REGARDS
SATYENDRA KHARE
KAUSHAMBI
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