कौशाम्बी: मिनी मुरादाबाद के नाम से मशहूर शमशाबाद के पीतल कारोबार की चमक अब नहीं रही. स्टील के दौर ने पीतल की चमक को पूरी तरह खत्म कर दिया. पीतल के बर्तनों का कारोबार खत्म होते-होते लोटे-गिलास तक सिमट गया. 70 के दशक तक यह शहर देश ही नहीं विदेश में भी पीतल नगरी के तौर पर जाना जाता था, लेकिन इसी दौर में इस शहर को डकैतों की नजर लग गई और कई पीतल कारोबारी शहर छोड़ गए. बाद के दशकों में स्टील की अचानक बढ़ी मांग ने इस शहर की कमर ही तोड़ दी.
साल 1962 में पीएम इंदिरा गांधी ने पीतल उद्योग को संवारने के लिए बर्तन निर्माण उद्योग सहकारी समिति लिमिटेड की आधारशिला रखी. मुरादाबाद से बर्तन बनाने की मशीन मंगवाई गई. उद्योग ने रफ्तार पकड़ी तो डकैतों ने वसूली शुरू कर दी. सरकार सुरक्षा न दे सकी तो बड़े कारोबारियों में शुमार रहे महाराज जी, केदार महाजन, हनुमान जयसवाल जैसे तमाम बड़े कारोबारी पलायन कर गए. 35 बरस पहले सन 1984-85 के दौर में शमशाबाद में 243 कारखाने चल रहे थे. यहां बनने वाले खास किस्म के बर्तनों में उकेरी जाने वाली कृतियों को बहुत लोकप्रियता मिली. उस समय शमशाबाद के बर्तन की मांग कानपुर, आगरा, इलाहाबाद, वाराणसी समेत कई बड़े शहरों में थी.
महंगे पीतल की जगह सस्ते स्टील ने ले ली. बावजूद इसके पूजा-पाठ और शादी में पीतल के बर्तन शुभ माने जाते हैं. बस इसी के भरोसे आज भी कुछ लोग कारखाने चला रहे हैं. हालांकि इन कारखानों में सिर्फ लोटे ही बनाए जाते हैं. शमशाबाद को अब सिर्फ सरकार की आस है, शायद कुछ हो जाए और दम तोड़ता पीतल कारोबार फिर खड़ा हो जाए.