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काला गेहूं उगाएं,  किसान लाभ तो मरीज सेहत पाएं - मुरादाबाद में गेहूं की खेती

काले और बैंगनी गेहूं की लोकप्रियता देश भर में तेजी से बढ़ रही है. इस विशेष प्रजाति के गेहूं की खेती अब मुरादाबाद में भी शुरू हो गई है. काले और बैंगनी रंग के ये गेहूं शरीर के लिए तो फायदेमंद हैं ही, इसकी उपज भी काफी अच्‍छी होती है. इसकी खेती से किसानों को भी आर्थिक रूप से लाभ मिल रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Jan 25, 2021, 3:56 PM IST

मुरादाबाद: कृषि क्षेत्र में सुधारों को लेकर वैज्ञानिकों और सरकार द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है. किसानों की आय को बढ़ाना और उन्हें उन्नत खेती की तरफ मोड़ना भी इन्हीं प्रयासों में से एक है. मुरादाबाद जिले में भी अब अन्य जगहों की तरह काले एवं बैंगनी गेहूं की खेती को नया आयाम मिल रहा है. किसान प्रयोग के तौर पर ही, लेकिन औषधीय गुणों से भरपूर इन काले और बैगनी रंग के गेहूं के बीजों को अपने खेतों में बो रहे हैं. किसान इस बात को लेकर आशान्वित भी हैं कि इस बार उन्हें बेहतर उपज के साथ-साथ बेहतर दाम भी मिलेगा. इसका अभिनव प्रयोग कृषि वैज्ञानिक और उन्नत किसान डॉ. दीपक मेंहदी रत्ता के फॉर्म हाउस पर शुरू हुआ है. कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़े किसान यहां से नए गेहूं का बीज लेकर अपने खेतों में उम्मीदों की फसल बो रहे हैं.

स्पेशल रिपोर्ट.
क्या है काले और बैंगनी गेहूं का महत्व
पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट यानी नाबी में विकसित किया गया काले और बैगनी रंग का यह गेहूं अपने आप में औषधीय गुणों से भरपूर है. काले गेहूं में जहां कैंसर, डायबिटीज, तनाव, दिल की बीमारी और मोटापे जैसी अन्य बीमारियों से लड़ने की क्षमता है. वहीं बैगनी या जामुन कलर के रंग के गेहूं में भी बीमारियों से लड़ने की अभूतपूर्व क्षमता बताई जाती है. इस गेहूं की फसल 120 दिनों में तैयार हो जाती है. इसे पानी देने की जरूरत भी कम पड़ती है. इसके साथ ही इसमें बिल्कुल न के बराबर पेस्टिसाइड का प्रयोग करना पड़ता है. अगर किसान चाहे तो इसकी खेती जैविक रूप से भी कर सकता है, जिसमें न केवल उपज अच्छी मिलती है, बल्कि बाजार में यह गेहूं 3000 से 5000 रुपये क्विंटल के हिसाब से बिकता है.
काले गेहूं की खेती से जुड़ रहे किसान
मुरादाबाद में अपने तरीके के एक कृषि विज्ञान केंद्र का संचालन करने वाले डॉक्टर दीपक मेंहदी रत्ता बताते हैं कि काले व बैगनी रंग के गेहूं की खेती से जिले के कई किसान जुड़ रहे हैं. इस बार तकरीबन 200 हेक्टेयर में नए गेहूं की फसल को तैयार किया जा रहा है. खासकर युवा किसानों में नए तरीके की खेती को लेकर दिलचस्पी है, तो उनका जुड़ाव इस गेहूं की खेती में बेशक ज्यादा है.
क्या कहते हैं युवा किसान
ईटीवी भारत से बात करते हुए इटावा और मुरादाबाद के युवा किसान बताते हैं कि हमने इस बार पारंपरिक गेहूं की जगह काले और बैगनी रंग के गेहूं की खेती की शुरुआत की है. शुरुआत में यह सामान्य गेहूं जैसा ही दिखता है, लेकिन जब ये पकने लगते हैं, तो इसका रंग काला या बैंगनी हो जाता है. युवा किसान बताते हैं कि काले और बैंगनी रंग के गेहूं में पारंपरिक गेहूं के मुकाबले अधिक पौष्टिकता होती है. इस तरह की गेहूं में कई बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी पाई जाती है. यह औषधीय गुणों से भरपूर है और इसकी खेती में आम गेहूं की तरह ही लागत आती है. वह बताते हैं पूरी तरह जैविक रूप से तैयार किए जाने वाले इस गेहूं में उपज अच्छी मिलती है और पानी तथा पेस्टिसाइड बिल्कुल न के बराबर प्रयोग में लाया जाता है. फसल पकने के बाद हमें इस गेहूं का बाजार में आम गेहूं के मुकाबले अधिक मूल्य मिलता है. आम गेहूं जहां 1200 रुपये से 1800 रुपये क्विंटल बिकता है, वहीं यह गेहूं 3000 रुपये से 5000 रुपये क्विंटल तक बिकता है.
कृषि वैज्ञानिक ने दी जानकारी
डॉ. दीपक मेहंदी रत्ता बताते हैं कि कुछ किसानों द्वारा इसकी खेती शुरू की गई. काले और बैंगनी में भिन्नता यह है कि इसमें जिंक और आयरन की मात्रा अधिक है. इनमें मात्रा अधिक होने के कारण यह औषधीय गुणों से भरपूर हैं और कई बीमारियों को दूर करने में सक्षम हैं. वह बताते हैं कि काले गेहूं का आटा बाजरे के आटे के जैसा होता है और रोटी में थोड़ा सा कालापन होता है, जबकि बैंगनी गेहूं का आटा हल्का गुलाबी रंग का होता है और रोटी भी गुलाबी बनती है. डॉ. रत्ता बताते हैं कि इसका उत्पादन सामान्य गेहूं से थोड़ा ज़्यादा ही है या बराबर है. कम नहीं है. 22 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ इस गेहूं का जैविक रूप से उत्पादन किया जा सकता है. इसके साथ ही इस गेहूं में बीज की मात्रा कम ही लगती है. 35 से 40 किलो एक एकड़ में इसका बीज पर्याप्त है. इसका विकास भी बेहद अच्छा है. अभी जो गेहूं बोया गया है. उसमें काफी बेहतर विकास देखा जा रहा है, तो किसान भाइयों को अन्य किसानों की तरह इस गेहूं के पैदावार के लिए आगे आना चाहिए.

मुरादाबाद: कृषि क्षेत्र में सुधारों को लेकर वैज्ञानिकों और सरकार द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है. किसानों की आय को बढ़ाना और उन्हें उन्नत खेती की तरफ मोड़ना भी इन्हीं प्रयासों में से एक है. मुरादाबाद जिले में भी अब अन्य जगहों की तरह काले एवं बैंगनी गेहूं की खेती को नया आयाम मिल रहा है. किसान प्रयोग के तौर पर ही, लेकिन औषधीय गुणों से भरपूर इन काले और बैगनी रंग के गेहूं के बीजों को अपने खेतों में बो रहे हैं. किसान इस बात को लेकर आशान्वित भी हैं कि इस बार उन्हें बेहतर उपज के साथ-साथ बेहतर दाम भी मिलेगा. इसका अभिनव प्रयोग कृषि वैज्ञानिक और उन्नत किसान डॉ. दीपक मेंहदी रत्ता के फॉर्म हाउस पर शुरू हुआ है. कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़े किसान यहां से नए गेहूं का बीज लेकर अपने खेतों में उम्मीदों की फसल बो रहे हैं.

स्पेशल रिपोर्ट.
क्या है काले और बैंगनी गेहूं का महत्व
पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट यानी नाबी में विकसित किया गया काले और बैगनी रंग का यह गेहूं अपने आप में औषधीय गुणों से भरपूर है. काले गेहूं में जहां कैंसर, डायबिटीज, तनाव, दिल की बीमारी और मोटापे जैसी अन्य बीमारियों से लड़ने की क्षमता है. वहीं बैगनी या जामुन कलर के रंग के गेहूं में भी बीमारियों से लड़ने की अभूतपूर्व क्षमता बताई जाती है. इस गेहूं की फसल 120 दिनों में तैयार हो जाती है. इसे पानी देने की जरूरत भी कम पड़ती है. इसके साथ ही इसमें बिल्कुल न के बराबर पेस्टिसाइड का प्रयोग करना पड़ता है. अगर किसान चाहे तो इसकी खेती जैविक रूप से भी कर सकता है, जिसमें न केवल उपज अच्छी मिलती है, बल्कि बाजार में यह गेहूं 3000 से 5000 रुपये क्विंटल के हिसाब से बिकता है.
काले गेहूं की खेती से जुड़ रहे किसान
मुरादाबाद में अपने तरीके के एक कृषि विज्ञान केंद्र का संचालन करने वाले डॉक्टर दीपक मेंहदी रत्ता बताते हैं कि काले व बैगनी रंग के गेहूं की खेती से जिले के कई किसान जुड़ रहे हैं. इस बार तकरीबन 200 हेक्टेयर में नए गेहूं की फसल को तैयार किया जा रहा है. खासकर युवा किसानों में नए तरीके की खेती को लेकर दिलचस्पी है, तो उनका जुड़ाव इस गेहूं की खेती में बेशक ज्यादा है.
क्या कहते हैं युवा किसान
ईटीवी भारत से बात करते हुए इटावा और मुरादाबाद के युवा किसान बताते हैं कि हमने इस बार पारंपरिक गेहूं की जगह काले और बैगनी रंग के गेहूं की खेती की शुरुआत की है. शुरुआत में यह सामान्य गेहूं जैसा ही दिखता है, लेकिन जब ये पकने लगते हैं, तो इसका रंग काला या बैंगनी हो जाता है. युवा किसान बताते हैं कि काले और बैंगनी रंग के गेहूं में पारंपरिक गेहूं के मुकाबले अधिक पौष्टिकता होती है. इस तरह की गेहूं में कई बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी पाई जाती है. यह औषधीय गुणों से भरपूर है और इसकी खेती में आम गेहूं की तरह ही लागत आती है. वह बताते हैं पूरी तरह जैविक रूप से तैयार किए जाने वाले इस गेहूं में उपज अच्छी मिलती है और पानी तथा पेस्टिसाइड बिल्कुल न के बराबर प्रयोग में लाया जाता है. फसल पकने के बाद हमें इस गेहूं का बाजार में आम गेहूं के मुकाबले अधिक मूल्य मिलता है. आम गेहूं जहां 1200 रुपये से 1800 रुपये क्विंटल बिकता है, वहीं यह गेहूं 3000 रुपये से 5000 रुपये क्विंटल तक बिकता है.
कृषि वैज्ञानिक ने दी जानकारी
डॉ. दीपक मेहंदी रत्ता बताते हैं कि कुछ किसानों द्वारा इसकी खेती शुरू की गई. काले और बैंगनी में भिन्नता यह है कि इसमें जिंक और आयरन की मात्रा अधिक है. इनमें मात्रा अधिक होने के कारण यह औषधीय गुणों से भरपूर हैं और कई बीमारियों को दूर करने में सक्षम हैं. वह बताते हैं कि काले गेहूं का आटा बाजरे के आटे के जैसा होता है और रोटी में थोड़ा सा कालापन होता है, जबकि बैंगनी गेहूं का आटा हल्का गुलाबी रंग का होता है और रोटी भी गुलाबी बनती है. डॉ. रत्ता बताते हैं कि इसका उत्पादन सामान्य गेहूं से थोड़ा ज़्यादा ही है या बराबर है. कम नहीं है. 22 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ इस गेहूं का जैविक रूप से उत्पादन किया जा सकता है. इसके साथ ही इस गेहूं में बीज की मात्रा कम ही लगती है. 35 से 40 किलो एक एकड़ में इसका बीज पर्याप्त है. इसका विकास भी बेहद अच्छा है. अभी जो गेहूं बोया गया है. उसमें काफी बेहतर विकास देखा जा रहा है, तो किसान भाइयों को अन्य किसानों की तरह इस गेहूं के पैदावार के लिए आगे आना चाहिए.
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