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कोरोना वायरस: लॉकडाउन में कवि ऐसे कर रहे जागरूक, आप भी दें इन बातों पर ध्यान - covid19

कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन में लोगों का मनोरंजन करने और उन्हें जागरूक करने के उद्देश्य से मिर्जापुर में कवि शुभम श्रीवास्तव ओम ने दो कविताएं लिखी हैं. वह कविताओं के जरिए कोरोना वायरस से बचाव संबंधी संदेश लोगों तक पहुंचा रहे हैं.

लॉकडाउन में कवि ने कविताओं के जरिए किया जागरूक.
लॉकडाउन में कवि ने कविताओं के जरिए किया जागरूक.
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Published : Apr 18, 2020, 1:20 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST

मिर्जापुर: कोरोना से जंग ने पूरी दुनिया का एक जैसा हाल कर दिया है. आम से लेकर खास सभी अपने घरों में बंद रहने को मजबूर हैं. ऐसे मुश्किल वक्त में कुछ लोग अपनों के साथ पल बिता रहे हैं, कुछ लोग जरूरतमंद असहाय लोगों की मदद कर रहे हैं, लेकिन मिर्जापुर में एक कवि आम लोगों को कविता के जरिए जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं.

कवि शुभम श्रीवास्तव ओम अपनी कविता के माध्यम से लोगों को कोरोना वायरस के बारे में जागरूक कर रहे हैं. उनका कहना है कि "जिंदगी लौटेगी फिर से इस सड़क पर, हम अगर कुछ दिन घरों में ही रहे तो". कोरोना के खिलाफ यह लड़ाई अभी बहुत बड़ी है और हमें इससे जीतना है. इसलिए सभी लोग घर में रहें और बेवजह बाहर न निकलें.

प्रकृति में बदलाव अच्छा संदेश-कवि

कोविड-19 संक्रमण का फैलाव कम हो इसलिए देश में लॉक डाउन-2 तीन मई तक घोषित कर दिया गया. ऐसे में घर बैठे कवि भी कोरोना वायरस से बचाव संबंधी कविता पेश कर लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं. कवि की कल्पना है कि लॉक डाउन का जो वास्तविक पक्ष है, उससे प्रकृति में अच्छा परिवर्तन हो रहा है. कवि का कहना है कि जो लोग घर पर बैठकर तरह-तरह की समस्याओं से ग्रस्त हो रहे हैं, उनकी समस्या का समाधान मनोरंजन कर किया जा सकता है. वहीं मेरी कविता जो लोगों के मन में इस समय चल रहा है, वही बयां कर रही है.

पहली रचना में इन बातों का किया जिक्र

"आज में आता हुआ कल गढ़ रहे हैं, हम घर में कैद हैं पर लड़ रहे हैं. ट्वीट, ब्रेकिंग न्यूज बढ़ते आंकड़े हैं, हम पढ़े अखबार से होकर पड़े हैं, रोज खुद में घट रहे हैं कुछ बढ़ रहे हैं, फीस, खर्चे, सैलरी बीमारियों से कट रहे. यूं उलझनों की आरियों से हम कभी सिर कभी बस धड़ अलग कर रहे हैं. टीस, कुंठा, दुख उदासी- कैदखाने अनमनापन और हमलावर अजाने एक थप्पड़ खूब कसके जड़ रहे हैं. लड़खड़ाते और खुद से हैं संभलते, रोज ही ऊपर पहुंच कर हम भी फिसलते, रोज ही हम और ऊपर चढ़ रहे हैं".

दूसरी कविता में गढ़े ये शब्द

दूसरी कविता इस प्रकार है. जिंदगी लौटेगी फिर से इस सड़क पर हम अगर कुछ दिन घरो में ही रहें तो! देहरी पर की खींची रेखा ये सलाखें, ये नई शर्ते तंग गलियों की धंसी आंखें बस धुंए की फैलती पर्ते, इस धुएं को इन्हीं पर्तो में तहें तो! फूल रंगे, गीत नदियों के मन दहकना देर तक होगा भोर में फिर ताजगी होगी चांद पहले से चटक होगा, नया सा सूरज लगेगा सच कहें तो!

बेवजह बाहर घूमने वालों को चेताया

कवि शुभम श्रीवास्तव ओम ने इन दो कविताओं के जरिए उन लोगों को आगाह किया है जो बेवजह घरों से बाहर घूम रहे हैं. कोरोना वायरस के संक्रमण और लॉक डाउन को अभी भी हल्के में ले रहे हैं. कवि का कहना है कि मेरी कविता की लाइनें बहुत कुछ कह रही हैं.

मिर्जापुर: कोरोना से जंग ने पूरी दुनिया का एक जैसा हाल कर दिया है. आम से लेकर खास सभी अपने घरों में बंद रहने को मजबूर हैं. ऐसे मुश्किल वक्त में कुछ लोग अपनों के साथ पल बिता रहे हैं, कुछ लोग जरूरतमंद असहाय लोगों की मदद कर रहे हैं, लेकिन मिर्जापुर में एक कवि आम लोगों को कविता के जरिए जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं.

कवि शुभम श्रीवास्तव ओम अपनी कविता के माध्यम से लोगों को कोरोना वायरस के बारे में जागरूक कर रहे हैं. उनका कहना है कि "जिंदगी लौटेगी फिर से इस सड़क पर, हम अगर कुछ दिन घरों में ही रहे तो". कोरोना के खिलाफ यह लड़ाई अभी बहुत बड़ी है और हमें इससे जीतना है. इसलिए सभी लोग घर में रहें और बेवजह बाहर न निकलें.

प्रकृति में बदलाव अच्छा संदेश-कवि

कोविड-19 संक्रमण का फैलाव कम हो इसलिए देश में लॉक डाउन-2 तीन मई तक घोषित कर दिया गया. ऐसे में घर बैठे कवि भी कोरोना वायरस से बचाव संबंधी कविता पेश कर लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं. कवि की कल्पना है कि लॉक डाउन का जो वास्तविक पक्ष है, उससे प्रकृति में अच्छा परिवर्तन हो रहा है. कवि का कहना है कि जो लोग घर पर बैठकर तरह-तरह की समस्याओं से ग्रस्त हो रहे हैं, उनकी समस्या का समाधान मनोरंजन कर किया जा सकता है. वहीं मेरी कविता जो लोगों के मन में इस समय चल रहा है, वही बयां कर रही है.

पहली रचना में इन बातों का किया जिक्र

"आज में आता हुआ कल गढ़ रहे हैं, हम घर में कैद हैं पर लड़ रहे हैं. ट्वीट, ब्रेकिंग न्यूज बढ़ते आंकड़े हैं, हम पढ़े अखबार से होकर पड़े हैं, रोज खुद में घट रहे हैं कुछ बढ़ रहे हैं, फीस, खर्चे, सैलरी बीमारियों से कट रहे. यूं उलझनों की आरियों से हम कभी सिर कभी बस धड़ अलग कर रहे हैं. टीस, कुंठा, दुख उदासी- कैदखाने अनमनापन और हमलावर अजाने एक थप्पड़ खूब कसके जड़ रहे हैं. लड़खड़ाते और खुद से हैं संभलते, रोज ही ऊपर पहुंच कर हम भी फिसलते, रोज ही हम और ऊपर चढ़ रहे हैं".

दूसरी कविता में गढ़े ये शब्द

दूसरी कविता इस प्रकार है. जिंदगी लौटेगी फिर से इस सड़क पर हम अगर कुछ दिन घरो में ही रहें तो! देहरी पर की खींची रेखा ये सलाखें, ये नई शर्ते तंग गलियों की धंसी आंखें बस धुंए की फैलती पर्ते, इस धुएं को इन्हीं पर्तो में तहें तो! फूल रंगे, गीत नदियों के मन दहकना देर तक होगा भोर में फिर ताजगी होगी चांद पहले से चटक होगा, नया सा सूरज लगेगा सच कहें तो!

बेवजह बाहर घूमने वालों को चेताया

कवि शुभम श्रीवास्तव ओम ने इन दो कविताओं के जरिए उन लोगों को आगाह किया है जो बेवजह घरों से बाहर घूम रहे हैं. कोरोना वायरस के संक्रमण और लॉक डाउन को अभी भी हल्के में ले रहे हैं. कवि का कहना है कि मेरी कविता की लाइनें बहुत कुछ कह रही हैं.

Last Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST
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