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गंगा में गंगेश्वर महादेव की जल समाधि, सिर्फ 6 महीने होते हैं दुर्लभ दर्शन

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Published : Jan 29, 2021, 12:48 PM IST

आध्यत्मिक दृष्टि से भारत में हिन्दू देवी-देवताओं के अनेक मंदिर विद्यमान हैं. उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कन्या कुमारी तक भगवान शिव के मंदिरों की बड़ी श्रृंखला भोलेनाथ के प्रति हमारी आस्था का प्रतीक है. ऐसे ही मिर्जापुर जिले में विंध्याचल के गंगा नदी में विराजमान हैं गंगेश्वर महादेव. त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने गंगेश्वर महादेव की स्थापना की थी.

त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.

मिर्जापुर : अभी तक आपने जितने शिवलिंग के दर्शन होंगे वह मंदिर में या खुले आसमान में किये होंगे. मगर आज हम आपको ऐसे शिवलिंग का दर्शन कराने जा रहे हैं, जो बीच गंगा नदी में विराजमान हैं. बताया जाता है कि विंध्याचल में गंगेश्वर महादेव की स्थापना त्रेतायुग में गर्ग ऋषि ने विंध्य पर्वत और गंगा नदी के संगम स्थल पर की थी. तब से गंगेश्वर महादेव इसी तरह से मां गंगा नदी में देखे जा रहे हैं. हालांकि गगेश्वर महादेव का पूरे साल दर्शन कर पाना दुर्लभ है. जल समाधि लेने के बाद उनका दर्शन दुर्लभ हो जाता है. हालांकि नवंबर महीने में फिर से महादेव का दर्शन मिलना शुरू हो जाता है. ऐसी मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से भक्तों की समस्त मनोकामना पूर्ण हो जाती है.

त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.

आस्था का केंद्र बने गंगेश्वर महादेव
विंध्य पर्वत से स्पर्श करते हुए पतित पावनी गंगा मिर्जापुर के विंध्याचल में बहती हैं. गंगा नदी के बीच में त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने गंगेश्वर महादेव की विधिवत पूजन अर्चन कर स्थापना किया था. जो आज भी भक्तों के लिए आस्था के केंद्र बने हुए हैं. गंगा नदी के जल धाराओं के बीच स्थापित महादेव का दर्शन जलस्तर बढ़ने के बाद दुर्लभ हो जाता है. महादेव जल के बीच की समाधि ले लेते हैं. लिहाजा भक्तों को उनका दर्शन नहीं हो पाता है. अब तक किसी भी भक्त ने 365 दिन तक उनका दर्शन नहीं किया है. बारिश से लेकर नवंबर महीने तक भोलेनाथ जल समाधि में रहते हैं. नवंबर महीने से लेकर बारिश के आने तक इनके दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.

त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.

शिवलिंग पर बना है रुद्राक्ष

दरअसल मिर्जापुर का विंध्याचल धाम भी हिंदुओं के आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है. विश्व प्रसिद्ध मां विंध्यवासिनी के साथ गंगा नदी में विराजमान गंगेश्वर महादेव का श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं. गंगेश्वर महादेव 6 महीने जल समाधि में रहते हैं 6 महीने ही दर्शन देते हैं, इसलिए पानी कम होते ही यहां पर श्रद्धालुओं गंगेश्वर महादेव का दर्शन करने पहुंच जाते हैं. श्रद्धालुओं का मानना है कि इस तरह का स्थान कहीं नहीं है, यह सिर्फ विंध्याचल धाम में है. इस शिवलिंग पर खुद रुद्राक्ष बना हुआ है और यह बीच गंगा नदी में विराजमान हैं.

त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.

क्या कहते हैं स्थानीय
स्थानीय रामलाल साहनी बताते हैं कि शिवलिंग त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने स्थापित किया था. इसलिए इसे गंगेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. चाहे जितना पानी गंगा जी में बढ़ जाए यह जस के तस पड़ा रहता है. भोलेनाथ 6 महीने पानी भरने की वजह से जल समाधि लिए रहते हैं, इसके बाद 6 महीने भक्तों को दर्शन देते हैं. इस तरह का दिव्य स्थान आपको कहीं नहीं मिलेगा क्योंकि गंगा नदी यहां विंध्य पर्वत से स्पर्श से होकर गुजरती हैं. दुनिया में कहीं भी इस तरह का विंध्य पर्वत और गंगा का संगम आपको देखने को नहीं मिलेगा. वहीं गंगेश्वर महादेव की सेवक सुनीता बताती हैं कि हमारे पास बेटा नहीं था. किसी ने बताया तो हमने यहां आकर दर्शन किया. इसके बाद गंगेश्वर महादेव महाराज ने हमें बेटा दिया है, तब से लेकर अब तक हम इनकी सेवा करते हैं.

त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.

मिर्जापुर : अभी तक आपने जितने शिवलिंग के दर्शन होंगे वह मंदिर में या खुले आसमान में किये होंगे. मगर आज हम आपको ऐसे शिवलिंग का दर्शन कराने जा रहे हैं, जो बीच गंगा नदी में विराजमान हैं. बताया जाता है कि विंध्याचल में गंगेश्वर महादेव की स्थापना त्रेतायुग में गर्ग ऋषि ने विंध्य पर्वत और गंगा नदी के संगम स्थल पर की थी. तब से गंगेश्वर महादेव इसी तरह से मां गंगा नदी में देखे जा रहे हैं. हालांकि गगेश्वर महादेव का पूरे साल दर्शन कर पाना दुर्लभ है. जल समाधि लेने के बाद उनका दर्शन दुर्लभ हो जाता है. हालांकि नवंबर महीने में फिर से महादेव का दर्शन मिलना शुरू हो जाता है. ऐसी मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से भक्तों की समस्त मनोकामना पूर्ण हो जाती है.

त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.

आस्था का केंद्र बने गंगेश्वर महादेव
विंध्य पर्वत से स्पर्श करते हुए पतित पावनी गंगा मिर्जापुर के विंध्याचल में बहती हैं. गंगा नदी के बीच में त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने गंगेश्वर महादेव की विधिवत पूजन अर्चन कर स्थापना किया था. जो आज भी भक्तों के लिए आस्था के केंद्र बने हुए हैं. गंगा नदी के जल धाराओं के बीच स्थापित महादेव का दर्शन जलस्तर बढ़ने के बाद दुर्लभ हो जाता है. महादेव जल के बीच की समाधि ले लेते हैं. लिहाजा भक्तों को उनका दर्शन नहीं हो पाता है. अब तक किसी भी भक्त ने 365 दिन तक उनका दर्शन नहीं किया है. बारिश से लेकर नवंबर महीने तक भोलेनाथ जल समाधि में रहते हैं. नवंबर महीने से लेकर बारिश के आने तक इनके दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.

त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.

शिवलिंग पर बना है रुद्राक्ष

दरअसल मिर्जापुर का विंध्याचल धाम भी हिंदुओं के आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है. विश्व प्रसिद्ध मां विंध्यवासिनी के साथ गंगा नदी में विराजमान गंगेश्वर महादेव का श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं. गंगेश्वर महादेव 6 महीने जल समाधि में रहते हैं 6 महीने ही दर्शन देते हैं, इसलिए पानी कम होते ही यहां पर श्रद्धालुओं गंगेश्वर महादेव का दर्शन करने पहुंच जाते हैं. श्रद्धालुओं का मानना है कि इस तरह का स्थान कहीं नहीं है, यह सिर्फ विंध्याचल धाम में है. इस शिवलिंग पर खुद रुद्राक्ष बना हुआ है और यह बीच गंगा नदी में विराजमान हैं.

त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.

क्या कहते हैं स्थानीय
स्थानीय रामलाल साहनी बताते हैं कि शिवलिंग त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने स्थापित किया था. इसलिए इसे गंगेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. चाहे जितना पानी गंगा जी में बढ़ जाए यह जस के तस पड़ा रहता है. भोलेनाथ 6 महीने पानी भरने की वजह से जल समाधि लिए रहते हैं, इसके बाद 6 महीने भक्तों को दर्शन देते हैं. इस तरह का दिव्य स्थान आपको कहीं नहीं मिलेगा क्योंकि गंगा नदी यहां विंध्य पर्वत से स्पर्श से होकर गुजरती हैं. दुनिया में कहीं भी इस तरह का विंध्य पर्वत और गंगा का संगम आपको देखने को नहीं मिलेगा. वहीं गंगेश्वर महादेव की सेवक सुनीता बताती हैं कि हमारे पास बेटा नहीं था. किसी ने बताया तो हमने यहां आकर दर्शन किया. इसके बाद गंगेश्वर महादेव महाराज ने हमें बेटा दिया है, तब से लेकर अब तक हम इनकी सेवा करते हैं.

त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
त्रेता युग में गर्ग ऋषि ने की थी गंगेश्वर महादेव की स्थापना.
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