मिर्जापुर : भारत के साइंटिस्ट डॉ. मयंक (Mirzapur Dr Mayank in USA) ने मेडिसिन क्षेत्र में देश का नाम रोशन किया है. उन्होंने डॉ. टोमालिया, डॉ. हेडस्ट्रैंड और डॉ. निक्सन के साथ मिलकर विकसित की गई जिस टेक्नोलॉजी को पेटेंट कराया था, उसका ह्यूमन ट्रायल सफल हो गया है. 15 दिसंबर 2022 को पेटेंट सहयोग संधि एवं विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के अंतरराष्ट्रीय ब्यूरो की ओर से मंजूरी के बाद इस टेक्नोलॉजी के उपयोग का रास्ता साफ हो गया है.
डॉ. मयंक ने बताया कि इस टेक्नोलॉजी का उद्देश्य रासायनिक एजेंटों की श्रेणियों को पर्यावरण के अनुकूल-सुरक्षित और न्यूनतम मूल्य पर विकसित करना है. इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में होगा, जिनमें दवाएं, पौष्टिक-औषधीय, जैवऔषधीय, वैक्सीन, पशु चिकित्सा उत्पाद, सौंदर्य उत्पाद, कृषि उर्वरक, खाद्य पदार्थों के संरक्षण के लिए और पेय पदार्थ भी सामिल है. डॉ. मयंक ने बताया कि इस बायोकंपैटिबल तकनीक को मनुष्यों में अधिकतम मात्रा में सुरक्षित पाया गया और सेल्फ लाइफ विभिन्न परिस्थितियों में अठारह महीनों तक अच्छी तरह से स्थिर रही.
पेटेंट सहयोग संधि एवं विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के अंतरराष्ट्रीय ब्यूरो की ओर मंजूरी मिलने के बाद अमेरिका सहित पांच देश कनाडा, मेक्सिको, यूरोप एवं भारत गणराज्य इस टेक्नोलॉजी इस्तमाल करेंगे. डॉ. मयंक ने इसके पहले भी डेंड्रिमर नैनोटेक्नोलॉजी आधारित एंटी-एजिंग (बुढ़ापा विरोधी) क्रीम, जेल, सीरम,ओरल सस्पेंशन इत्यादि फार्मूला भी विकसित कर चुके हैं. डॉ मयंक की यह टेक्नोलॉजी विभिन्न फार्मा उद्योगों को आकर्षित कर रही है.
बता दें कि डॉ. मयंक मिर्जापुर जिले के चुनार क्षेत्र के बगही गांव रहने वाले हैं. वर्तमान में डॉ. मयंक संयुक्त राज्य अमेरिका में मिशिगन राज्य के माउंट प्लेजेंट शहर में नैनोसिंथॉन्स के नेशनल डेंड्रिमर एंड नैनो टेक्नोलॉजी सेंटर (National Dendrimer and Nanotechnology Center for Nanosynthons) में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत हैं. डॉ. मयंक की योग्यता की पहचान कोविड-19 महामारी के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका के सेना अनुसंधान प्रयोगशाला-रक्षा विभाग एवं अमेरिकी आप्रवासन सेवाओं ने की थी. अमेरिकी प्रशासन ने उन्हें जीवन-काल के लिए ओ-1 वीसा दिया था और नेशनल डेंड्रिमर एंड नैनोटेक्नोलॉजी सेंटर में एक रजिस्टर्ड मेडिसिन साइंसटिस्ट के तौर पर नियुक्त किया था.
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