मिर्जापुर: कालीन कारोबार बहुत कम होने से हाड़-तोड़ मेहनत के बाद भी मिर्जापुर के बुनकरों को उनकी मेहनत की मजदूरी नहीं मिल रही है. इसकी वजह से वे पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं. कालीन बुनकरों का कालीन से मोहभंग हो रहा है. रात-दिन काम करने के बाद भी गुजारा नहीं हो पा रहा है. दिन-भर काम करने पर 200 से ₹400 की ही कमाई हो पा रही है.
बुनकरों का कहना है कि -
- इतनी कम कमाई में उनके परिवार का खर्चा नहीं चल पा रहा है.
- बुनकरों पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है.
- यदि सरकार ने ध्यान नहीं दिया को हालात आने वाले समय में और बदतर हो जाएंगे.
- आने वाले समय में इस कारोबार को बंद करना भी पड़ सकता है.
कागजों पर सिमटीं सरकारी योजनाएं
- दुनियाभर में मशहूर मिर्जापुर की कालीन को देश-विदेश में निर्यात किया जाता था.
- लेकिन कालीन बनाने वाले बुनकरों की हालत आज भी बहुत दयनीय है.
- लोग पलायन को मजबूर हैं. कुछ बुनकर चले भी गये.
- मिर्जापुर के बसही में काम करने वाले छोटे तबके के कालीन बुनकरों के लिए सरकार ने कई योजनाएं चलाईं
- पर अफसोस वह सभी कागज पर ही सिमट कर रह गईं.
- कोई सरकार बुनकरों पर ध्यान नहीं दे रही है.
- कालीन का काम कर रहे बुनकरों का कहना है कि माल का निर्यात कम हो गया है.
- साथ ही कालीनों का दाम घट गया है. हम लोगों की मजदूरी भी कम हो गई है.
- इतनी महंगाई है कि जो पहले रेट मिलता था, आज उससे भी कम हो गया है.
- हम लोगों को अपने बच्चे की पढ़ाई और परिवार चलाना मुश्किल हो गया है.
- दिन पर दिन स्थिति खराब होती जा रही है. यहां से बहुत बुनकर पलायन कर रहे हैं.
- दिन-भर काम करते हैं. दो-चार सौ रुपये की कमाई हो जाती है. इतनी कमाई में कैसे खर्चा चलेगा? बच्चे कैसे पढ़ें, परिवार कैसे चलाएं?
बता दें कि मिर्जापुर का कालीन बहुत पुराना व्यवसाय है, यहां पर हजारों बुनकर काम किया करते थे लेकिन जनपद भदोही अलग होने से कालीन व्यवसाय भदोही में चला गया. इससे यहां पर बाजार उसके वजह से बहुत कम हो गया है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कालीनों की मांग कम होने के चलते मिर्जापुर कालीन निर्यात बीते कुछ वर्षों से बहुत कम हो गया है.