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पलायन को मजबूर हैं मिर्जापुर के कालीन बुनकर, बोले - नहीं हो पा रहा गुजारा

मिर्जापुर का कालीन बहुत पुराना व्यवसाय है, यहां पर हजारों बुनकर काम किया करते थे लेकिन भदोही अलग होने से कालीन व्यवसाय भदोही में चला गया. इससे यहां पर बाजार उसके वजह से बहुत कम हो गया है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कालीनों की मांग कम होने के चलते मिर्जापुर कालीन निर्यात बीते कुछ वर्षों से बहुत कम हो गया है.

कालीन बुनकर
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Published : Apr 19, 2019, 12:55 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST

मिर्जापुर: कालीन कारोबार बहुत कम होने से हाड़-तोड़ मेहनत के बाद भी मिर्जापुर के बुनकरों को उनकी मेहनत की मजदूरी नहीं मिल रही है. इसकी वजह से वे पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं. कालीन बुनकरों का कालीन से मोहभंग हो रहा है. रात-दिन काम करने के बाद भी गुजारा नहीं हो पा रहा है. दिन-भर काम करने पर 200 से ₹400 की ही कमाई हो पा रही है.

पलायन को मजबूर हैं मिर्जापुर के कालीन बुनकर

बुनकरों का कहना है कि -

  • इतनी कम कमाई में उनके परिवार का खर्चा नहीं चल पा रहा है.
  • बुनकरों पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है.
  • यदि सरकार ने ध्यान नहीं दिया को हालात आने वाले समय में और बदतर हो जाएंगे.
  • आने वाले समय में इस कारोबार को बंद करना भी पड़ सकता है.

कागजों पर सिमटीं सरकारी योजनाएं

  • दुनियाभर में मशहूर मिर्जापुर की कालीन को देश-विदेश में निर्यात किया जाता था.
  • लेकिन कालीन बनाने वाले बुनकरों की हालत आज भी बहुत दयनीय है.
  • लोग पलायन को मजबूर हैं. कुछ बुनकर चले भी गये.
  • मिर्जापुर के बसही में काम करने वाले छोटे तबके के कालीन बुनकरों के लिए सरकार ने कई योजनाएं चलाईं
  • पर अफसोस वह सभी कागज पर ही सिमट कर रह गईं.
  • कोई सरकार बुनकरों पर ध्यान नहीं दे रही है.
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    बुनकरों का कहना है कि माल का निर्यात कम हो गया है.
  • कालीन का काम कर रहे बुनकरों का कहना है कि माल का निर्यात कम हो गया है.
  • साथ ही कालीनों का दाम घट गया है. हम लोगों की मजदूरी भी कम हो गई है.
  • इतनी महंगाई है कि जो पहले रेट मिलता था, आज उससे भी कम हो गया है.
  • हम लोगों को अपने बच्चे की पढ़ाई और परिवार चलाना मुश्किल हो गया है.
  • दिन पर दिन स्थिति खराब होती जा रही है. यहां से बहुत बुनकर पलायन कर रहे हैं.
  • दिन-भर काम करते हैं. दो-चार सौ रुपये की कमाई हो जाती है. इतनी कमाई में कैसे खर्चा चलेगा? बच्चे कैसे पढ़ें, परिवार कैसे चलाएं?
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    पलायन को मजबूर हैं मिर्जापुर के कालीन बुनकर

बता दें कि मिर्जापुर का कालीन बहुत पुराना व्यवसाय है, यहां पर हजारों बुनकर काम किया करते थे लेकिन जनपद भदोही अलग होने से कालीन व्यवसाय भदोही में चला गया. इससे यहां पर बाजार उसके वजह से बहुत कम हो गया है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कालीनों की मांग कम होने के चलते मिर्जापुर कालीन निर्यात बीते कुछ वर्षों से बहुत कम हो गया है.

मिर्जापुर: कालीन कारोबार बहुत कम होने से हाड़-तोड़ मेहनत के बाद भी मिर्जापुर के बुनकरों को उनकी मेहनत की मजदूरी नहीं मिल रही है. इसकी वजह से वे पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं. कालीन बुनकरों का कालीन से मोहभंग हो रहा है. रात-दिन काम करने के बाद भी गुजारा नहीं हो पा रहा है. दिन-भर काम करने पर 200 से ₹400 की ही कमाई हो पा रही है.

पलायन को मजबूर हैं मिर्जापुर के कालीन बुनकर

बुनकरों का कहना है कि -

  • इतनी कम कमाई में उनके परिवार का खर्चा नहीं चल पा रहा है.
  • बुनकरों पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है.
  • यदि सरकार ने ध्यान नहीं दिया को हालात आने वाले समय में और बदतर हो जाएंगे.
  • आने वाले समय में इस कारोबार को बंद करना भी पड़ सकता है.

कागजों पर सिमटीं सरकारी योजनाएं

  • दुनियाभर में मशहूर मिर्जापुर की कालीन को देश-विदेश में निर्यात किया जाता था.
  • लेकिन कालीन बनाने वाले बुनकरों की हालत आज भी बहुत दयनीय है.
  • लोग पलायन को मजबूर हैं. कुछ बुनकर चले भी गये.
  • मिर्जापुर के बसही में काम करने वाले छोटे तबके के कालीन बुनकरों के लिए सरकार ने कई योजनाएं चलाईं
  • पर अफसोस वह सभी कागज पर ही सिमट कर रह गईं.
  • कोई सरकार बुनकरों पर ध्यान नहीं दे रही है.
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    बुनकरों का कहना है कि माल का निर्यात कम हो गया है.
  • कालीन का काम कर रहे बुनकरों का कहना है कि माल का निर्यात कम हो गया है.
  • साथ ही कालीनों का दाम घट गया है. हम लोगों की मजदूरी भी कम हो गई है.
  • इतनी महंगाई है कि जो पहले रेट मिलता था, आज उससे भी कम हो गया है.
  • हम लोगों को अपने बच्चे की पढ़ाई और परिवार चलाना मुश्किल हो गया है.
  • दिन पर दिन स्थिति खराब होती जा रही है. यहां से बहुत बुनकर पलायन कर रहे हैं.
  • दिन-भर काम करते हैं. दो-चार सौ रुपये की कमाई हो जाती है. इतनी कमाई में कैसे खर्चा चलेगा? बच्चे कैसे पढ़ें, परिवार कैसे चलाएं?
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    पलायन को मजबूर हैं मिर्जापुर के कालीन बुनकर

बता दें कि मिर्जापुर का कालीन बहुत पुराना व्यवसाय है, यहां पर हजारों बुनकर काम किया करते थे लेकिन जनपद भदोही अलग होने से कालीन व्यवसाय भदोही में चला गया. इससे यहां पर बाजार उसके वजह से बहुत कम हो गया है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कालीनों की मांग कम होने के चलते मिर्जापुर कालीन निर्यात बीते कुछ वर्षों से बहुत कम हो गया है.

Intro:मिर्जापुर में कालीन कारोबार बहुत कम होने से हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी बुनकरों को उनकी मेहनत की मजदूरी नहीं मिल रही है मजबूर हो रहे हैं पलायन को। कालीन बुनकरो का मोहभंग हो रहा है कालीन से । रात दिन काम करने के बाद भी नहीं हो पा रहा है गुजारा दिन भर काम करने पर 200 से ₹400 की होती है कमाई इतने में नहीं चल पा रहा है परिवार का खर्चा हम बुनकरों के लिए सरकार ध्यान नहीं दे रही है यदि सरकार ध्यान नहीं दी तो आने वाले समय में इस कारोबार पर और असर पड़ेगा।


Body:दुनियाभर में मशहूर मिर्जापुर की कालीन को देश-विदेश में निर्यात किया जाता था लेकिन कालीन बनाने वाले बुनकरों की हालत आज भी बहुत दैनीय है लोग पलायन को मजबूर हैं कुछ बुनकर कर भी गये मिर्जापुर के बसही में काम करने वाले छोटे तबके कालीन बुनकरों के लिए सरकार ने कई योजना चलाई पर अफसोस वह सभी कागज पर ही सिमट कर रह गई। काम कर रहे बुनकरों का कहना है कि माल का निर्यात कम हो गया है साथ ही कालीन ओं का दाम घट गया है हम लोग मजदूरी भी कम हो गई है इतनी महंगाई है कि जो पहले रेड मिलता था आज उससे भी कम हो गया है हम लोगों को अपने बच्चे की पढ़ाई और परिवार चलाना मुश्किल हो गया है दिन पर दिन स्थिति खराब होता चला जा रहा है यहां से बहुत बुनकर पलायन कर रहे हैं कोई सरकार बुनकरो को ध्यान नहीं दे रही है दिन भर काम करते हैं दो चार सौ रुपए की कमाई हो जाती है इतने कमाई में कैसे खर्चा चलेगा बच्चे कैसे पढ़ए परिवार कैसे चलाएं।वही बच्चा बुनकर कहते हैं कोई भी सरकार हो हम लोगो के ऊपर ध्यान नही देती है ।हम रिटायर हो जयाएँगे तो कोई पेंशन भी नही रहेगा अब ज्यादा दिन काम भी नही कर पाएंगे।

Bite- मठल्लू -बुनकर
Bite-बच्चा -बुनकर


Conclusion:हम आपको बता दें की मिर्जापुर का कालीन बहुत पुराना व्यवसाय है यहां पर हजारों बुनकर काम किया करते थे लेकिन जनपद भदोही अलग होने से कालीन व्यवसाय भदोही में चला गया जिससे यहां पर बाजार उसके वजह से बहुत कम हो गया है साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कालीनो की मांग कम होने के चलते मिर्जापुर कालीन निर्यात बीते कुछ वर्षों से बहुत कम हो गया है अब देखना होगा अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में मशहूर मिर्ज़ापुर की कालीन बनाने वाले बुनकरों को सरकार ध्यान देती है या कागजों पर ही रहेगा।बुनकरों के लिए यह चुनावी मुद्दा भी हो सकता।

जय प्रकाश सिंह
मिर्ज़ापुर
9453881630
Last Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST
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