मिर्जापुर: पहाड़ी इलाकों में पीने के पानी और सिंचाई की समस्या को देखते हुए वन विभाग ने जल सरंक्षण करने के लिए पहल की है. वन विभाग ने यहां तालाब बनवाए हैं. वन विभाग के लगातार दो सालों के प्रयासों का नतीजा रहा कि डार्क जोन में जहां 1000 फीट पर भी पानी नहीं मिलता था, वहां अब महज 400 फीट पर पानी पर्याप्त मात्रा में मिल रहा है. यही नहीं अब बोरिंग करा देने के बाद बिना मशीन चलाये ही पानी निकल रहा है. बीते 2 सालों से यहां पर पानी की कोई समस्या नहीं है. जल सरंक्षण के चलते अब आसपास के किसान भी इससे खुश हैं. वन विभाग अधिकारियों का कहना है कि यह सपने के सच होने जैसा है, जहां पानी नहीं था वहां बोरिंग सफल हो रही है. क्षेत्र के अन्य भागों में इस तरह तालाब खोदकर वर्षा जल संचयन करने की आवश्यकता है.
मड़िहान इलाका डार्क जोन घोषित
जिले का मड़िहान इलाका डार्क जोन घोषित है. यहां पर पानी एक हजार फीट नीचे मिलता है वह भी पर्याप्त मात्रा में नहीं रहता है. इस इलाके में पानी को लेकर हाय-तौबा मची रहती है. लोग कई किलोमीटर दूर से पानी लाते हैं. यही हाल राजापुर गांव में स्थित वन विभाग की झरी नर्सरी का है. केवल आम आदमी ही नहीं वन विभाग के कर्मचारी भी कई किलोमीटर चलकर पानी लाकर नर्सरी की सिंचाई करते थे. इसे देखते हुए इस जंगल में और पहाड़ी इलाके में बारिश का पानी रोकने के लिए वन विभाग ने छोटे-छोटे 6 तालाब बनवाये और एक चेक डैम का निर्माण कराया. इससे इस इलाके के तालाबों और चैकडैम में बारिश का पानी एकत्रित होने लगा. वन विभाग की इस पहल के बाद भूजल स्तर धीरे-धीरे ऊपर आने लगा. अब तालाब के आसपास थोड़ी दूरी पर बोरिंग कराने पर बिना मशीन से पानी निकल रहा है. यह सब देखकर आस-पास के लोग खुश हैं. अब पानी की उपलब्धता से सबमें नई उम्मीदें जग गई हैं.
क्या कहते हैं स्थानीय
स्थानीय लोगों का कहना है कि मड़िहान इलाके में पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र ज्यादा हैं. यहां खेती सिर्फ नहरों के सहारे है. वह भी टेल तक पानी नहीं पहुंच पाता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, हजारों हेक्टेयर जमीन प्रतिवर्ष असिंचित रह जाती है. पीने का पानी भी कई किलोमीटर दूर चल कर लाना पड़ता है. इस नर्सरी में भी पानी की बड़ी समस्या थी. अब जगह-जगह तालाब बना देने से नर्सरी के साथ-साथ इस इलाके में पर्याप्त मात्रा में पानी हो गया है. जल सरंक्षण से अब आसपास के किसान भी खुश हैं.
अब नहीं जाना पड़ता कई किलोमीटर दूर
वहीं वन विभाग अधिकारी का कहना है कि इस नर्सरी के लिए भी पानी की बड़ी समस्या थी. नर्सरी बचाने और पीने का पानी कई किलोमीटर दूर से लेकर आना पड़ता था. जब लगा कि यहां जल संरक्षण संभव हो सकता है. पहाड़ी इलाका होने के कारण यहां पर बारिश का पानी पर्याप्त मात्रा में बारिश के समय बह कर आता है, यदि उसका संरक्षण किया जा सके तो यहां पानी संरक्षित हो सकता है. इसी सोच के साथ जब यहां 6 छोटे-छोटे तालाब बनवाए गए और एक चेक डैम का निर्माण कराया गया तो उसका नतीजा सुखद रहा. अब यहां पानी नर्सरी को तो बचा ही रहा है, साथ ही आस-पास के किसानों के खेतों की सिंचाई भी हो जा रही है.