मिर्जापुर: विंध्याचल स्थित विश्व प्रसिद्ध मां विंध्यवासिनी शक्तिपीठ के लिए जाना जाता है. पितृपक्ष में पिंडदान कर पूर्वजों का तर्पण करने का भी एक बड़ा केंद्र विंध्य क्षेत्र है. मान्यता है कि भगवान राम ने खुद जानकी के साथ विंध्य क्षेत्र आकर गंगा के तट पर अपने पितरों का पिंडदान किया था. माना जाता है जो अपने पितरों का पिंडदान यहां पर करता है, वह सद्गति को प्राप्त होता है. आज भी यहां पर भगवान राम, माता जानकी, लक्ष्मण और हनुमान जी के चरणों के निशान हैं. भगवान ने यहां एक शिवलिंग की स्थापना की थी. वह आज भी विद्यमान है.
काशी प्रयाग के मध्य स्थित विंध्य क्षेत्र सिद्ध पीठ के साथ पितरों के मोक्ष की कामना स्थली भी बन गई है. ऐसी मान्यता है कि भगवान राम ने गुरु वशिष्ठ के आदेश पर अपने पिता राजा दशरथ को मृत्यु लोक से स्वर्ग प्राप्ति के लिए गया के फल्गु नदी पर पिंडदान के लिए अयोध्या से प्रस्थान किया. पहला पिंडदान सरयू, दूसरा पिंडदान प्रयाग के भरद्वाज आश्रम, तीसरा विंध्य धाम स्थित राम गया घाट, चौथा पिंडदान काशी के पिशाचमोचन पर करके गया पहुंचे थे. आज भी जहां पर भगवान राम माता जानकी लक्ष्मण और हनुमान जी के साथ पिंडदान किया था वहां पर अवशेष मिलते हैं. वहां उनके द्वारा एक छोटा सा शिवलिंग स्थापित किया गया है. इसके अलावा उनके विमान के पहिए और कई शिवलिंग और श्रीराम लक्ष्मण मां जानकी हनुमान जी के चरण का निशान भी है. साथ ही कई और निशान वहां पर हैं.
धार्मिक जानकार मिट्ठू मिश्रा का कहना है कि भगवान त्रेता युग में पितरों की तृप्ति, शांति और मुक्ति के लिए जब गया श्राद्ध के लिए जा रहे थे, उसी यात्रा में तीर्थराज प्रयाग में पिंडदान करने के बाद विंध्य धरा पर विमान उतरा है. पर्वत गंगा का संगम जहां पर है, वहां पर श्रीराम ने पितरों का पिंडदान किया है. मान्यता है कि जो भी अपने पितरों का पिंडदान करता है वह सद्गति को प्राप्त होता है. इसलिए राम भगवान भी यहां पर पिंडदान किए हैं.