मेरठः अंतराष्ट्रीय महिला दिवस हर हर साल 8 मार्च को धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन उन महिलाओं की प्रशंसा की जाती है जो व्यक्तिगत और पेशेवर लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रतिदिन कड़ी मेहनत करती हैं. इस बार भी विश्व महिला दिवस को मनाने की तैयारियां जोर-शोर से चल रही है. महिलाओं और बेटियों में भी खासा उत्साह देखा जा रहा है. ETV भारत आज आपको ऐसी ही शख्सियत से रूबरू कराएगा, जिसने कुश्ती के नेशनल-इंटरनेशनल तमाम अवार्ड अपने नाम किये हैं.
बेटियों के लिए प्रेरणा स्रोत अलका
अन्तराष्ट्रीय महिला रेसलर अलका तोमर न सिर्फ कुश्ती की दुनिया का नामी चेहरा बनी हुई हैं, बल्कि हजारों बेटियों की प्रेरणा स्रोत बन चुकी हैं. आज अलका कुश्ती भले न खेल रही हों लेकिन बेटियों को कुश्ती के लिए जागरूक जरूर कर रही हैं. महिला होते हुए अलका ने कुश्ती में तिरंगे का इतना मान बढ़ाया कि भारत सरकार ने इनको अर्जुन अवार्ड से नवाजा, जिसके चलते आज अलका को अर्जुन अवार्डी अलका तोमर के नाम से पुकारा जाता है.
कौन हैं अर्जुन अवार्डी अलका तोमर
मेरठ के सिसौली गांव के किसान नैन सिंह तोमर के परिवार में पैदा हुई अलका तोमर ने उस वक्त कुश्ती की दुनिया मे कदम रखा था, जब गांव देहात में बेटियों को स्कूल-कॉलेज के अलावा कहीं और जाने की इजाजत नहीं थी. अलका सन् 1998 में गांव से निकल कर चौधरी चरण सिंह विश्व विद्यालय के कुश्ती कोच जबर सिंह सोम के पास पहुंची थी, जहां अलका ने कोच जबर सिंह से न सिर्फ कुश्ती की बारीकियां सीखी बल्कि प्रतिद्वन्दी को पटखनी देने के लिए खूब दांव पेंच सीखे. इस दौरान रिस्तेदारों और गांव के लोगों ने उसका खूब विरोध किया लेकिन अलका ने सबको अनसुना कर अपना लक्ष्य बना लिया था.
लोगों ने दिए ताने, पिता ने दिया सहयोग
अलका ने कुश्ती में कैरियर बनाने के लिए खूब संघर्ष किया. अलका तोमर ने बताया कि 1998 में मेरठ में नेशनल कुश्ती चैम्पियनशिप का कैम्प लग गया. उनके पापा उस दिन अलका को स्कूल से सीधे कैम्प में लेकर आये थे, जहां कोच डॉ. जबर सिंह सोम ने उनका चयन कर लिया. इसके बाद उन्होंने कुश्ती सीखने के लिए गांव से मेरठ आना शुरू कर दिया. लड़की का कुश्ती सीखने पर गांव के लोग न सिर्फ अलकाको गलत नजरिये से देखते बल्कि उनके पापा नैन सिंह को भी बुरा भला कहते थे. ग्रामीणों का कहना था कि 'अलका एक लड़की है जबकि कुश्ती लड़कों का खेल है, लड़की को घर के काम काज सिखाओ और हाथ पीले कर दो' लेकिन अलका के पिता ने किसी का परवाह किये बिना उसका पूरा साथ दिया.
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जब दादी और मां ने भी कुश्ती लड़ने से किया इंकार
अलका बताती हैं कि उस वक्त यूपी में लड़कियां कुश्ती खिलाड़ी नहीं थी, जिसके चलते ग्रामीणों के साथ उनकी दादी और मां ने भी कुश्ती सीखने से मना कर दिया था. मोहल्ले-पड़ोस के लोग तो यह तक कहते थे कि लड़कियां छोटे-छोटे कपड़े पहनकर कुश्ती नहीं कर सकतीं, लेकिन उन्होंने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया और अपना पूरा ध्यान कुश्ती सीखने में लगा दिया. कुश्ती प्रतियोगिता शुरू हुई तो अलका ने मेडल की झड़ी लगा दी. एक के बाद एक मेडल जीतने शुरू कर दिए, जिसके बाद वही ग्रामीण अलका की तारीफ करने लगे.
कुश्ती में नए रिकॉर्ड बनाकर बढ़ाया तिरंगे का मान
समय के साथ अलका तोमर ने जिला स्तर से राज्य स्तर और राज्य स्तर से नेशनल चैंपियनशिप में एक के बाद एक मेडल जीतती चली गईं. राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय चैंपियनशिप में लगातार मेडल जीतकर अलका ने माता-पिता के साथ देश का नाम रौशन किया. साल 2006 में चीन में विश्व चैंपियनशिप हुई थी, जहां अलका ने वो कर दिखाया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं की थी. विश्व चैंपियनशिप में अलका ने न सिर्फ 2006 में पहला अंतर्राष्ट्रीय मेडल जीता बल्कि पहली महिला पहलवान बन गईं. हालांकि यह रिकॉर्ड भारत की ओर से 1961 में उदय सिंह और 1967 में विशम्बर सिंह ने बनाया था.
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ओलंपिक छोड़ सभी मेडल अलका के नाम
अंतर्राष्ट्रीय रेसलर अलका तोमर ने ETV भारत से बताया कि इसके बाद महिला कुश्ती की दुनिया में ऐसा धमाल मचाया कि एक के बाद एक सभी रिकॉर्ड अपने नाम करती चली गईं. नेशनल गेम्स, नेशनल चैंपियनशिप, कॉमन वेल्थ गेम्स, एशियन विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में अलका तोमर ने इतने मेडल झटके, जिनकी उन्हें खुद भी उम्मीद नहीं थी. अलका के मुताबिक ओलंपिक कुश्ती चैंपियनशिप को छोड़कर दुनिया के सभी प्रतियोगिताओं के अवार्ड उनके नाम हैं, जिसके चलते भारत सरकार ने अलका को अर्जुन अवार्ड से नवाजा है.
अर्जुन अवार्ड से सम्मानित
कुश्ती के अखाड़े में प्रतिद्वंदियों को पटखनी देने वाली अलका तोमर जिला स्तर से अंर्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की हैं. खास बात ये है कि अलका तोमर लगातार मेडल जीत कर देश की पहली महिला पहलवान बन गई, जिसके चलते 2010 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल ने देश के सर्वोत्तम खिलाड़ी पुसरस्कार अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया.
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महिलाओं को कर रहीं जागरूक
ETV भारत से बातचीत में अलका तोमर ने महिलाओं को जागरूक करते हुए कहा कि लड़कियों और महिलाओं को सेल्फ डिपेंड बनना चाहिए. हरियाणा-पंजाब के बाद अब यूपी से भी महिला कुश्ती में बड़ी संख्या में महिला पहलवान आ रही हैं, इसके लिए आपको कड़ी मेहनत के साथ टारगेट को छूना होगा. अगर लड़कियां पढ़-लिख सकती हैं तो वे खेल-कूद में भी आगे बढ़ सकती हैं, जो लड़कियां परिस्थितियों के आड़े आने पर कैरियर छोड़ देती हैं, उनको ऐसा नहीं करना चाहिए. जब लक्ष्य निर्धारित कर जी जान से मेहनत करेंगी तो कामयाबी जरूर मिलेगी.
अलका करेंगी लड़कियों सपना पूरा
अर्जुन अवार्डी अलका तोमर बताती हैं कि उन्हें ओलंपिक में कुश्ती चैंपियनशिप में खेलने का मौका नहीं मिला है, जिसके चलते ओलंपिक में मेडल जीतने से वंचित रह गईं. उन्होंने कुश्ती भले छोड़ दी हो अब वे लड़कियों के लिए कुश्ती अकादमी खोल कर न सिर्फ उन्हें कुश्ती के दांव पेंच सिखाएंगी, बल्कि ओलंपिक में मेडल जीतने के सपने को पूरा करेंगी.