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मलियाना नरसंहार के 35 सालः कब मिलेगा इंसाफ, अभी तो मिल रही सिर्फ तारीख पे तारीख - 35 Years of Maliana Massacre

मेरठ जिले के मलियाना मई 1987 के दंगों की आग में ऐसा जला कि उसकी तपिश अभी तक दिखाई पड़ती है. 23 मई 1987 में मलियाना गांव में हुए नरसंहार में आंकड़ों के मुताबिक 72 मुस्लिमों की हत्या की गई थी. आरोप है कि उस वक्त दंगाइयों के साथ पीएसी के कर्मी इस हत्याकांड में संलिप्त थे. ईटीवी भारत ने इस बारे में उन लोगों से बात की, जिन्होंने अपने परिजनों को दंगे में खोया. पीड़ितों को घटना के 35 साल बाद भी न्याय का इंताजार है.

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मलियाना नरसंहार
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Published : May 16, 2022, 10:37 PM IST

मेरठः जिले का मलियाना मई 1987 के दंगों की आग में ऐसा जला कि उसकी तपिश अभी तक भी दिखाई पड़ती है. ये वो दिन था जिस दिन मलियाना गांव में 72 मुस्लिमों की हत्या कर दी गई थी. तब से अभी तक 35 साल गुजर चुके, लेकिन अपनों को खोने का गम यहां रहे लोगों की आंखों में साफ झलकता है. इन पीड़ित परिवारों को अपनों से बिछड़ने का दंश तो झेलना पड़ ही रहा है, उससे भी अधिक कष्ट ये है कि जाने इस बीच कितनी ही सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन अभी तक भी उस घटना में कानूनी कार्रवाई आगे नहीं बढ़ सकी. ये परिवार 35 वर्षों से इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं. दे

बता दें कि 23 मई 1987 में मेरठ जिले के मलियाना गांव में हुए नरसंहार में आंकड़ों के मुताबिक 72 मुस्लिमों की हत्या की गई थी. आरोप है कि उस वक्त दंगाइयों के साथ पीएसी के कर्मी इस हत्याकांड में संलिप्त थे. ईटीवी भारत ने इस बारे में उन लोगों से बात की, जिन्होंने अपने परिजनों को दंगे में खोया. गौरतलब है कि साढ़े तीन दशक होने के बावजूद भी दंगे के दौरान हुए हत्याकांड मामले में कानूनी प्रक्रिया अभी भी पूर्ण नहीं हो पाई है.

मलियाना नरसंहार


अपनों को खोने का दंश झेल रहे पीड़ित परिवारों का कहना है कि उन्हें उम्मीद थी कि इंसाफ मिलेगा, लेकिन 35 साल बाद भी न्याय की उम्मीद ही सिर्फ लोग लगाए हैं. कुछ लोगों का तो ये भी कहना है कि वे तो अब टूट चुके हैं. यामीन बताते है कि उन्होंने इस दंगे में अपने पिता को गंवाया. वो कहते हैं कि खुद परिवार के बाकी सदस्यों के साथ एक हरिजन परिवार के घर में शरण ली, तब जाकर किसी तरह जान बचा सके थे. उनका कहना है कि उस वक्त सरकार ने जल्द न्याय दिलाने की बात कही थी, मुआवजा भी उस वक्त दिया गया, लेकिन अभी तक वे दर-दर भटक ही रहे हैं लेकिन न्याय नहीं मिला.

हैरानी की बात तो यह है कि इस मामले में जो मुकदमे की कॉपी थी वो तक गायब है. पिछले 35 वर्षों से 72 लोगों की मौत के मामले को लेकर न्यायालय में भागदौड़ कर रहे सीनियर एडवोकेट अलाउद्दीन सिद्दीकी का कहना है कि अब तो लोग भी टूट चुके हैं. वे कहते हैं कि कानून पर भरोसा करते-करते लोग अब टूट गए हैं. वे कहते हैं कि इस मामले में 800 से अधिक तारीख अब तक कि चुकि हैं. पीड़ित परिवार आखिर कब तक अपना काम छोड़कर भागदौड़ करेगा.

पढ़ेंः ज्ञानवापी में मिला शिवलिंग, कोर्ट ने उस स्थान को किया सील, CRPF ने लिया सुरक्षा घेरे में

प्रत्यक्षदर्शी रहे मोहम्मद सलीम कहते हैं कि उनकी आंखों के सामने वाकिया हुआ था. वे बताते हैं कि उन्होंने न्याय की आश लगाते हुए वर्षों से भागदौड़ कर रहे हैं. सरकार पर भी वे असहयोग का आरोप लगाते हैं. सलीम कहते हैं कि एक मुखबिर ने आकर 1987 में ये कहा था कि पूरे मलियाना हुई घटना की चेकिंग पुलिस करेगी. इसके बाद भारी संख्या में पुलिस और पीएसी वहां पहुंची थी. उनका आरोप है कि उस वक्त एक शराब का ठेका मलियाना में था. पहले वो ठेका लूटा गया उसके बाद नशे में पीएसी के जवानों ने कुछ लोगों के साथ मिलकर नरसंहार को अंजाम दिया था.

मलियाना कांड मेरठ में ही नहीं पूरे देश में उस वक्त सुर्खियों में रहा था. इस मामले में पहले हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया गया था. सीनियर एडवोकेट का कहना है कि अभी तो प्रोसिडिंग ही पूरी नहीं हुई है. अब इस मामले में सीनियर रिपोर्टर कुर्बान अली ने हाईकोर्ट में पिटीशन फाइल की है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर रीट में मांग की जा चुकी है कि तमाम हत्याओं में प्रांतीय सशस्त्र पुलिस (पीएसी) की भूमिका की जांच एसआईटी करे, साथ ही मुआवजे की मांग की गई थी. सीनियर एडवोकेट अलाउद्दीन सिद्दीकी ने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट से भी यहां एक लेटर आ चुका है. वे कहते हैं कि इस मामले में तेजी दिखाई जाए तो न्याय की उम्मीद की जा सकती है.

पढ़ेंः ज्ञानवापी में मिला शिवलिंग, कोर्ट ने उस स्थान को किया सील, CRPF ने लिया सुरक्षा घेरे में

आपको बता दें कि उस वक्त राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे. जब ये हिंसा हुई तो उन्होंने उन तमाम हत्याओं की सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. इतना ही नहीं सीबीआई ने 28 जून 1987 को अपनी जांच शुरू की और पूरी जांच के बाद अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी थी. 35 साल में 800 तारीखें पड़ चुकी हैं, लेकिन अभियोजन पक्ष ने 35 गवाहों में से सिर्फ तीन से मेरठ की अदालत ने जिरह की है. अभियोजन पक्ष की ढिलाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस मामले की एफआईआर अचानक गायब हो गई थी.

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मेरठः जिले का मलियाना मई 1987 के दंगों की आग में ऐसा जला कि उसकी तपिश अभी तक भी दिखाई पड़ती है. ये वो दिन था जिस दिन मलियाना गांव में 72 मुस्लिमों की हत्या कर दी गई थी. तब से अभी तक 35 साल गुजर चुके, लेकिन अपनों को खोने का गम यहां रहे लोगों की आंखों में साफ झलकता है. इन पीड़ित परिवारों को अपनों से बिछड़ने का दंश तो झेलना पड़ ही रहा है, उससे भी अधिक कष्ट ये है कि जाने इस बीच कितनी ही सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन अभी तक भी उस घटना में कानूनी कार्रवाई आगे नहीं बढ़ सकी. ये परिवार 35 वर्षों से इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं. दे

बता दें कि 23 मई 1987 में मेरठ जिले के मलियाना गांव में हुए नरसंहार में आंकड़ों के मुताबिक 72 मुस्लिमों की हत्या की गई थी. आरोप है कि उस वक्त दंगाइयों के साथ पीएसी के कर्मी इस हत्याकांड में संलिप्त थे. ईटीवी भारत ने इस बारे में उन लोगों से बात की, जिन्होंने अपने परिजनों को दंगे में खोया. गौरतलब है कि साढ़े तीन दशक होने के बावजूद भी दंगे के दौरान हुए हत्याकांड मामले में कानूनी प्रक्रिया अभी भी पूर्ण नहीं हो पाई है.

मलियाना नरसंहार


अपनों को खोने का दंश झेल रहे पीड़ित परिवारों का कहना है कि उन्हें उम्मीद थी कि इंसाफ मिलेगा, लेकिन 35 साल बाद भी न्याय की उम्मीद ही सिर्फ लोग लगाए हैं. कुछ लोगों का तो ये भी कहना है कि वे तो अब टूट चुके हैं. यामीन बताते है कि उन्होंने इस दंगे में अपने पिता को गंवाया. वो कहते हैं कि खुद परिवार के बाकी सदस्यों के साथ एक हरिजन परिवार के घर में शरण ली, तब जाकर किसी तरह जान बचा सके थे. उनका कहना है कि उस वक्त सरकार ने जल्द न्याय दिलाने की बात कही थी, मुआवजा भी उस वक्त दिया गया, लेकिन अभी तक वे दर-दर भटक ही रहे हैं लेकिन न्याय नहीं मिला.

हैरानी की बात तो यह है कि इस मामले में जो मुकदमे की कॉपी थी वो तक गायब है. पिछले 35 वर्षों से 72 लोगों की मौत के मामले को लेकर न्यायालय में भागदौड़ कर रहे सीनियर एडवोकेट अलाउद्दीन सिद्दीकी का कहना है कि अब तो लोग भी टूट चुके हैं. वे कहते हैं कि कानून पर भरोसा करते-करते लोग अब टूट गए हैं. वे कहते हैं कि इस मामले में 800 से अधिक तारीख अब तक कि चुकि हैं. पीड़ित परिवार आखिर कब तक अपना काम छोड़कर भागदौड़ करेगा.

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प्रत्यक्षदर्शी रहे मोहम्मद सलीम कहते हैं कि उनकी आंखों के सामने वाकिया हुआ था. वे बताते हैं कि उन्होंने न्याय की आश लगाते हुए वर्षों से भागदौड़ कर रहे हैं. सरकार पर भी वे असहयोग का आरोप लगाते हैं. सलीम कहते हैं कि एक मुखबिर ने आकर 1987 में ये कहा था कि पूरे मलियाना हुई घटना की चेकिंग पुलिस करेगी. इसके बाद भारी संख्या में पुलिस और पीएसी वहां पहुंची थी. उनका आरोप है कि उस वक्त एक शराब का ठेका मलियाना में था. पहले वो ठेका लूटा गया उसके बाद नशे में पीएसी के जवानों ने कुछ लोगों के साथ मिलकर नरसंहार को अंजाम दिया था.

मलियाना कांड मेरठ में ही नहीं पूरे देश में उस वक्त सुर्खियों में रहा था. इस मामले में पहले हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया गया था. सीनियर एडवोकेट का कहना है कि अभी तो प्रोसिडिंग ही पूरी नहीं हुई है. अब इस मामले में सीनियर रिपोर्टर कुर्बान अली ने हाईकोर्ट में पिटीशन फाइल की है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर रीट में मांग की जा चुकी है कि तमाम हत्याओं में प्रांतीय सशस्त्र पुलिस (पीएसी) की भूमिका की जांच एसआईटी करे, साथ ही मुआवजे की मांग की गई थी. सीनियर एडवोकेट अलाउद्दीन सिद्दीकी ने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट से भी यहां एक लेटर आ चुका है. वे कहते हैं कि इस मामले में तेजी दिखाई जाए तो न्याय की उम्मीद की जा सकती है.

पढ़ेंः ज्ञानवापी में मिला शिवलिंग, कोर्ट ने उस स्थान को किया सील, CRPF ने लिया सुरक्षा घेरे में

आपको बता दें कि उस वक्त राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे. जब ये हिंसा हुई तो उन्होंने उन तमाम हत्याओं की सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. इतना ही नहीं सीबीआई ने 28 जून 1987 को अपनी जांच शुरू की और पूरी जांच के बाद अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी थी. 35 साल में 800 तारीखें पड़ चुकी हैं, लेकिन अभियोजन पक्ष ने 35 गवाहों में से सिर्फ तीन से मेरठ की अदालत ने जिरह की है. अभियोजन पक्ष की ढिलाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस मामले की एफआईआर अचानक गायब हो गई थी.

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