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मेरठ के इस आश्रम में तैयार हो रहे 'भविष्य के अर्जुन'

उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में गंगनहर के पास स्थित गुरुकुल प्रभात आश्रम में छात्रों को धनुर्विद्या का ज्ञान सिखाया जाता है. इस आश्रम के छात्र राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रॉन्ज से लेकर गोल्ड तक कई मेडल जीत चुके हैं.

भविष्य के अर्जुन
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Published : Sep 8, 2019, 12:10 PM IST

मेरठ: जिले के एक छोटे से गांव टिकरी के जंगलों में भविष्य के अर्जुन तैयार किए जा रहे हैं. गंगनहर के पास स्थित गुरुकुल प्रभात आश्रम में शिक्षा के साथ-साथ छात्रों को धनुर्विद्या भी सिखाई जा रही है. यहां के छात्र धनुर्विद्या में आश्रम का नाम देश और विदेशों में रोशन कर रहे हैं. बता दें कि इस आश्रम से धनुर्विद्या सीख चुके दो धनुर्धर ओलंपिक तक खेल चुके हैं. इसके अलावा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में भी यहां के धनुर्धरों ने मेडल जीतकर आश्रम का नाम रोशन किया है.

गुरूकुल प्रभात आश्रम के छात्र सीख रहे धनुर्विद्या.

1993 में लकड़ी के धनुष से शुरू की थी प्रैक्टिस
टिकरी गांव स्थित गुरुकुल प्रभात आश्रम में धनुर्विद्या का अभ्यास साल 1993 में शुरू किया गया. सन् 1992 में बार्सिलोना में हुए ओलंपिक में भारत के किसी भी खिलाड़ी ने पदक नहीं हासिल किया, तब आश्रम के संत शिरोमणि स्वामी विवेकानंद सरस्वती ने छात्रों को धनुर्विद्या में निपुण करने का निर्णय लिया. इसके बाद उन्होंने लकड़ी का एक धनुष मंगाकर प्रभात आश्रम में पढ़ रहे छात्रों को तीरंदाजी का प्रशिक्षण देना शुरू किया था. अब आश्रम में खिलाड़ी विश्व स्तरीय प्रतियोगिता के लिए प्रैक्टिस करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक वाला धनुष प्रयोग करते हैं. हालांकि आज भी उनकी शुरुआती प्रैक्टिस लकड़ी के धनुष से ही होती है.

100 से अधिक स्वर्ण पदक जीत चुके हैं यहां के खिलाड़ी
तीरंदाजी की विभिन्न प्रतियोगिताओं में यहां के खिलाड़ी 100 से अधिक स्वर्ण पदक जीत चुके हैं. रजत और कांस्य पदक संख्या इससे कहीं अधिक है. खिलाड़ियों के कोच सचिन के मुताबिक यह व्यक्तिगत और दलीय प्रतियोगिताओं में जीते गए हैं. सबसे पहले पटियाला में हुए प्रतियोगिता में आश्रम के धनुर्धर में स्वर्ण पदक प्राप्त किए थे. वर्ष 1997 में राष्ट्रीय खेलों में व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से गोल्ड मेडल हासिल कर आश्रम का नाम रोशन किया.

आश्रम से प्रशिक्षित तीरंदाज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के रहे हैं. इनमें तीरंदाज सत्यदेव ने वर्ष 2004 में ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया, जबकि दूसरे ओलंपियन वेद कुमार हैं. इसके अलावा कई अन्य खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचे. हाल ही में खिलाड़ी सचिन ने चीन में हुई प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता.

सुबह शाम की जाती है प्रैक्टिस
आश्रम में सुबह और शाम के समय प्रैक्टिस की जाती है. यहां खिलाड़ी रोजाना करीब 7 घंटे प्रैक्टिस करते हैं. सुबह 8 बजे और शाम को 3 बजे से प्रैक्टिस की जाती है. वेद कुमार और सत्यदेव अभी भी आश्रम में आकर तीरंदाजी को टिप्स देते रहते हैं.

शांत माहौल से होता है उर्जा का संचार
गुरुकुल प्रभात में प्रैक्टिस कर रहे छात्र आशीष ने बताया कि आश्रम का शांत माहौल यहां प्रैक्टिस करने में विशेष बल देता है. गुरुजी उन्हें एकाग्रता के साथ लक्ष्य पर निशाना साधने की शिक्षा देते हैं. वहीं कोच सचिन का कहना है कि यहां प्रैक्टिस कर रहे छात्र देश और विदेशों में अपनी प्रतिभा से आश्रम और अपना नाम रोशन कर रहे हैं. इस समय यहां आने वाली प्रतियोगिता में विजय हासिल करने के लिए खिलाड़ी कड़ी मेहनत के साथ प्रैक्टिस कर रहे हैं.

मेरठ: जिले के एक छोटे से गांव टिकरी के जंगलों में भविष्य के अर्जुन तैयार किए जा रहे हैं. गंगनहर के पास स्थित गुरुकुल प्रभात आश्रम में शिक्षा के साथ-साथ छात्रों को धनुर्विद्या भी सिखाई जा रही है. यहां के छात्र धनुर्विद्या में आश्रम का नाम देश और विदेशों में रोशन कर रहे हैं. बता दें कि इस आश्रम से धनुर्विद्या सीख चुके दो धनुर्धर ओलंपिक तक खेल चुके हैं. इसके अलावा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में भी यहां के धनुर्धरों ने मेडल जीतकर आश्रम का नाम रोशन किया है.

गुरूकुल प्रभात आश्रम के छात्र सीख रहे धनुर्विद्या.

1993 में लकड़ी के धनुष से शुरू की थी प्रैक्टिस
टिकरी गांव स्थित गुरुकुल प्रभात आश्रम में धनुर्विद्या का अभ्यास साल 1993 में शुरू किया गया. सन् 1992 में बार्सिलोना में हुए ओलंपिक में भारत के किसी भी खिलाड़ी ने पदक नहीं हासिल किया, तब आश्रम के संत शिरोमणि स्वामी विवेकानंद सरस्वती ने छात्रों को धनुर्विद्या में निपुण करने का निर्णय लिया. इसके बाद उन्होंने लकड़ी का एक धनुष मंगाकर प्रभात आश्रम में पढ़ रहे छात्रों को तीरंदाजी का प्रशिक्षण देना शुरू किया था. अब आश्रम में खिलाड़ी विश्व स्तरीय प्रतियोगिता के लिए प्रैक्टिस करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक वाला धनुष प्रयोग करते हैं. हालांकि आज भी उनकी शुरुआती प्रैक्टिस लकड़ी के धनुष से ही होती है.

100 से अधिक स्वर्ण पदक जीत चुके हैं यहां के खिलाड़ी
तीरंदाजी की विभिन्न प्रतियोगिताओं में यहां के खिलाड़ी 100 से अधिक स्वर्ण पदक जीत चुके हैं. रजत और कांस्य पदक संख्या इससे कहीं अधिक है. खिलाड़ियों के कोच सचिन के मुताबिक यह व्यक्तिगत और दलीय प्रतियोगिताओं में जीते गए हैं. सबसे पहले पटियाला में हुए प्रतियोगिता में आश्रम के धनुर्धर में स्वर्ण पदक प्राप्त किए थे. वर्ष 1997 में राष्ट्रीय खेलों में व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से गोल्ड मेडल हासिल कर आश्रम का नाम रोशन किया.

आश्रम से प्रशिक्षित तीरंदाज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के रहे हैं. इनमें तीरंदाज सत्यदेव ने वर्ष 2004 में ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया, जबकि दूसरे ओलंपियन वेद कुमार हैं. इसके अलावा कई अन्य खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचे. हाल ही में खिलाड़ी सचिन ने चीन में हुई प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता.

सुबह शाम की जाती है प्रैक्टिस
आश्रम में सुबह और शाम के समय प्रैक्टिस की जाती है. यहां खिलाड़ी रोजाना करीब 7 घंटे प्रैक्टिस करते हैं. सुबह 8 बजे और शाम को 3 बजे से प्रैक्टिस की जाती है. वेद कुमार और सत्यदेव अभी भी आश्रम में आकर तीरंदाजी को टिप्स देते रहते हैं.

शांत माहौल से होता है उर्जा का संचार
गुरुकुल प्रभात में प्रैक्टिस कर रहे छात्र आशीष ने बताया कि आश्रम का शांत माहौल यहां प्रैक्टिस करने में विशेष बल देता है. गुरुजी उन्हें एकाग्रता के साथ लक्ष्य पर निशाना साधने की शिक्षा देते हैं. वहीं कोच सचिन का कहना है कि यहां प्रैक्टिस कर रहे छात्र देश और विदेशों में अपनी प्रतिभा से आश्रम और अपना नाम रोशन कर रहे हैं. इस समय यहां आने वाली प्रतियोगिता में विजय हासिल करने के लिए खिलाड़ी कड़ी मेहनत के साथ प्रैक्टिस कर रहे हैं.

Intro:स्पेशल: मेरठ-इस आश्रम में तैयार हो रहे भविष्य के अर्जुन
मेरठ। मेरठ जिले के प्रभात आश्रम में भविष्य के अर्जुन तैयार किए जा रहे हैं। मेरठ जिले के एक छोटे से गांव टिकरी के जंगलों में गंगनहर के पास स्थित गुरुकुल प्रभात आश्रम में शिक्षा के साथ-साथ छात्रों को धनुर्विद्या भी सिखाई जा रही है। यहां के छात्र धनुर्विद्या में आश्रम का नाम देश और विदेशों में रोशन कर रहे हैं। इस आश्रम से धनुर्विद्या सीख चुके दो धनुर्धर ओलंपिक तक खेल चुके हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में धनुर्धर मेडल लाकर आश्रम का नाम रोशन कर चुके हैं।




Body:1993 में लकड़ी के धनुष से शुरू की थी प्रैक्टिस
टिकरी गांव स्थित गुरुकुल प्रभात आश्रम में धनुर्विद्या का अभ्यास वर्ष 1993 में शुरू किया गया। वर्ष 1992 में बार्सिलोना में हुए ओलंपिक के दौरान जब भारत का एक भी खिलाड़ी पदक नहीं लाया तब आश्रम के संत शिरोमणि स्वामी विवेकानंद सरस्वती ने अपने आश्रम में धनुर्विद्या में छात्रों को निपुण करने का निर्णय लिया, तब उन्होंने लकड़ी का एक धनुष मंगाकर प्रभात आश्रम में पढ़ रहे छात्रों को तीरंदाजी का प्रशिक्षण देना शुरू किया था। अब आश्रम में खिलाड़ी विश्व स्तरीय प्रतियोगिता के लिए प्रैक्टिस करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानक वाला धनुष प्रयोग करते हैं। हालांकि आज भी उनकी शुरुआती प्रैक्टिस लकड़ी के धनुष से ही होती है।

100 से अधिक स्वर्ण पदक जीत चुके हैं यहां के खिलाड़ी
तीरंदाजी की विभिन्न प्रतियोगिताओं में यहां के खिलाड़ी 100 से अधिक स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। रजत और कांस्य पदक संख्या इससे कहीं अधिक है। कोच सचिन के मुताबिक यह व्यक्तिगत और दलीय प्रतियोगिताओं में जीते गए हैं। सबसे पहले पटियाला में हुए प्रतियोगिता में आश्रम के धनुर्धर में स्वर्ण पदक प्राप्त किए थे। वर्ष 1997 में राष्ट्रीय खेलों में व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से गोल्ड मेडल हासिल कर आश्रम का नाम रोशन किया।
आश्रम से प्रशिक्षित तीरंदाज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के रहे हैं। इनमें तीरंदाज सत्यदेव ने वर्ष 2004 में ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया, दूसरे ओलंपियन वेद कुमार हैं। इसके अलावा कई अन्य खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचे। हाल ही में खिलाड़ी सचिन ने चीन में हुई प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता।

सुबह शाम की जाती है प्रैक्टिस
आश्रम में सुबह और शाम के समय प्रैक्टिस की जाती है। यहां खिलाड़ी रोजाना करीब 7 घंटे प्रैक्टिस करते हैं। सुबह 8:00 बजे और शाम को 3:00 बजे से प्रैक्टिस की जाती है। वेद कुमार और सत्यदेव अभी भी आश्रम में आकर तीरंदाजी को टिप्स देते रहते हैं।




Conclusion:शांत माहौल देता है उर्जा
गुरुकुल प्रभात में प्रैक्टिस कर रहे छात्र आशीष ने बताया कि आश्रम का शांत माहौल यहां प्रैक्टिस करने में विशेष बल देता है। गुरुजी उन्हें एकाग्रता के साथ लक्ष्य पर निशाना साधने की शिक्षा देते हैं। प्रैक्टिस करें खिलाड़ी स्वामी जी के साथ खोज ध्यान योग भी करते हैं। कोच सचिन का कहना है कि यहां प्रैक्टिस कर रहे छात्र देश और विदेशों में अपनी प्रतिभा से आश्रम और अपना नाम रोशन कर रहे हैं। इस समय यहां आने वाली प्रतियोगिता में विजय हासिल करने के लिए खिलाड़ी कड़ी मेहनत के साथ प्रैक्टिस कर रहे हैं।

बाइट- सचिन, कोच

बाइट- चमन, खिलाड़ी

अजय चौहान
9897799794
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