मेरठ: मोदी सरकार की तरफ से इस बार हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है. इसे सफल बनाने के लिए सरकारी मशीनरी भी पूरी तरह प्रयासरत है. सरकार की तरफ से यह कोशिश पहली दफा हो सकती है. लेकिन मेरठ के एक परिवार ने ऐसी ही मुहिम को लेकर पूरी उम्र गुजार दी है. यानी यह परिवार हमेशा से देश की आन, बान और शान हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को बनाता चला आ रहा है. इसके अलावा इस परिवार ने अपने जीवनकाल में अन्य कोई कार्य नहीं किया है. इतना ही नहीं लालकिले पर जब पहली बार तिरंगा फहराया गया था, तो वो भी इसी परिवार के लोगों ने रातों-रात तैयार किया था.
मेरठ के सुभाष नगर में यह परिवार है, जो देश की आजादी से लेकर अब तक लगातार तिरंगा बनाने का काम कर रहा है. पहले इनके पूर्वज इस काम को करते थे. अब रमेश उस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. रमेश चंद बताते हैं कि उन्हें यह काम अच्छा लगता है. इसीलिए वो देशवासियों के लिए तिरंगा झंडा बनाते हैं. रमेश के पास जब की ईटीवी भारत की टीम पहुंची तो उस वक्त वो अपनी पत्नी के साथ तिरंगा झंडे बनाते मिले. उनकी पत्नी उस काम में उनकी मदद कर रही थीं.
रमेश का कहना है कि उनके सामने काफी समस्याएं हैं, लेकिन वो इस काम को निरंतर करते चले आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनके पिता नत्थेराम गांधी आश्रम में ठेकेदार थे और वो तिरंगा बनाने का काम करते थे. कुछ और लोगों को भी साथ लेकर वो यह काम करते थे. उनके पिता और ताऊजी ने उम्र भर तिरंगे बनाए हैं, जो कि गांधी आश्रम के माध्यम से देश के हर कोने में जाते थे. वो बताते हैं कि आमदनी इतनी नहीं है, जिससे वो अच्छे से रह सकें. लेकिन अब इस उम्र में वो कुछ और नहीं करना चाहते. रमेश बताते हैं कि वो बीमार रहते हैं. दो बेटियां हैं, उन्हें लेकर वो चिंतित रहते हैं कि किसी तरह उनकी परवरिश अच्छे से हो जाए.
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रमेश बताते हैं कि सरकार ने इस बार हर घर तिरंगा अभियान चलाया है. उसके बाद से उन्हें बहुत ज्यादा ऑर्डर मिले हैं. लेकिन वो चाहकर भी उन्हें पूरे नहीं कर सकते. हजारों लोग उनसे झंडे बनवाने के लिए संपर्क कर रहे हैं. लेकिन वो अकेले सभी के लिए झंडे तैयार नहीं कर सकते. उन्होंने बताया कि छपाई के कारीगर भी नहीं हैं. इसके चलते सभी के ऑर्डर पूरे कर पाना संभव नहीं हैं.
रमेशचंद बताते हैं कि 35 साल पहले पिताजी से झंडे बनाना सीखा था. तभी से वो यह काम करते हैं. उन्हें अपने देश के प्रति प्रेम है और वो ताउम्र यही काम करना चाहते हैं. इस दौरान उन्होंने अपना दर्द बयान करते हुए बताया कि उन्हें इससे ज्यादा पैसा नहीं मिलता है. सरकार में बैठे अफसरों से वो मदद की गुहार लगा चुके हैं. किसी ने उनकी सुध तक नहीं ली. उन्होंने बताया कि 60 गज के मकान में वो चार परिवार रहते हैं. उन्होंने एमडीए में जाकर काफी पहले मकान के लिए आवेदन किया था. लेकिन अभी तक सरकारी योजना का उन्हें कोई लाभ नहीं मिल सका है.
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