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आजादी से अब तक मेरठ का यह परिवार बना रहा है तिरंगा, सरकार से है मदद की गुहार

मेरठ का एक परिवार होश संभालते ही तिरंगा बनाने का काम करते चला आ रहा है. बताते हैं कि उनके पूर्वजों ने भी तिरंगा झंडा बनाने में ही अपनी उम्र गुजार दी. भारत की आजादी से लेकर अब तक यह परिवार तिरंगा झंडा बनाने का काम कर रहा है. लेकिन इसके पीछे उनकी पीड़ा भी है. अभी तक कई बार सरकार से गुहार लगाने पर भी उन्हें कोई मदद नहीं मिली है. आइये खबर में उनकी इस तकलीफ से रूबरू होते हैं.

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Published : Aug 3, 2022, 6:33 PM IST

मेरठ: मोदी सरकार की तरफ से इस बार हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है. इसे सफल बनाने के लिए सरकारी मशीनरी भी पूरी तरह प्रयासरत है. सरकार की तरफ से यह कोशिश पहली दफा हो सकती है. लेकिन मेरठ के एक परिवार ने ऐसी ही मुहिम को लेकर पूरी उम्र गुजार दी है. यानी यह परिवार हमेशा से देश की आन, बान और शान हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को बनाता चला आ रहा है. इसके अलावा इस परिवार ने अपने जीवनकाल में अन्य कोई कार्य नहीं किया है. इतना ही नहीं लालकिले पर जब पहली बार तिरंगा फहराया गया था, तो वो भी इसी परिवार के लोगों ने रातों-रात तैयार किया था.

मेरठ के सुभाष नगर में यह परिवार है, जो देश की आजादी से लेकर अब तक लगातार तिरंगा बनाने का काम कर रहा है. पहले इनके पूर्वज इस काम को करते थे. अब रमेश उस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. रमेश चंद बताते हैं कि उन्हें यह काम अच्छा लगता है. इसीलिए वो देशवासियों के लिए तिरंगा झंडा बनाते हैं. रमेश के पास जब की ईटीवी भारत की टीम पहुंची तो उस वक्त वो अपनी पत्नी के साथ तिरंगा झंडे बनाते मिले. उनकी पत्नी उस काम में उनकी मदद कर रही थीं.

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए तिरंगा झंड़ा बनाने वाला परिवार

रमेश का कहना है कि उनके सामने काफी समस्याएं हैं, लेकिन वो इस काम को निरंतर करते चले आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनके पिता नत्थेराम गांधी आश्रम में ठेकेदार थे और वो तिरंगा बनाने का काम करते थे. कुछ और लोगों को भी साथ लेकर वो यह काम करते थे. उनके पिता और ताऊजी ने उम्र भर तिरंगे बनाए हैं, जो कि गांधी आश्रम के माध्यम से देश के हर कोने में जाते थे. वो बताते हैं कि आमदनी इतनी नहीं है, जिससे वो अच्छे से रह सकें. लेकिन अब इस उम्र में वो कुछ और नहीं करना चाहते. रमेश बताते हैं कि वो बीमार रहते हैं. दो बेटियां हैं, उन्हें लेकर वो चिंतित रहते हैं कि किसी तरह उनकी परवरिश अच्छे से हो जाए.

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तिरंगा झंडा तैयार करता है मेरठ का यह परिवार
रमेश ने बताया कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक ऐसा कोई राज्य या शहर नहीं है, जहां मेरठ के गांधी आश्रम से झंडे बनकर न गए हों. उनके पिता बताते थे कि पहला झंडा रातों-रात उनके पिता और ताऊ ने तैयार किया था. दिल्ली से कोई व्यक्ति संसद से आया था, जिसे क्षेत्रीय गांधी आश्रम में तैयार करके दिया गया था. तभी से उनके परिवार झंडे बनाने का काम कर रहे हैं. विशेष तौर पर खादी के ही झंडे तैयार किए जाते हैं.
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तिरंगा झंडा

यह भी पढ़ें- हर घर तिरंगा अभियान: प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम ने प्रदेश की जनता से की यह अपील, जानें क्या कुछ कहा

रमेश बताते हैं कि सरकार ने इस बार हर घर तिरंगा अभियान चलाया है. उसके बाद से उन्हें बहुत ज्यादा ऑर्डर मिले हैं. लेकिन वो चाहकर भी उन्हें पूरे नहीं कर सकते. हजारों लोग उनसे झंडे बनवाने के लिए संपर्क कर रहे हैं. लेकिन वो अकेले सभी के लिए झंडे तैयार नहीं कर सकते. उन्होंने बताया कि छपाई के कारीगर भी नहीं हैं. इसके चलते सभी के ऑर्डर पूरे कर पाना संभव नहीं हैं.

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तिरंगा झंडा बनाने में मदद करते हुए रमेश की पत्नी

रमेशचंद बताते हैं कि 35 साल पहले पिताजी से झंडे बनाना सीखा था. तभी से वो यह काम करते हैं. उन्हें अपने देश के प्रति प्रेम है और वो ताउम्र यही काम करना चाहते हैं. इस दौरान उन्होंने अपना दर्द बयान करते हुए बताया कि उन्हें इससे ज्यादा पैसा नहीं मिलता है. सरकार में बैठे अफसरों से वो मदद की गुहार लगा चुके हैं. किसी ने उनकी सुध तक नहीं ली. उन्होंने बताया कि 60 गज के मकान में वो चार परिवार रहते हैं. उन्होंने एमडीए में जाकर काफी पहले मकान के लिए आवेदन किया था. लेकिन अभी तक सरकारी योजना का उन्हें कोई लाभ नहीं मिल सका है.

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मेरठ: मोदी सरकार की तरफ से इस बार हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है. इसे सफल बनाने के लिए सरकारी मशीनरी भी पूरी तरह प्रयासरत है. सरकार की तरफ से यह कोशिश पहली दफा हो सकती है. लेकिन मेरठ के एक परिवार ने ऐसी ही मुहिम को लेकर पूरी उम्र गुजार दी है. यानी यह परिवार हमेशा से देश की आन, बान और शान हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को बनाता चला आ रहा है. इसके अलावा इस परिवार ने अपने जीवनकाल में अन्य कोई कार्य नहीं किया है. इतना ही नहीं लालकिले पर जब पहली बार तिरंगा फहराया गया था, तो वो भी इसी परिवार के लोगों ने रातों-रात तैयार किया था.

मेरठ के सुभाष नगर में यह परिवार है, जो देश की आजादी से लेकर अब तक लगातार तिरंगा बनाने का काम कर रहा है. पहले इनके पूर्वज इस काम को करते थे. अब रमेश उस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. रमेश चंद बताते हैं कि उन्हें यह काम अच्छा लगता है. इसीलिए वो देशवासियों के लिए तिरंगा झंडा बनाते हैं. रमेश के पास जब की ईटीवी भारत की टीम पहुंची तो उस वक्त वो अपनी पत्नी के साथ तिरंगा झंडे बनाते मिले. उनकी पत्नी उस काम में उनकी मदद कर रही थीं.

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रमेश का कहना है कि उनके सामने काफी समस्याएं हैं, लेकिन वो इस काम को निरंतर करते चले आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनके पिता नत्थेराम गांधी आश्रम में ठेकेदार थे और वो तिरंगा बनाने का काम करते थे. कुछ और लोगों को भी साथ लेकर वो यह काम करते थे. उनके पिता और ताऊजी ने उम्र भर तिरंगे बनाए हैं, जो कि गांधी आश्रम के माध्यम से देश के हर कोने में जाते थे. वो बताते हैं कि आमदनी इतनी नहीं है, जिससे वो अच्छे से रह सकें. लेकिन अब इस उम्र में वो कुछ और नहीं करना चाहते. रमेश बताते हैं कि वो बीमार रहते हैं. दो बेटियां हैं, उन्हें लेकर वो चिंतित रहते हैं कि किसी तरह उनकी परवरिश अच्छे से हो जाए.

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तिरंगा झंडा तैयार करता है मेरठ का यह परिवार
रमेश ने बताया कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक ऐसा कोई राज्य या शहर नहीं है, जहां मेरठ के गांधी आश्रम से झंडे बनकर न गए हों. उनके पिता बताते थे कि पहला झंडा रातों-रात उनके पिता और ताऊ ने तैयार किया था. दिल्ली से कोई व्यक्ति संसद से आया था, जिसे क्षेत्रीय गांधी आश्रम में तैयार करके दिया गया था. तभी से उनके परिवार झंडे बनाने का काम कर रहे हैं. विशेष तौर पर खादी के ही झंडे तैयार किए जाते हैं.
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रमेश बताते हैं कि सरकार ने इस बार हर घर तिरंगा अभियान चलाया है. उसके बाद से उन्हें बहुत ज्यादा ऑर्डर मिले हैं. लेकिन वो चाहकर भी उन्हें पूरे नहीं कर सकते. हजारों लोग उनसे झंडे बनवाने के लिए संपर्क कर रहे हैं. लेकिन वो अकेले सभी के लिए झंडे तैयार नहीं कर सकते. उन्होंने बताया कि छपाई के कारीगर भी नहीं हैं. इसके चलते सभी के ऑर्डर पूरे कर पाना संभव नहीं हैं.

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तिरंगा झंडा बनाने में मदद करते हुए रमेश की पत्नी

रमेशचंद बताते हैं कि 35 साल पहले पिताजी से झंडे बनाना सीखा था. तभी से वो यह काम करते हैं. उन्हें अपने देश के प्रति प्रेम है और वो ताउम्र यही काम करना चाहते हैं. इस दौरान उन्होंने अपना दर्द बयान करते हुए बताया कि उन्हें इससे ज्यादा पैसा नहीं मिलता है. सरकार में बैठे अफसरों से वो मदद की गुहार लगा चुके हैं. किसी ने उनकी सुध तक नहीं ली. उन्होंने बताया कि 60 गज के मकान में वो चार परिवार रहते हैं. उन्होंने एमडीए में जाकर काफी पहले मकान के लिए आवेदन किया था. लेकिन अभी तक सरकारी योजना का उन्हें कोई लाभ नहीं मिल सका है.

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