मेरठ : जिले में स्थित मेडिकल कॉलेज में दवाइयों का भारी टोटा बना है, आलम यह है कि यहां सैंकड़ों तरह की दवाइयों की कमी है. यहां उपचार के लिए बैठे डॉक्टर्स धड़ल्ले से मरीजों के तीमारदारों को बाहर से महंगी दवाइयां लाने के लिए पर्चा थमा देते हैं. ऐसे में सरकार की तरफ से मिलने वाली नि: शुल्क दवाएं उपलब्ध कराने वाले दावे की पोल खुलती नजर आ रही है.
मेरठ स्थित लाला लाजपत राय स्मारक चिकित्सा महाविद्यालय पश्चिमी यूपी का एकमात्र सरकारी मेडिकल कॉलेज है. आमतौर पर यहां मेरठ के अलावा आसपास के लगभग 10 जिलों के मरीज उपचार के लिए आते हैं. लेकिन मौजूदा दौर में आलम यह है कि अस्पताल दवाइयों की कमी से जूझ रहा है. अस्पताल में उपचार के लिए आने वाले मरीजों को डॉक्टर्स बाहर से दवाइयां लाने के लिए कहते हैं. ऐसे में मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
अस्पताल में मरीजों के मिलने वाली सुविधाओं की स्थिति जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम लाला लाजपत राय स्मारक चिकित्सा महाविद्यालय पहुंची. इस दौरान अस्पताल में इलाज कराने आए मरीजों ने ईटीवी भारत को चौका देने वाली बातें बताईं. मरीजों के साथ आए कई लोगों ने बताया कि वह आर्थिक कमजोरी की वजह से इस अस्पताल में मरीज का इलाज कराने के लिए आए थे. लेकिन अस्पताल के डॉक्टर बाहर से मिलने वाली महंगी दवाइयों की लिस्ट थमा रहे हैं. अस्पताल में दबाइयां नहीं दी रही हैं, इसलिए मरीजों को मजबूरी में बाहर से दबाइयां खरीदनी पड़ रहीं हैं.
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इस बारे में ईटीवी भारत ने जब अस्पताल के प्रमुख अधीक्षक डॉक्टर के. एन. तिवारी से बात की, तो उन्होंने बताया कि करीब ढाई हजार हर दिन अस्पताल में आते हैं. करीब 500 नए मरीज हर दिन एडमिट होते हैं. जबकि करीब ढाई हजार ही पुराने मरीज यहां रहते हैं. ऐसे में मेडिसिन की किल्लत के चलते सभी मरीजों को दवाइयां नहीं मिल पातीं हैं.
डॉक्टर के. एन. तिवारी ने कहा कि करीब 800 से भी अधिक तरह की दवाइयां मेडिकल कॉलेज को सरकार के आदेश के बाद मिलनी चाहिए. लेकिन दवाइयां पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पातीं हैं. जिसकी वजह से समस्या बनी रहती है, वह बताते हैं कि 839 तरह की दवाइयां मेडिकल कॉलेज के ड्रग लिस्ट में हैं. जबकि 295 तरह की दवाइयां एसेंशियल ड्रग लिस्ट में हैं, जिनका उपयोग बहुत ज्यादा होता है. ऐसा भी होता है कि ये दवाइयां समय से नहीं मिल पाती हैं, तो अलग से बजट का इंतजाम करके दवाइयों को उपलब्ध कराया जाता है.
डॉक्टर के. एन. तिवारी ने बताया कि करीब 200 तरह की दवाइयां ऐसी हैं, जो कि लंबे अरसे से नहीं मिल पा रही हैं. उन्होंने कहा कि ये सही है कि काफी दवाइयां ऐसी हैं, जो कि नहीं मिलतीं हैं. नियम है कि 80 प्रतिशत दवाओं की आपूर्ति उत्तर प्रदेश मेडिकल कॉरपोरेशन को करनी चाहिए, लेकिन वहां भी दवाई कंपनियों के साथ टेंडर प्रक्रिया में हो रही देरी की वजह से तो कभी अन्य कारणों से मेडिकल कॉलेज में दवाइयों की कमी बनी रहती है. डॉक्टर के.एन. तिवारी बताते हैं कि शासन ने बजट भी कम किया गया है. अतिरिक्त बजट की मांग बार-बार की जा रही है, साथ ही समय से दवाइयां मिल सकें. इस बारे में समय-समय पर पत्राचार किया जा रहा है.
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