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पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर का 70 साल बाद फिर से होगा उत्खनन, कई रहस्यों से उठ सकता है पर्दा - capital of the pandavas

Museum in Hastinapur Meerut: मेरठ के हस्तिनापुर में 5 एकड़ जमीन पर पुरातात्विक म्यूजिम बनाने की तैयारी की जा रही है. म्यूजियम आइकाॅनिक साईट के रूप में विकिसत होगा. जिससे पर्यटन, सर्वेक्षण को अधिक बढ़ावा मिलेगा.

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पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर
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Published : Feb 19, 2022, 10:40 PM IST

मेरठः सत्तर साल बाद पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर में 5 एकड़ की भूमि पर पुरातात्विक म्यूजियम बनाने की तैयारी चल रही है. यह म्यूजियम आईकाॅनिक साईट के रूप में विकसित होगा. मेरठ के जिलाधिकारी ने म्यूजियम के लिए जमीन चिन्हित करने के निर्देश दिए हैं. आईकाॅनिक साईट के रूप में विकसित होने से पर्यटन, सर्वेक्षण आदि को बढ़ावा मिलेगा.

1952 के बाद महाभारतकालीन हस्तिनापुर में फिर से उत्खनन शुरू किया गया है. हस्तिनापुर के उल्टा खेड़ा और पाण्डव टीला में उत्खनन का कार्य आरम्भ हो गया है. एएसआई के अधिकारियों को उम्मीद है कि इस खुदाई से हस्तिनापुर में हज़ारों वर्ष पुराने राज से पर्दा उठेगा. इससे पहले 1952 में हस्तिानपुर में उत्खनन हुआ था. तब हज़ारों वर्ष पुराने कई रहस्यों पर से पर्दा उठा था. अब एएसआई का सर्किल ऑफिस मेरठ में खुलने के बाद एक बार फिर हस्तिनापुर की धरती इतिहास का नया राज़ उगलने को तैयार है. ऑफिसर्स का कहना है कि हस्तिनापुर सिनौली से भी बड़ा राज़फाश हो सकता है. गौरतलब है कि बागपत के सिनौली में बीते वर्षों में हज़ारों साल पुराना रथ सहित कई अन्य चीज़ें मिली थीं. अब हस्तिानपुर से भी अधिकारियों को उम्मीद जगी है कि ये धरती नए राज उगलेगी.

भारतीय पुरातत्व विभाग अब मिशन हस्तिनापुर में जुट गया है. दशकों बाद एएसआई की टीम ने यहां एक बार फिर से डेरा डाल दिया है. एएसआई की टीम ने यहां कैंप लगाकर अर्जुन की तरह अपना लक्ष्य साधना शुरू कर दी है. आजकल यहां अधिकारी तकरीबन चार घंटे सुबह और चार घंटे शाम को पड़ताल में जुटे रहते हैं. अधिकारियों का कहना है कि आने वाले दिनों में न सिर्फ हस्तिनापुर के रहस्यों से पर्दा उठेगा, बल्कि यहां ऐसी वर्ल्ड क्लास सुविधाएं होंगी कि टूरिस्ट आने लगेंगे.

अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉक्टर दिबिषद ब्रजसुंदर गड़नायक के निर्देश पर एएसआई की टीम फिर हस्तिनापुर के जंगल में पांडव टीले में उन्हीं भवनों को ढूंढ रही है, जिसका इतिहास में वर्णन है. टीम की कोशिश है कि महाभारतकालीन अवशेष जो कई सालों से मिट्टी में ही दफन हैं, उनको सामने लाया जा सके. आपको बता दें कि पांडव टीला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अंतर्गत सुरक्षित है. समय-समय पर टीले से पौराणिक अवशेष मिलते रहे हैं. इन अवशेषों को एएसआई कार्यालय पर तैनात कर्मचारी संरक्षित कर लेते थे. शुरुआती कार्य में एएसआई टीम जयंती माता मठ, राजा रघुनाथ महल, अमृत कूप के समीप स्थानों को तराशा और उनके इर्द-गिर्द सफाई की व्यवस्था कर रही है.

यह भी पढ़ें- शाहजहांपुर फर्जी एनकाउंटर मामला, पुलिस अधीक्षक समेत 18 पुलिस वालों पर केस दर्ज



एएसआई के अधिकारियों का कहना है कि अब आने वाले दिनों में यहां टूरिस्ट को सभी सुविधाएं मुहैया होंगी. अब पर्यटकों को यहां टॉयलेट, पार्किंग स्पेस से लेकर ड्रिंकिंग वॉटर और कैफेटेरिया तक उपलब्ध होगा. वहीं, एएसआई के नए सर्किल ऑफिस से पश्चिमी उत्तरप्रदेश के सोलह जिलों के इतिहास को संजोया जा रहा है. इन सोलह जिलों की 82 साइट्स पर एएसआई की टीम फोकस कर रही है. लेकिन, सबसे प्रमुख एजेंडे पर महाभारतकालीन धरती हस्तिनापुर है.

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मेरठः सत्तर साल बाद पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर में 5 एकड़ की भूमि पर पुरातात्विक म्यूजियम बनाने की तैयारी चल रही है. यह म्यूजियम आईकाॅनिक साईट के रूप में विकसित होगा. मेरठ के जिलाधिकारी ने म्यूजियम के लिए जमीन चिन्हित करने के निर्देश दिए हैं. आईकाॅनिक साईट के रूप में विकसित होने से पर्यटन, सर्वेक्षण आदि को बढ़ावा मिलेगा.

1952 के बाद महाभारतकालीन हस्तिनापुर में फिर से उत्खनन शुरू किया गया है. हस्तिनापुर के उल्टा खेड़ा और पाण्डव टीला में उत्खनन का कार्य आरम्भ हो गया है. एएसआई के अधिकारियों को उम्मीद है कि इस खुदाई से हस्तिनापुर में हज़ारों वर्ष पुराने राज से पर्दा उठेगा. इससे पहले 1952 में हस्तिानपुर में उत्खनन हुआ था. तब हज़ारों वर्ष पुराने कई रहस्यों पर से पर्दा उठा था. अब एएसआई का सर्किल ऑफिस मेरठ में खुलने के बाद एक बार फिर हस्तिनापुर की धरती इतिहास का नया राज़ उगलने को तैयार है. ऑफिसर्स का कहना है कि हस्तिनापुर सिनौली से भी बड़ा राज़फाश हो सकता है. गौरतलब है कि बागपत के सिनौली में बीते वर्षों में हज़ारों साल पुराना रथ सहित कई अन्य चीज़ें मिली थीं. अब हस्तिानपुर से भी अधिकारियों को उम्मीद जगी है कि ये धरती नए राज उगलेगी.

भारतीय पुरातत्व विभाग अब मिशन हस्तिनापुर में जुट गया है. दशकों बाद एएसआई की टीम ने यहां एक बार फिर से डेरा डाल दिया है. एएसआई की टीम ने यहां कैंप लगाकर अर्जुन की तरह अपना लक्ष्य साधना शुरू कर दी है. आजकल यहां अधिकारी तकरीबन चार घंटे सुबह और चार घंटे शाम को पड़ताल में जुटे रहते हैं. अधिकारियों का कहना है कि आने वाले दिनों में न सिर्फ हस्तिनापुर के रहस्यों से पर्दा उठेगा, बल्कि यहां ऐसी वर्ल्ड क्लास सुविधाएं होंगी कि टूरिस्ट आने लगेंगे.

अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉक्टर दिबिषद ब्रजसुंदर गड़नायक के निर्देश पर एएसआई की टीम फिर हस्तिनापुर के जंगल में पांडव टीले में उन्हीं भवनों को ढूंढ रही है, जिसका इतिहास में वर्णन है. टीम की कोशिश है कि महाभारतकालीन अवशेष जो कई सालों से मिट्टी में ही दफन हैं, उनको सामने लाया जा सके. आपको बता दें कि पांडव टीला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अंतर्गत सुरक्षित है. समय-समय पर टीले से पौराणिक अवशेष मिलते रहे हैं. इन अवशेषों को एएसआई कार्यालय पर तैनात कर्मचारी संरक्षित कर लेते थे. शुरुआती कार्य में एएसआई टीम जयंती माता मठ, राजा रघुनाथ महल, अमृत कूप के समीप स्थानों को तराशा और उनके इर्द-गिर्द सफाई की व्यवस्था कर रही है.

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एएसआई के अधिकारियों का कहना है कि अब आने वाले दिनों में यहां टूरिस्ट को सभी सुविधाएं मुहैया होंगी. अब पर्यटकों को यहां टॉयलेट, पार्किंग स्पेस से लेकर ड्रिंकिंग वॉटर और कैफेटेरिया तक उपलब्ध होगा. वहीं, एएसआई के नए सर्किल ऑफिस से पश्चिमी उत्तरप्रदेश के सोलह जिलों के इतिहास को संजोया जा रहा है. इन सोलह जिलों की 82 साइट्स पर एएसआई की टीम फोकस कर रही है. लेकिन, सबसे प्रमुख एजेंडे पर महाभारतकालीन धरती हस्तिनापुर है.

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