मेरठः वर्तमान में एवैस्कुलर नेक्रोसिस (कूल्हे की कमजोर पड़ने की बीमारी) नाम की बीमारी लगातार युवाओं को अपनी जद में ले रही है. कोरोना के बाद ऐसे मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है. इसे बीमारी को ऑस्टियोनेक्रोसिस भी कहा जाता है. विशेषज्ञों की मानें तो अब युवाओं को भी कूल्हे से जुडी समस्याएं हो रही हैं. आईए जानते हैं आखिर वह कौन कौन सी वजह है...
कोरोना के बाद बढ़ी मरीजों की संख्या बढ़ी
वर्तमान समय में कुल्हे से जुडी एवैस्कुलर नेक्रोसिस नाम की बीमारी लगातार युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रही है. एक वक्त था, जब इस बीमारी का असर 50 या उससे अधिक उम्र को पार कर चुके लोगों में दिखता था. लेकिन कोरोना के बाद ऐसे मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. चिकित्सकों के सलाह के बिना कोई भी दवाई लेने से भी कुल्हे में समस्या हो सकती है.
चिकित्सक ने बताया
मेरठ के लाला लाजपत राय स्मारक मेडिकल कॉलेज के ऑर्थोपेडिक विभाग के एचओडी डॉक्टर ज्ञानेश्वर टोंक ने बताया कि इस बीमारी का असर कोरोना के बाद से अधिक देखने को मिल रहा है. खास बात यह है कि यह बीमारी कूल्हे में एवैस्कुलर नेक्रोसिस होता है. जिसकी वजह से कूल्हा खराब हो जाता है. कूल्हे में अर्थराइटिस हो जाता है. ऐसे मरीजों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है.
समस्या बढ़ने पर बदलना पड़ता है कूल्हा
डॉक्टर ज्ञानेश्वर टोंक ने बताया कि जिस स्टेज में मरीज अस्पताल में आता है. उसमें अधिकतर कूल्हा बदलने का ऑपरेशन करना होता है. ऐसे में मरीज थोड़ी सी जागरूकता दिखाएं तो समय रहते ही मरीज का कूल्हा बदलने से बचाया जा सकता है.
स्टेरॉयड और शराब का सेवन होता है घातक
चिकित्सकों ने बताया कूल्हे में उत्पन्न हो रही समस्या के कई कारण हो सकते हैं. जैसे लंबे समय तक स्टेरॉयड का सेवन करना भी एक महत्वपूर्ण कारण है. साथ ही सेडेंटरी लाइफस्टाइल में अत्यधिक अल्कोहल की मात्रा लेना भी खतरनाक है. इसके अलावा कुछ ऐसी मेटाबॉलिक डिजीज हैं. जिनमें मरीज के एवैस्कुलर नेक्रोसिस का कारण मुख्यतः रहता है.
कूल्हे के दर्द को न करें नजरअंदाज
चिकित्सक ने बताया कि अगर मरीज के कूल्हे में दर्द हो रहा है. तो मरीज को शुरुआत में ही चिकित्सकों से सलाह ले लेनी चाहिए. दूसरी बात मरीजों को या अल्कोहल की मात्रा घटा देनी चाहिए या फिर नहीं लेनी चाहिए. कोई भी दवा चिकित्सक की सलाह से ही लेनी चाहिए.
युवाओं में बढ़ी है कूल्हे के मरीजों की संख्या
चिकित्सक ने बताया कि पहले कूल्हा खराब होने की समस्या बढ़ी हुई उम्र में आती थी. जिनकी उम्र कम से कम 50 साल या उससे ज्यादा होती थी. लेकिन वर्तमान समय में देखने में आया है कि 25 से 30 साल के मरीज भी कूल्हा खराब होने की समस्या से ग्रसित हैं. ऐसे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. मेडिकल कॉलेज में कूल्हे की समस्या से सबसे ज्यादा युवा ही पीड़ित हैं.
स्किन और फेफड़े की बीमारी का इलाज
डॉक्टर ज्ञानेश्वर टोंक ने बताया कि अगर खुद को स्किन और फेफड़े की बीमारी से बचाना है सबसे पहले यह जरूरी है कि आपको स्किन की बीमारी है या फेफड़े की बीमारी है. यह बात जानने की आवश्यकता है. झोलाछाप चिकित्सकों ने गलती से भी दवा न लें. ऐसी बीमारी होने पर स्किन और फेफड़े के विशेषज्ञों से ही सलाह लेकर दवा लें. आपको चिकित्सक से यह भी तय करना है कि दवा में स्टेरॉयड तो नहीं है.
इन लक्षणों से करें पहचान
चिकित्सक ने बताया कि अगर आप लेंब समय से दवाइयां लेने से आपका चेहरा फूल रहा है, आपकी गर्दन मोटी हो रही है, वजह बढ़ रहा है. आपको समझ जाना चाहिए की ये दवाईयां आपके लिए घातक हैं.
कोरोना के बाद से बढ़े मामले
चिकित्सक ने बताया कि कोविड के बाद ऐसी स्टडी रिपोर्ट सामने आ रही है. जिनसे यह स्पष्ट हो रहा है कि कोविड के बाद यह मामले अधिक बढ़े हैं. इसमें खून का दौरा कम हो जाता है. जिसकी वजह से कुल्हा सूखने लगता है. इसके बाद धीरे-धीरे अर्थराइटिस हो जाती है. इसके बाद मरीजों का कूल्हा बदलना ही पड़ता है. चिकित्सक ने बताया कि इस बीमारी से हड्डियां मुलायम और टेढ़ी हो जाती हैं. इस बीमारी को चिकित्सकों की भाषा में ऑस्टियोमलेशिया कहा जाता है. यह बीमारी विटामिन-डी की कमी के कारण होती हैं. ऐसी अवस्था में हड्डियां कमजोर और नाजुक हो जाती हैं.
कूल्हे की है फिक्र तो करें यह काम
चिकित्सक ने बताया कि कूल्हे की समस्या से बचने के लिए नियमित शारीरिक वर्क आउट करें. खान-पान को बैलेंस रखते हुए दूध-दही, सब्जियां और ताजे फलों का सेवन करें. लोगों को जंक फूड खाने से बचना चाहिए. खानपान के जीवन शैली को ठीक रखकर इन बीमारियों से बचा जा सकता है.
लोगों में बढ़ी है विटामिन डी की कमी
चिकित्सक ने बताया कि मौजूदा समय में अगर 10 मरीज उनके पास आते हैं तो उनमें से 2 से 3 मरीजों में विटामिन-डी की कमी है. जबकि विटामिन डी हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम को दुरुस्त करता है. अधिकतर मरीजों में विटामिन-डी और विटामिन-सी की ही कमी है. जिसकी लिए उन्हें उपचार देना पड़ता है.
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