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मेरठ: इस मंदिर के नाम पर लगता है एकता और सौहार्द का प्रतीक ऐतिहासिक नौचंदी मेला

यूपी के मेरठ का नौचंदी मेला देश भर में विख्यात है. एक महीने तक चलने वाले इस मेले में दूर-दूर से लोग आते हैं. इस मेले की शुरुआत करीब 350 साल पहले नवचंडी मंदिर में चैत्र नवरात्र के मौके पर हुई थी.

एकता और सौहार्द का प्रतीक ऐतिहासिक नौचंदी मेला.
एकता और सौहार्द का प्रतीक ऐतिहासिक नौचंदी मेला.
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Published : Mar 18, 2020, 1:02 PM IST

मेरठ: जिले का ऐतिहासिक मेला नौचंदी मेला देश भर में विख्यात है. एक महीने तक चलने वाले इस मेले में दूर-दूर से लोग आते हैं. एकता और सौहार्द के प्रतीक इस मेले की शुरुआत मेला परिसर में स्थित नवचंडी मंदिर के नवरात्र मेले से हुई थी. पहले इस मेले को नवचंडी मेले के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब यह नौचंदी के नाम से जाने लगा है.

एकता और सौहार्द का प्रतीक ऐतिहासिक नौचंदी मेला.

मेला परिसर में स्थित नवचंडी मंदिर सिद्ध पीठ है. मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है. इस मेले की शुरुआत करीब 350 साल पहले नवचंडी मंदिर में चैत्र नवरात्र शुरू हुई थी. आज भी नौचंदी मेले की शुरुआत होली के बाद पढ़ने वाले दूसरे रविवार से होती है. नवचंडी मंदिर के ठीक सामने बाले मियां की मजार है. मेले के दौरान एक और जहां मंदिर में माता के भजन कीर्तन दिन रात चलते हैं वही बाले मियां की मजार में कव्वाली का दौर चलता है.

40 दिन लगातार पूजा करने पर पूरी होती है मनोकामना
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यदि कोई व्यक्ति यहां 40 दिन तक लगातार मां चंडी देवी की पूजा अर्चना करें तो उसकी मनोकामना देवी माता जरूर पूरी करती है. नवरात्र में यहां माता की चौकी लगाई जाती है, जिसमें दूर दराज से लोग आकर शामिल होते हैं.

रावण की पत्नी मंदोदरी करती थी पूजा
मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहां रावण की पत्नी मंदोदरी भी यहां नवरात्र में आकर पूजा अर्चना करती थी. मंदोदरी ने ही यहां मां चंडी देवी का मंदिर बनवाया था. बताया गया कि 18वीं शताब्दी में पहले यहां एक दिन का मेला लगता था. बाद में यह तीन दिन का लगने लगा. अब यह मेला एक महीने का लगता है.

सौहार्द का प्रतीक है यह मेला
नौचंदी मेले के बारे में कहा जाता है कि यह एकता और सौहार्द का प्रतीक है. शहर में दंगे भी हुए, लेकिन इस मेले पर कभी कोई फर्क नहीं पड़ा. इस मेले ने ही हिन्दू-मुस्लिम के दिलों की कड़वाहट दूर की. दंगों के बाद भी दोनों ही पक्ष के लोग नौचंदी मेले में एक साथ देखे गए. मेले में हिन्दू-मुस्लिम की सहभागिता से शहर का सांप्रदायिक सौहार्द बना रहता था.

मेले की शुरुआत आज भी पहले नवचंडी में मंदिर में मां दुर्गा की मूर्ति पर चुनरी चढ़ाकर की जाती है, उसके बाद बाले मियां की मजार पर चादर चढ़ाई जाती है. इस मेले की खासियत यह है कि है रात में लगता है. मेले में पूरी रात चहल पहल रहती है जबकि दिन में मेले की दुकानें बंद रहती हैं.

इसे भी पढ़ें-कोरोना के चलते कई पर्यटन स्थलों को किया गया बंद, कई जगह बांटे पंपलेट

मंदिर के पुजारी पंडित महेश कुमार शर्मा ने बताया कि उनकी पीढ़ी लगातार मंदिर में सेवा करती आ रही है. वह पांचवी पीढ़ी से हैं. उनसे पहले उनके पिताजी, दादा, परदादा मंदिर की देखरेख करते थे. पंडित महेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि पहले मंदिर के नाम पर ही मेला लगता था, लेकिन अब इसका नाम बदलकर नौचंदी हो गया है.

मंदिर की खासियत के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालु कभी निराश नहीं जाते. ऐसे दंपत्ति जिन्हें संतान नहीं होती वह नवरात्र में व्रत रखकर मां के सामने पूजा अर्चना कर मन्नत मांगते हैं. मां प्रसन्न होकर निसंतान दंपत्ति की गोद भर देती है. पंडित महेंद्र कुमार शर्मा का कहना है कि यहां मां की मूर्ति खप्पर रूप की है, इसलिए यहां आने वाले श्रद्धालु कभी निराश वापस नहीं जाते.

मेरठ: जिले का ऐतिहासिक मेला नौचंदी मेला देश भर में विख्यात है. एक महीने तक चलने वाले इस मेले में दूर-दूर से लोग आते हैं. एकता और सौहार्द के प्रतीक इस मेले की शुरुआत मेला परिसर में स्थित नवचंडी मंदिर के नवरात्र मेले से हुई थी. पहले इस मेले को नवचंडी मेले के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब यह नौचंदी के नाम से जाने लगा है.

एकता और सौहार्द का प्रतीक ऐतिहासिक नौचंदी मेला.

मेला परिसर में स्थित नवचंडी मंदिर सिद्ध पीठ है. मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है. इस मेले की शुरुआत करीब 350 साल पहले नवचंडी मंदिर में चैत्र नवरात्र शुरू हुई थी. आज भी नौचंदी मेले की शुरुआत होली के बाद पढ़ने वाले दूसरे रविवार से होती है. नवचंडी मंदिर के ठीक सामने बाले मियां की मजार है. मेले के दौरान एक और जहां मंदिर में माता के भजन कीर्तन दिन रात चलते हैं वही बाले मियां की मजार में कव्वाली का दौर चलता है.

40 दिन लगातार पूजा करने पर पूरी होती है मनोकामना
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यदि कोई व्यक्ति यहां 40 दिन तक लगातार मां चंडी देवी की पूजा अर्चना करें तो उसकी मनोकामना देवी माता जरूर पूरी करती है. नवरात्र में यहां माता की चौकी लगाई जाती है, जिसमें दूर दराज से लोग आकर शामिल होते हैं.

रावण की पत्नी मंदोदरी करती थी पूजा
मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहां रावण की पत्नी मंदोदरी भी यहां नवरात्र में आकर पूजा अर्चना करती थी. मंदोदरी ने ही यहां मां चंडी देवी का मंदिर बनवाया था. बताया गया कि 18वीं शताब्दी में पहले यहां एक दिन का मेला लगता था. बाद में यह तीन दिन का लगने लगा. अब यह मेला एक महीने का लगता है.

सौहार्द का प्रतीक है यह मेला
नौचंदी मेले के बारे में कहा जाता है कि यह एकता और सौहार्द का प्रतीक है. शहर में दंगे भी हुए, लेकिन इस मेले पर कभी कोई फर्क नहीं पड़ा. इस मेले ने ही हिन्दू-मुस्लिम के दिलों की कड़वाहट दूर की. दंगों के बाद भी दोनों ही पक्ष के लोग नौचंदी मेले में एक साथ देखे गए. मेले में हिन्दू-मुस्लिम की सहभागिता से शहर का सांप्रदायिक सौहार्द बना रहता था.

मेले की शुरुआत आज भी पहले नवचंडी में मंदिर में मां दुर्गा की मूर्ति पर चुनरी चढ़ाकर की जाती है, उसके बाद बाले मियां की मजार पर चादर चढ़ाई जाती है. इस मेले की खासियत यह है कि है रात में लगता है. मेले में पूरी रात चहल पहल रहती है जबकि दिन में मेले की दुकानें बंद रहती हैं.

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मंदिर के पुजारी पंडित महेश कुमार शर्मा ने बताया कि उनकी पीढ़ी लगातार मंदिर में सेवा करती आ रही है. वह पांचवी पीढ़ी से हैं. उनसे पहले उनके पिताजी, दादा, परदादा मंदिर की देखरेख करते थे. पंडित महेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि पहले मंदिर के नाम पर ही मेला लगता था, लेकिन अब इसका नाम बदलकर नौचंदी हो गया है.

मंदिर की खासियत के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालु कभी निराश नहीं जाते. ऐसे दंपत्ति जिन्हें संतान नहीं होती वह नवरात्र में व्रत रखकर मां के सामने पूजा अर्चना कर मन्नत मांगते हैं. मां प्रसन्न होकर निसंतान दंपत्ति की गोद भर देती है. पंडित महेंद्र कुमार शर्मा का कहना है कि यहां मां की मूर्ति खप्पर रूप की है, इसलिए यहां आने वाले श्रद्धालु कभी निराश वापस नहीं जाते.

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