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बसपा ने 17 में 11 मुस्लिमों को क्यों थमाए मेयर के टिकट, आखिर इसके पीछे क्या है मायावती की सियासी रणनीति, जानिए

क्या जिस दलित और मुस्लिम वोट बैंक के बदौलत बसपा सत्ता में आई थी अब उसी छिटके वोट बैंक को पाने के लिए मायावती खास रणनीति के साथ निकाय चुनाव में आईं हैं. आखिर 17 में 11 मेयर सीटों पर मुस्लिमों को टिकट थमाना बसपा की खास रणनीति है. आखिर इसका कितना सियासी लाभ पार्टी को मिलेगा. चलिए समझने की कोशिश करते हैं राजनीतिक विश्लेषकों के जरिए.

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निकाय चुनाव से तय होगा बीएसपी का भविष्य, बीएसपी के वजूद बरकरार रखना है बीएसपी सुप्रीमो मायावती के सामने चुनौती।
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Published : Apr 28, 2023, 7:13 PM IST

मेरठः इस निकाय चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती ने यूपी में 17 में 11 महापौर उम्मीदवार मुस्लिम घोषित किए हैं. कहीं न कहीं अपने इस फैसले से वह दलित मुस्लिम फैक्टर पर फिर से काम करते नजर आ रहीं हैं. मेरठ, अलीगढ़, शाहजहांपुर, गाजियाबाद, बरेली समेत 11 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों पर लगाया गया उनका यह दांव कितना कारगर होगा यह तो आने वाले चुनाव के परिणाम ही बताएंगे.

राजनीतिक विश्लेषकों ने ये कहा.

इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार व राजनैतिक विश्लेषक शादाब रिजवी कहते हैं कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती के द्वारा यूपी में मेयर प्रत्याशियों में सर्वाधिक महापौर के प्रत्याशी बहुजन समाज पार्टी की तरफ से मुस्लिमों को बनाया गया है. उन्होंने कहा कि जो दलित मुस्लिम गठजोड़ बीएसपी की ताकत हुआ करता था वह गठजोड़ पिछले चुनाव में पीछे छूट गया था. जो नतीजे आए थे उसमें मुस्लिम भी पार्टी के साथ नहीं दिखे और दलित भी पार्टी से छिटके नजर आए.

ऐसे में अब बसपा को खुद को खड़ा करने के लिए कुछ तो सहारा चाहिए. वह सहारा बीएसपी को लगता है कि निकाय चुनाव से शायद मिल जाए. वह कहते हैं कि बीएसपी से दलित तब दूर हुआ जब पार्टी से मुस्लिम छिटके. 2022 में मुस्लिम सपा के साथ चले गए थे, जिससे दलित समझे कि जब मुस्लिम नहीं साथ हैं तो अकेले दलितों से बीएसपी का भला होने वाला नहीं है. ऐसे में बसपा अब फिर से पुराने दलित मुस्लिम फार्मूले पर काम करने लगी.

यही वजह है कि मायावती ने मुस्लिमों को न सिर्फ मेयर के चुनाव में बल्कि नगर पालिका चेयरमैन, पार्षद, नगर पंचायत, चेयरमैन प्रत्याशी समेत सभासद के तौर पर अधिक से अधिक टिकट थमा दिए. यहां तक कि जो लोग रातों-रात बसपा में शामिल हुए उन्हें भी टिकट दे दिए गए. मायावती ने ऐसा करके संदेश दिया है कि वह मुस्लिमों के साथ हैं. उनके साथ दलितों का एक बड़ा वर्ग है और मुस्लिम अगर साथ आते हैं तो बीजेपी को टक्कर दी जा सकती है. उन्होंने कहा कि इस चुनाव में अगर यह गठजोड़ सफल हो गया तो बसपा मजबूत हो जाएगी. उन्होंने कहा कि बीएसपी के द्वारा मजबूरी में चला गया यह दांव अगर इस बार भी कामयाब नहीं हुआ तो बिल्कुल यह मान लिया जाएगा कि बहुजन समाज पार्टी का अपना जो वोट प्रतिशत है वह भी खिसक गया हैौ.

वहीं, रिटायर्ड आईएएस और वरिष्ठ राजनैतिक विश्लेषक प्रभात राय कहते हैं कि एक बीएसपी का तो अपना वोट बैंक (दलित मतदाता) भी पिछले चुनाव में खिसक गया था. उनका मानना है कि वर्तमान में उन्हें लगता है कि सपा ही मुस्लिमों को अपनी तरफ आकृष्ट कर सकती है. बसपा का एक दौर आया था लेकिन फिलहाल दौर दूसरा है. उन्होंने यह भी कहा कि बसपा की जो रणनीति है उससे बीजेपी को लाभ पहुंचेगा. हालांकि निकाय चुनाव के आने वाले परिणाम ही बताएंगे कि बसपा सुप्रीमो मायावती अपनी रणनीति में कहां तक सफल हुईं.

ये भी पढ़ेंः यूपी निकाय चुनाव: मायावती ने बसपा को वोट देने की अपील की, बीजेपी और सपा पर साधा निशाना

मेरठः इस निकाय चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती ने यूपी में 17 में 11 महापौर उम्मीदवार मुस्लिम घोषित किए हैं. कहीं न कहीं अपने इस फैसले से वह दलित मुस्लिम फैक्टर पर फिर से काम करते नजर आ रहीं हैं. मेरठ, अलीगढ़, शाहजहांपुर, गाजियाबाद, बरेली समेत 11 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों पर लगाया गया उनका यह दांव कितना कारगर होगा यह तो आने वाले चुनाव के परिणाम ही बताएंगे.

राजनीतिक विश्लेषकों ने ये कहा.

इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार व राजनैतिक विश्लेषक शादाब रिजवी कहते हैं कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती के द्वारा यूपी में मेयर प्रत्याशियों में सर्वाधिक महापौर के प्रत्याशी बहुजन समाज पार्टी की तरफ से मुस्लिमों को बनाया गया है. उन्होंने कहा कि जो दलित मुस्लिम गठजोड़ बीएसपी की ताकत हुआ करता था वह गठजोड़ पिछले चुनाव में पीछे छूट गया था. जो नतीजे आए थे उसमें मुस्लिम भी पार्टी के साथ नहीं दिखे और दलित भी पार्टी से छिटके नजर आए.

ऐसे में अब बसपा को खुद को खड़ा करने के लिए कुछ तो सहारा चाहिए. वह सहारा बीएसपी को लगता है कि निकाय चुनाव से शायद मिल जाए. वह कहते हैं कि बीएसपी से दलित तब दूर हुआ जब पार्टी से मुस्लिम छिटके. 2022 में मुस्लिम सपा के साथ चले गए थे, जिससे दलित समझे कि जब मुस्लिम नहीं साथ हैं तो अकेले दलितों से बीएसपी का भला होने वाला नहीं है. ऐसे में बसपा अब फिर से पुराने दलित मुस्लिम फार्मूले पर काम करने लगी.

यही वजह है कि मायावती ने मुस्लिमों को न सिर्फ मेयर के चुनाव में बल्कि नगर पालिका चेयरमैन, पार्षद, नगर पंचायत, चेयरमैन प्रत्याशी समेत सभासद के तौर पर अधिक से अधिक टिकट थमा दिए. यहां तक कि जो लोग रातों-रात बसपा में शामिल हुए उन्हें भी टिकट दे दिए गए. मायावती ने ऐसा करके संदेश दिया है कि वह मुस्लिमों के साथ हैं. उनके साथ दलितों का एक बड़ा वर्ग है और मुस्लिम अगर साथ आते हैं तो बीजेपी को टक्कर दी जा सकती है. उन्होंने कहा कि इस चुनाव में अगर यह गठजोड़ सफल हो गया तो बसपा मजबूत हो जाएगी. उन्होंने कहा कि बीएसपी के द्वारा मजबूरी में चला गया यह दांव अगर इस बार भी कामयाब नहीं हुआ तो बिल्कुल यह मान लिया जाएगा कि बहुजन समाज पार्टी का अपना जो वोट प्रतिशत है वह भी खिसक गया हैौ.

वहीं, रिटायर्ड आईएएस और वरिष्ठ राजनैतिक विश्लेषक प्रभात राय कहते हैं कि एक बीएसपी का तो अपना वोट बैंक (दलित मतदाता) भी पिछले चुनाव में खिसक गया था. उनका मानना है कि वर्तमान में उन्हें लगता है कि सपा ही मुस्लिमों को अपनी तरफ आकृष्ट कर सकती है. बसपा का एक दौर आया था लेकिन फिलहाल दौर दूसरा है. उन्होंने यह भी कहा कि बसपा की जो रणनीति है उससे बीजेपी को लाभ पहुंचेगा. हालांकि निकाय चुनाव के आने वाले परिणाम ही बताएंगे कि बसपा सुप्रीमो मायावती अपनी रणनीति में कहां तक सफल हुईं.

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